112 साल पहले आज ही के दिन कलकत्ता से दिल्ली हो गई देश की राजधानी
PEN POINT, DEHRADUN : आज की तारीख भारत के इतिहास में विशेष तौर पर दर्ज है। ठीक 112 साल पहले आज ब्रिटिश हुकूमत ने कलकत्ता से देश की राजधानी दिल्ली बनाने का आदेश पारित किया था। ये कहानी ब्रिटिश दौर की है। हालांकि इससे पहले भी कई बड़ी सल्तनतोें ने बतौर राजधानी दिल्ली से अपना शासन संचालित किया था। जिसमें खिलजी, तुगलक, सैयद और लोदी वंश के अलावा भी कई अन्य वंशों के नाम शामिल हैं। यहां तक कि मुगल काल में अकबर दिल्ली से राजधानी आगरा ले गया। लेकिन उसके पोते शाहजहॉं ने 17वीं सदी में वापस अपनी राजधानी दिल्ली में बसाई,तब उसे पुरानी दिल्ली या शाहजहॉंनाबाद के नाम से जाना जाता था।
आज ही के दिन 13 फरवरी 1931 को देश की राजधानी नई दिल्ली का उद्घाटन हुआ था। ये तो हम जानते है कि हमारे देश की राजधानी नई दिल्ली है, लेकिन ये नहीं जानते कि बनी कैसे। तो आइये आज इसके बारें में विस्तृत रूप से जानते हैं। दिल्ली के आखिरी मुगल शासक थे बहादुर शाह जफर। 1857 के सिपाही विद्रोह के दौरान उन्होंने भारतीय सैनिकों का नेतृत्व किया था, लेकिन इस विद्रोह में हम अंग्रेजों से हार गए और दिल्ली पर ब्रिटिश शासन की हुकूमत हो गई। 1857 के प्रथम सवतंत्रता संग्राम आंदोलन को दबाने के बाद अंग्रेजों ने बहादुर शाह जफर को बंदी बनाकर निर्वासन के लिए रंगून (वर्तमान म्यांमार) भेज दिया और इसी निर्वासन के दौरान 1862 में रंगून में ही उनकी मृत्यु हो गयी। अब भारत पूरी तरह से अंग्रेजों के अधीन हो गया था।
अब आते हैं फिर एक बार ब्रिटिश दौर में राजधानी कोलकाता से दिल्ली ले जाने की कहानी की तरफ
शुरुआत में अंग्रेजों ने कलकत्ता (कोलकाता) से ही राजसत्ता संभाली, लेकिन ब्रिटिश शासन काल के आखिरी वक्त में ब्रिटिशर को लगने लगा कि यहाँ देश के पूर्व में यानी कोलकाता में बैठ कर अब शासन चलाना ठीक नहीं है। क्योंकि पीटर महान पीटर महान रूसी सम्राट था जिसके नेतृत्व में रूस रूढ़िवाद और पुरानी परम्पराओं को खत्म कर महान यूरोपीय शक्ति के रूप में उभरा था। उसकी शासन करने की विचारधारा पूरे यूरोप में फैल गयी। उसका असर भारतीय उपमहाद्वीप में भी होने लगा था।
इस डर के अलावा पूरे भारत और उसके पड़ोसी देश अफगानिस्तान और ईरान पर भी परी तरह नियंत्रण और सामंजस्य बैठाना मुश्किल हो रही थी। इन सब बातों को ध्यान में रखते हुए तत्कालीन वाइसरॉय लॉर्ड हार्डिंग ने यह जरूरी समझाा कि हमें राजधानी कोलकाता से दिल्ली ले जाना चाहिए। इसी दौरान ब्रिटेन के महाराजा जॉर्ज पंचम अपनी रानी मैरी के साथ भारत आने वाले थे, क्योंकि जॉर्ज पंचम और उनकी रानी मैरी का भारत के राजा और महारानी के रूप में भव्य स्वात होने वाला था।
ऐसे में वाइसरॉय लॉर्ड हार्डिंग ने उनके महाराजा और महारानी के स्वागत के लिए दिल्ली दरबार लगाने का आयोजन किया। स्वागत सत्कार के बाद राज दरबार शुरू हुआ। इसी आयोजन में हार्डिंग ने जॉर्ज पंचम के सामने यह राजधानी का नया प्रस्ताव रखा कि राजधानी कोलकाता से दिल्ली ले जाना चाहिए। ताकि शासन सुचारु रूप से चल सके। इस पर विचार करने के बाद जॉर्ज पंचम ने देश की राजधानी दिल्ली ले जाने के आदेश दे दिए। अंग्रेजों के समय भी कई राजाओं ने दिल्ली को ही राजधानी बनाकर अच्छे तरीके से शासन चलाया था, इस बात को वो वॉयस रॉय अच्छी तरह समझ चुका था।
