प्रख्यात पत्रकार नेता डॉ. के. विक्रम राव का निधन, श्रमजीवी पत्रकारों की आवाज़ हमेशा बुलंद की
Pen Point, 12 मई 2025 : वरिष्ठ पत्रकार, लेखक और श्रमजीवी पत्रकारों के अडिग योद्धा ’’डॉ. के. विक्रम राव’’ का सोमवार को निधन हो गया। वे लंबे समय से बीमार चल रहे थे। उनके निधन से पत्रकारिता जगत में शोक की लहर दौड़ गई है। वे भारतीय श्रमजीवी पत्रकार महासंघ के अध्यक्ष रहे और दशकों तक देशभर के पत्रकारों की आवाज़ बनकर खड़े रहे।
डॉ. राव का जीवन पत्रकारिता के साथ-साथ श्रमिक आंदोलनों और समाजवादी विचारधारा के लिए समर्पित रहा। उन्होंने न केवल पत्रकारों के अधिकारों के लिए आवाज़ बुलंद की, बल्कि श्रमिकों के शोषण और मीडिया संस्थानों में हो रहे अन्याय के खिलाफ भी लगातार संघर्ष किया। उनका मानना था कि ’’पत्रकार केवल सूचनाओं का वाहक नहीं, बल्कि समाज में बदलाव का उत्प्रेरक होता है।’’
लगभग दो दशक पूर्व हरिद्वार में आयोजित पत्रकार संगठनों के एक तीन-दिवसीय सम्मेलन में डॉ. राव से अनेक पत्रकारों की मुलाकात हुई थी। वहाँ उनके ’’नेतृत्व कौशल, वक्तृत्व क्षमता और संगठन पर गहरी पकड़’’ को देखकर युवा पत्रकारों में नया उत्साह संचारित हुआ था। उस सम्मेलन में उन्होंने श्रमजीवी पत्रकारों की सेवा शर्तों, वेतनमान, और कार्यस्थल पर उत्पीड़न जैसे मुद्दों पर खुलकर चर्चा की और ठोस नीतिगत सुझाव दिए।
उनकी लेखनी में विचार की धार थी। वे टाइम्स ऑफ इंडिया समूह से जुड़ने के बाद कई वर्षों तक पत्रकारिता करते रहे और बाद में उन्होंने स्वतंत्र लेखन को माध्यम बनाकर श्रमिकों और पत्रकारों की बात राष्ट्रीय विमर्श में शामिल करवाई। उनके कॉलमों में ’’श्रमिक अधिकारों, सामाजिक न्याय, पत्रकारों की स्वतंत्रता, वैश्वीकरण, साम्राज्यवाद’’ और राजनीतिक भ्रष्टाचार जैसे विषयों पर सशक्त विश्लेषण मिलता था।
डॉ. राव के लेखन में ’’समाजवादी दर्शन’’ की स्पष्ट छाया थी। उनके संबंध ’’जॉर्ज फर्नांडीज’’ जैसे प्रमुख समाजवादी नेताओं से भी रहे, जिनसे उन्होंने राजनीति और सामाजिक आंदोलनों की गहरी समझ प्राप्त की। वे मानते थे कि पत्रकारिता का दायित्व केवल सूचना देना नहीं, बल्कि सत्ता से सवाल पूछना और वंचित वर्गों की आवाज़ बनना है।
उनके निधन से देश के पत्रकार संगठनों को एक ऐसा नेतृत्व खोना पड़ा है, जिसने संघर्षों से कभी मुँह नहीं मोड़ा। उन्होंने सरकारों के सामने निडरता से पत्रकार हितों की बात रखी, चाहे वह ’’मान्यता, पेंशन, वेतन आयोग या सुरक्षा की मांग हो’’।
’’भारतीय श्रमजीवी पत्रकार महासंघ’’, कई राज्यों के प्रेस संगठनों और पत्रकारों के वरिष्ठ जनों ने उनके निधन पर शोक व्यक्त करते हुए कहा कि ’’“डॉ. राव जैसा निर्भीक, निष्ठावान और विचारशील नेतृत्व पत्रकारिता में विरले ही देखने को मिलता है।”’’
उनकी स्मृति में आने वाले दिनों में अनेक श्रद्धांजलि सभाओं का आयोजन होने जा रहा है। साथ ही, पत्रकार संगठनों की ओर से उनके जीवन और संघर्षों को दस्तावेज़ के रूप में संकलित करने की योजना भी बन रही है।
डॉ. के. विक्रम राव पर एक नजर
पूरा नाम- डॉ. केदारनाथ विक्रम राव
जन्म- 1942, कानपुर, उत्तर प्रदेश
निधन- 12 मई 2025
पत्रकारिता में योगदान
-टाइम्स ऑफ इंडिया समूह में वरिष्ठ संवाददाता के रूप में कार्य किया
-चार दशकों से अधिक समय तक स्वतंत्र स्तंभकार के रूप में सक्रिय
-पत्रकारों की स्वतंत्रता, श्रमिक अधिकार, वैश्वीकरण व सामाजिक न्याय’’ जैसे विषयों पर लेखन, उनके लेख देश-विदेश के समाचार पत्रों व पत्रिकाओं में प्रकाशित हुए
नेतृत्व भूमिका
-भारतीय श्रमजीवी पत्रकार महासंघ के राष्ट्रीय अध्यक्ष
-देशभर के पत्रकार संगठनों को एक मंच पर लाने में महत्वपूर्ण भूमिका
-राज्य व केंद्र सरकारों के समक्ष पत्रकारों की सुरक्षा, वेतन व मान्यता जैसे मुद्दों पर कई बार सफल पैरवी
-पत्रकार सुरक्षा कानून की मांग को राष्ट्रीय स्तर पर प्रमुखता से उठाया
वैचारिक रुझान
समाजवादी विचारधारा से प्रेरित। जॉर्ज फर्नांडीज जैसे नेताओं से निकट संबंध रहे। साम्राज्यवाद, नव-उदारवाद व श्रमिक आंदोलनों जैसे अंतर्राष्ट्रीय मुद्दों पर प्रखर टिप्पणीकार थे।
सम्मान व पहचान
-कई राष्ट्रीय पत्रकार सम्मानों से सम्मानित
-विभिन्न विश्वविद्यालयों व संस्थानों में व्याख्यानदाता के रूप में आमंत्रित
-पत्रकारिता में वैचारिक स्पष्टता और नैतिक प्रतिबद्धता के प्रतीक माने जाते रहे
डॉ. के. विक्रम राव के प्रेरक उद्धरण
-पत्रकारिता एक पेशा नहीं, जनहित में लड़ी जाने वाली लड़ाई है।
-जो कलम सत्ता के डर से कांपती है, वह समाज का नेतृत्व नहीं कर सकती।
-पत्रकारों की आज़ादी लोकतंत्र की ज़मीन की उर्वरता है, अगर यह सूख गई तो पूरा तंत्र बंजर हो जाएगा।
-सामाजिक न्याय की आवाज़ अगर अखबारों से ग़ायब हो जाए, तो वे महज़ विज्ञापन की चादर बनकर रह जाएंगे।”’’
-हम न मजदूर हैं, न मालिक हम वो मशाल हैं जो दोनों के बीच सच्चाई का उजाला करती है।