राज्य के खजाने पर भारी पड़ रही है गैरसैंण सत्र की रस्मअदायगी
–विधानसभा भवन निर्माण समेत विधायक आवास पर अरबों रूपये हुए हैं खर्च, गैरसैंण में विधानसभा सत्र सिवाय रस्म अदायगी के कुछ नहीं
पंकज कुशवाल, देहरादून। गैरसैंण, पृथक राज्य आंदोलन के दौरान पृथक पर्वतीय राज्य की मांग के साथ ही राज्य की राजधानी गैरसैंण स्थापित करना भी आंदोलन का मुख्य एजेंडा रहा था। वीर चंद्र सिंह गढ़वाली के नेतृत्व में इस पर्वतीय राज्य के केंद्र में स्थित गैरसैंण को राजधानी के लिए उपयुक्त माना गया था लेकिन नवंबर 2000 को राज्य गठन के साथ ही गैरसैंण को गैर कर देहरादून को राजधानी बना दी गई। अस्थाई राजधानी के नाम पर देहरादून में राजधानी से जुड़ी सभी आधारभूत सुविधाओं की स्थापना तेजी से की गई। राज्य गठन के बाद राज्य आंदोलनकारियों को सरकारी नौकरी, पेंशन, राजनीति में नई संभावनाओं के खुलने से इस बात का भी विरोध शांत पड़ता गया। पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ने सबसे पहले गैरसैंण में विधानसभा सत्र आयोजित करने का फैसला लिया था। 9 जून 2014 से 11 जून 2014 तक गैरसैंण में पहला विधानसभा सत्र आयोजित किया गया। इसके साथ ही गैरसैंण में भी राजधानी के नाम सत्र आयोजन की रस्मअदायगी की भी शुरूआत हो गई। गैरसैंण बाजार से दो किमी की दूरी पर शामियानें सजाए गये, टैंट लगाकर हुए इस विधानसभा सत्र के जरिए तत्कालीन मुख्यमंत्री हरीश रावत गैरसैंण राजधानी को लेकर बड़ा संदेश देने की कोशिश कर रहे थे। तब तक गैरसैंण मुद्दा उत्तराखंड की राजनीति में राम मंदिर मुद्दे जैसे हो चुका था, हर चुनाव में भाजपा कांग्रेस के घोषणा पत्र में गैरसैंण को स्थाई राजधानी बनाने की बात तो होती लेकिन चुनाव जीतने के बाद दोनों पार्टियां गैरसैंण में राजधानी स्थापित करने को लेकर कोई खास पहल नहीं कर सकी।
पहले विधानसभा सत्र से जगी थी आस
2014 में जून के तपते महीने में जब राज्य की अस्थाई राजधानी देहरादून तपकर गर्म भट्टी बन चुकी थी तो तत्कालीन मुख्यमंत्री हरीश रावत ने राज्य गठन के 14वें साल गैरसैंण में विधानसभा सत्र के आयोजन की शुरूआत कर ही डाली। इसे गैरसैंण में राजधानी स्थापना का मील का पत्थर बताया जाने लगा। पहला सत्र सिर्फ तीन दिन ही चल पाया और 11 जून की देर शाम गैरसैंण पहुंचे विधायक, मंत्री, आला अफसर देहरादून लौट जाए। इसके बाद अगले डेढ़ साल तक गैरसैंण में आयोजित इस विधानसभा सत्र को लेकर तत्कालीन कांग्रेस सरकार अपनी पीठ थपथपाती रही। उम्मीद थी कि 2014 में उठाए गए इस कदम से 2017 में होने वाले विधानसभा चुनाव में जरूर फायदा मिलेगा।
कब कितना हुआ खर्च
2014 में जुलाई महीने से ही करीब डेढ़ सौ करोड़ रूपये की लागत के साथ एनबीसीसी ने प्रस्तावित राजधानी गैरसैंण के भरारीसैंण में यह है गैरसैंण में विधानसभा सत्र के रस्मअदायगी का खर्च 9 जून 2014 से 11 जून 2014 तक आयोजित पहले विधानसभा सत्र में 57 लाख रूपये का खर्च आया। 1 नवंबर 2015 से 2 नवंबर 2015 तक आयोजित सत्र में 2 लाख 32 हजार रूपये का खर्च आया जबकि पेयजल, बिजली, लोक निर्माण, राज्य संपति विभाग का खर्च इसमें शामिल नहीं है। नवंबर 2016 में हुए विधानसभा में 36 लाख रूपये से अधिक का खर्च आया। दिसंबर 2017 में आयोजित सत्र में 99 लाख रूपये का खर्च, मार्च 2018 में आयोजित सत्र में खर्च डेढ़ करोड़ से अधिक का खर्च, मार्च 2020 को आयोजित सत्र में डेढ़ करोड़ से अधिक का खर्च, मार्च 2021 में आयोजित सत्र में डेढ़ करोड़ से अधिक का खर्च, जबकि पांच सालों में फर्नीचर पर्दे जैसी व्यवस्थाओं पर सवा दो करोड़ रूपये का खर्च, कुल सत्र चले 26 दिन जिसमें 8 करोड़ 70 लाख रुपए यानी हर दिन का खर्च साढ़े 33 लाख रूपये का खर्च आया।