12 दिसंबर 1911 को दिल्ली दरबार के दौरान कोरोनेशन पार्क और किंग्सवें कैम्प में वाइसरॉय के निवास के लिए नींव रखते हुए तत्कालीन भारत के राजा जॉर्ज पंचम और उनकी रानी मैरी ने घोषणा कर दी कि देश की राजधानी कोलकाता से दिल्ली स्थानांतरित की जायेगी। अगले साल 1 अप्रैल 1912 को दिल्ली भारत की राजधानी है इसकी औपचारिक घोषणा करते हुए राजधानी दिल्ली शिफ्ट करने पर फैसला ले लिया गया।
दिल्ली को नऐ शहर के रूप में ओर अंग्रेजो के अनुकूल बनाने के लिए निर्माण योजना की जिम्मेदारी ब्रिटिश वास्तुकार सर एड्विन्स लैंडसियर लूट्यन्स और सर हर्बर्ट बेकर को दी गयी। ये दोनों दिल्ली के कई स्मारकों के मुख्य शिल्पकार रहे। इनमें सबसे प्रमुख नेशनल वॉर मेमोरियल (वर्तमान इंडिया गेट) और वाइसरॉय हाउस (वर्तमान राष्ट्रपति भवन) है। इसी वजह से दिल्ली को लूट्यन्स की दिल्ली के नाम से भी जाना जाता है। लुटयंस ने दिल्ली शहर को बसाने में गजब की वास्तुकारिता दिखाई थी। इनकी उस समय की नई दिल्ली की अभिकल्पना को आज भी बहुत शानदार सराहना मिलती है।
भारत की नई राजधानी को नाम इसके उद्घाटन से कुछ साल पहले 31 दिसंबर 1926 को मिला। नई राजधानी का नाम नई दिल्ली चयन करने से पहले रायसीना, इंपीरियल दिल्ली और दिल्ली साउथ जैसे नामों पर भी विचार किया गया। बावूजूद इस विचार के इतर तत्कालीन वाइसरॉय लॉर्ड इरविन राजधानी के नाम में दिल्ली शब्द रखना चाहते थे, इसलिए उन्होंने नई दिल्ली नाम पर मोहर लगाई और वाइसरॉय के निर्णय लेने के बाद सरकारी अधिसूचना जारी कर दी गई। दिल्ली एक महानगर है और नई दिल्ली, दिल्ली के 11 जिलों में से एक मुख्य जिला है। यह दिल्ली के दक्षिणी हिस्से में आता है। नई दिल्ली के निर्माण का कार्य पहले विश्वयुद्ध के बाद शुरू हुआ। इसलिए नई राजधानी की घोषणा करने के 20 साल बाद निर्माण का काम पूरा हो पाया और 13 फरवरी 1931 को तत्कालीन वाइसरॉय लॉर्ड इरविन ने नई दिल्ली का राजधानी के तोर पर उद्घाटन किया।
15 अगस्त 1947 को आजाद होने के बाद नई दिल्ली को सीमित मात्रा में शक्ति प्रदान की गयी। यहाँ का प्रशासन भारत सरकार ने एक मुख्य आयुक्त को नियुक्त कर चलाने को दिया। 1966 में दिल्ली को केंद्रशासित प्रदेश के रूप में बदल दिया गया और मुख्य आयुक्त को उपराज्यपाल के रूप में बदलते हुए सारी शक्तियां इन्हें सौंपी गयी। 69वें संविधान संशोधन अधिनियम 1991 के अंतर्गत दिल्ली केंद्रशासित प्रदेश को राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र के रूप में बदल दिया गया तथा विधानसभा का प्रावधान लाया गया।
इस हिसाब से अब केंद्रशासित प्रदेश में चुनी हुई सरकार को प्रदेश चलाने का अधिकार मिल गया। लेकिन केंद्र सरकार ने कानून और व्यवस्था पर पूर्ण नियंत्रण अपने पास रखा। इसी वजह से तो केंद्र और दिल्ली सरकार की बीच-बीच में ठन जाती है। इसके बाद 70वें संविधान संशोधन अधिनियम के अंतर्गत दिल्ली विधानसभा के सदस्यों को राष्ट्रपति के निर्वाचन मंडल में शामिल किया गया।
आज अपने देश की राजधानी के इतिहास के कुछ पहलुओं को हमने इसेलिए याद करने की जरूरत समझी क्योंकि आज 12 दिसंबर वो तारीख है जब साल 1911 में भारत की राजधानी कलकत्ता (अब कोलकाता ) से बदलकर दिल्ली कर दी गई। इसकी घोषणा खुद ब्रिटेन के राजा जॉर्ज पंचम ने की थी। दरअसल ये पहला मौका था जब ब्रिटेन के राजा भारत आए थे। इस ऐतिहासिक घोषणा के लिए पूरी दिल्ली को दुल्हन की तरह सजाया गया था। किसी तरह की अराजकता न हो इसलिए जबरदस्त गिरफ्तारियां की गईं। इतिहासकार मानते हैं कि अंग्रेज दिल्ली पर अपनी छाप छोड़ना चाहते थे और ऐसा करने में वो सफल भी रहे। अंग्रजों ने यहां वायसराय हाउस और नेशनल वॉर मेमोरियल जैसी इमारतें बनाईं, जिन्हें आज हम राष्ट्रपति भवन और इंडिया गेट के नाम से जानते हैं।