कफल्टा नरसंहार के 44 साल : जब दूल्हे के पालकी से न उतरने पर गुस्साए सवर्णों ने कर दी 14 दलितों की हत्या
– अल्मोड़ा जनपद के कफल्टा गांव में साल 1980 में पालकी से उतरने से दलित दूल्हे के इंकार से भड़के सवर्णों ने 14 दलितों को जलाकर मार डाला था, एक ब्राह्मण की हत्या से गुस्साए सवर्णों ने इस खूंखार घटना को दिया था अंजाम
Pen Point, Dehradun : 44 साल पहले अल्मोड़ा जनपद के सल्ट में एक सामूहिक हत्याकांड की एक ऐसी घटना घटी थी जिसने पहाड़ की शांत माहौल की छवि पर एक धब्बा तो लगा ही दिया साथ ही पहाड़ में व्याप्त जातिगत भेदभाव की क्रूर तस्वीर भी दुनिया के सामने लाकर रख दी। एक दलित दूल्हे के पालकी से उतरने से इंकार करना गांव के सवर्णों को इतना नागवार गुजरा कि बारात में शामिल 14 दलितों को जिंदा जलाकर मार डाला गया। पीड़ित परिवारों को न्याय के लिए 17 साल का इंतजार करना पड़ा। पहले निचली अदालतों ने और उच्च न्यायालय ने सभी आरोपियों को दोषमुक्त कर दिया था लेकिन साल 1997 में सर्वोच्च न्यायालय से पीड़ितों को न्याय मिल सका।
9 मई 1980 का दिन था, अल्मोड़ा के सल्ट बिरलगांव में दलित लोहार परिवार के श्याम प्रसाद की बारात गांव से निकली। पालकी में बैठे दूल्हे श्याम प्रसाद के साथ उसके नाते रिश्तेदार भी बारात के साथ शामिल थे। बारात जब कफल्टा गांव से होकर गुजर रही थी तो गांव में प्रवेश करने से पहले ही गांव की महिलाओं ने बारात को चेताते हुए कहा कि दूल्हे की पालकी गांव से नहीं गुरजेगी और दूल्हे को पालकी से उतरकर गांव के एक छोर से दूसरे छोर तक पैदल ही जाना होगा। उस दौरान दलित दूल्हों को घोड़े, पालकी पर बैठने को लेकर पहले भी कई गांवों में विवाद हो चुके थे। महिलाओं की चेतावनी को दरकिनार करते हुए बारात ने दूल्हे को पालकी से नहीं उतारा और गांव के भीरत प्रवेश करना शुरू किया। इतने पर महिलाओं ने शोर मचाना शुरू किया और गांव के लोगों को बुलाने लगी तभी उसी दौरान छुट्टी में आए फौजी खिमानंद जो कि जाति से ब्राह्मण था वहां पहुंचा और गुस्से से दूल्हे की पालकी को उलटा दिया। दूल्हे के साथ हुई बदसलूकी को देख बारात में शामिल मेहमानों ने भी खिमानंद पर हमला बोल दिया, हमले में खिमानंद की मौत हो गई। खिमानंद की मौत की खबर जैसे ही गांव में फैली गांव के सवर्ण तुरंत ही मौके पर पहुंच गए। दलितों के हाथों ब्राह्मण खिमानंद की हत्या से सवर्ण बौखला गए और अब बारी उनकी थी बदला लेने की। गुस्साए ब्राह्मण बारात में शामिल दलित मेहमानों पर टूट पड़े। भारी भीड़ के सामने दलित मेहमानों में अफरा तफरी मच गई। जान बचाने के लिए सारे मेहमान कफल्टा में रहने वाले इकलौते दलित नरी राम के घर के भीतर चले गए और गुस्साए सवर्णों से बचने के लिए भीतर से दरवाजा बंद कर कुंडी लगा दी। सवर्णों के सिर पर खून सवार था। वे हर हाल में एक जान के बदले सारे मेहमानों की जान लेना चाहते थे तो उन्हांने नरीराम के घर को घेर लिया और उसकी छत तोड़ डाली। छत तोड़कर घर पर मिट्टी का तेल और ज्वलनशील पिरूल, लकड़ी डालकर घर को आग लगा दी। घर में ली आग से घर के भीतर छिपे 6 दलित जलकर मर गए तो जो दलित आग से जान बचाने के लिए घर से बाहर निकले उन्हें गांव के सवर्णों ने पीट पीटकर मार डाला। आग से बचने के लिए घर से बाहर निकले 8 दलितों को खेतां में दौड़ा दौड़ा कर पीट कर मार दिया या। शुक्र यह रहा कि दूल्हा बने श्याम प्रसाद और कुछ अन्य बाराती किसी तरह अपनी जान बचाकर भागने में सफल हो सके। तो एक 16 साल के लड़के को गांव वालों ने बंधक बना दिया और उसे मवेशियों के साथ गोठ में बंद कर दिया जिसे तीन बाद पुलिस ने बाहर निकाला।
दलितों के सामूहिक जन नरसंहार ने देश भर को झकझोर कर रख दिया। घटना इतनी बड़ी थी कि तत्कालीन केंद्रीय गृह मंत्री ज्ञानी जैल सिंह को भी अल्मोड़ा के इस सुदूर गांव में पहुंचना पड़ा। इस घटना की दुनिया भर में आलोचना हुआ, देश दुनिया की मीडिया ने भी कफल्टा नाम के इस छोटे गांव में डेरा डाला।
इस क्रूर नरसंहार ने देशभर में हलचल पैदा तो कर दी लेकिन स्थानीय प्रशासन और सरकार भी आरोपियों को बचाने में जुट गई थी। आलम यह था कि मामला जब अदालत में पहुंचा तो सुनवाई के बाद पहले निचली अदालत और फिर हाईकोर्ट ने नरसंहार में शामिल आरोपियों को सुबूतों के अभाव में दोषमुक्त करते हुए रिहा कर दिया। पीड़ितों की ओर से इस मामले में सर्वोच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया गया तो घटना के 17 साल बाद यानि 1997 में नरसंहार के 16 आरोपियों को उम्रकैद की सजा सुनाई हालांकि फैसला आने तक तीन आरोपियों की मौत हो चुकी थी।
इन दलितों की हुई थी हत्या
1- बन राम
2- बिर राम
3- गुसाईं राम
4- मोहन राम
5- भैरव प्रसाद
6- सारी राम
7- मोहन राम
8- बची राम
9- माधो राम
10- राम किशन
11- झुस राम
12- प्रेम राम
13- रामप्रसाद
14- गोपाल राम