विश्व पुस्तक दिवस : दुनिया की सर्वश्रेष्ठ दार्शनिक किताब है गीता
आज 23 अप्रैल को मनाया जा रहा है विश्व पुस्तक दिवस, यूनेस्को की पहल पर किताबों को प्रोत्साहित करने के लिए हुई थी इसकी शुरुआत
PEN POINT : दुनिया की सबसे बेहतरीन किताबों की जहां भी बात होगी, श्रीमद्भगवद गीता का नाम उसमें जरूर शामिल होगा। हिंदू धार्मिक मान्यताओं में रामायण और महाभारत दो सबसे बड़े महाकाव्य हैं। रामायण का मूल संदेश नैतिकता है तो महाभारत यथार्थ पर आधारित है। महाभारत में कौरव पांडव युद्ध का समय आने पर अर्जुन जब युद्ध से विमुख होने लगता है तो श्रीकृष्ण उसे उपदेश देकर शस्त्र उठाने को प्रेरित करते हैं। यही उपदेश गीता ज्ञान और बाद में श्रीमदभगवद गीता के नाम से प्रसिद्ध हुए। यह महाभारत के भीष्मपर्व का अंग है। जिन्हें वेदव्यास ने संस्कृत में लिखा और जनसुलभ कराया। गीता में 18 अध्याय और 700 श्लोक हैं। भारतीय परंपरा में उपनिषद और ब्रह़मसूत्र जैसी पुस्तकें भी हैं, लेकिन गीता इतनी लोकप्रिय हुई कि आज भी लगभग हर हिंदू परिवार में यह पढ़ी जाती है। गीता के श्लोक आम जन में मुहावरों की तरह भी कहे जाते हैं।
गीता प्रेस ने 1923 में श्रीमद्भगवद गीता का प्रकाशन शुरू किया था। तब से इसकी 70 करोड़ से अधिक प्रतियां बिक चुकी हैं। जबकि हिंदी, अंग्रेजी, अरबी सहित कई भाषाओं में अनुवादित होकर यह पुस्तक दुनिया के हर हिस्से में पहुंच चुकी है। गीता को दुनिया भर में मिली स्वीकार्यता बताती है कि यह धार्मिक नहीं बल्कि दार्शनिक ग्रंथ है।
गीता पर सबसे ज्यादा भाष्य
संस्कृत साहित्य में भाष्य उसे कहा जाता है, जिसमें किसी दर्शन या ग्रंथ की व्याख्या की जाती है। यह अनवाद के रूप में भी हो सकता है। गीता एकमात्र ऐसा ग्रंथ है जिस पर दुनियाभर में सबसे ज्यादा भाष्य, टीका, व्याख्या, टिप्पणी, निबंध, शोधग्रंथ आदि लिखे जा चुके हैं। 18वीं सदी में अंग्रेज गवर्नर जनरल गीता से अत्यधिक प्रभावित था। उसकी प्रेरणा से चार्ल्स विल्किंस ने अंग्रेजी भाषा में गीता का अनुवाद किया था। इस अनुवाद को पढ़कर जर्मन भाषी प्रश्या राज्य का मंत्री विल्हेमवान हम्बोल्ड भाव- विभोर हो गया। उसने जर्मन विद्वानों को संस्कृत वाङ्मय के रत्नों को बटोरने की प्रेरणा दी थी।
गीता पर ओशो के प्रवचन हैं श्रेष्ठ
भारत में आदि शंकराचार्य, रामानुज, रामानुजाचार्य, मध्वाचार्य, निम्बार्क, भास्कर, वल्लभ, श्रीधर स्वामी, आनन्द गिरि, मधुसूदन सरस्वती, संत ज्ञानेश्वर, बालगंगाधर तिलक, परमहंस योगानंद, महात्मा गांधी, सर्वपल्ली डॉ. राधाकृष्णन, महर्षि अरविन्द घोष, एनी बेसेन्ट, गुरुदत्त, विनोबा भावे, स्वामी चिन्मयानन्द, चैतन्य महाप्रभु, स्वामी नारायण, जयदयाल गोयन्दका, ओशो रजनीश, स्वामी क्रियानन्द, स्वामी रामसुखदास, श्रीराम शर्मा आचार्य आदि सैंकड़ों विद्वानों ने गीता पर भाष्य लिखे या प्रवचन दिये हैं। लेकिन कहते हैं कि ओशो रजनीश ने जो गीता पर प्रवचन दिये हैं वह दुनिया के सर्वश्रेष्ठ प्रवचन हैं।
गीता के प्रमुख तत्व
आत्मा की अमरता– गीता के अनुसार आत्मा अमर है और इसको कोई नष्ट नहीं कर सकती। इस विचार के लिए गीता यह श्लोक बहुधा कहा और सुना जाता है-
नैनं छिन्दन्ति शस्त्राणि नैनं दहति पावकः। न चैनं क्लेदयन्त्यापो न शोषयति मारुतः॥
इस श्लोक का अर्थ है कि आत्मा को न शस्त्र काट सकते हैं, न आग उसे जला सकती है। न पानी उसे भिगो सकता है, न हवा उसे सुखा सकती है।
पुनर्जन्म– गीता के अनुसार मनुष्य समेत संसार के सभी जीव मृत्यु के बाद पुनर्जन्म लेते हैं, यह विचार भी आत्मा की अमरता के साथ जुड़ता है, आत्मा एक शरीर को छोड़ने के बाद दूसरे शरीर में प्रवेश करती है। इसे ही पुनर्जन्म कहा गया है।
कर्मयोग – गीता में मनुष्य के लिए कर्म को सर्वोपरि बताया गया है, लेकिन फल की चाह या आसक्ति से दूर रहकर ही कर्म करना चाहिए। इसके लिए गीता में महत्वपूर्ण श्लोक है-
कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।
मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते सङ्गोऽस्त्वकर्मणि॥