रानी चेन्नम्मा : जिसके कहर से थर्रा उठी थी ईस्ट इंडिया कंपनी
– ‘कर्नाटक की लक्ष्मीबाई’ के नाम से प्रसिद्ध रानी चेन्नम्मा ने दक्षिण भारत में अंग्रेजों के दांत किए थे खट्टे
PEN POINT देहरादून। भारत में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी से लोहा लेने वाली पहली भारतीय रानी चेन्नम्मा की आज पुण्यतिथि है। आज के ही दिन अंग्रेजों कैद किए जाने के बाद बेलहोंगल के किले में 21 फरवरी 1829 को उनकी मौत हो गई। लेकिन, उनकी बहादुरी ने अंग्रेजों को दक्षिण भारत के कर्नाटक प्रांत में शासन कब्जा करने की राह मुश्किल कर दी।
रानी लक्ष्मीबाई के नाम और बहादुरी से हर देशवासी वाकिफ है लेकिन कर्नाटक की रानी चेन्नम्मा की कहानी भी लगभग झांसी की रानी जैसी है। वह पहली भारतीय शासक थीं जिन्होंने ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के खिलाफ सशस्त्र विद्रोह किया। भले ही अंग्रेजों की सेना के मुकाबले उनके सैनिकों की संख्या कम थी और उनको गिरफ्तार किया गया। चेन्नम्मा का जन्म 23 अक्टूबर, 1778 को ककाती में हुआ था। यह कर्नाटक के बेलगावी जिले में एक छोटा सा गांव है। उनकी शादी देसाई वंश के राजा मल्लासारजा से हुई जिसके बाद वह कित्तुरु की रानी बन गईं। कित्तुरु अभी कर्नाटक में है। उनको एक बेटा हुआ था जिनकी 1824 में मौत हो गई थी। अपने बेटे की मौत के बाद उन्होंने एक अन्य बच्चे शिवलिंगप्पा को गोद ले लिया और अपनी गद्दी का वारिस घोषित किया। लेकिन, दत्तक पुत्र को राजगद्दी का वारिस न मानने की नीति और राज्य पर खुद का स्वाभाविक कब्जा करने की नीति के चलते ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी ने यह स्वीकार नहीं किया। ब्रिटिश ईस्ट इंडिया ने 1824 में कित्तुरू पर कब्जा कर दिया।
जब अंग्रेजों ने आग्रह ठुकराया
ब्रिटिश शासन ने शिवलिंगप्पा को निर्वासित करने का आदेश दिया। लेकिन चेन्नम्मा ने अंग्रेजों का आदेश नहीं माना। उन्होंने बॉम्बे प्रेसिडेंसी के लेफ्टिनेंट गवर्नर लॉर्ड एलफिंस्टन को एक पत्र भेजा। उन्होंने कित्तुरु के मामले में हड़प नीति नहीं लागू करने का आग्रह किया। लेकिन उनके आग्रह को अंग्रेजों ने ठुकरा दिया। इस तरह से ब्रिटिश और कित्तुरु के बीच लड़ाई शुरू हो गई। अंग्रेजों ने कित्तुरु के खजाने और आभूषणों के जखीरे को जब्त करने की कोशिश की जिसका मूल्य करीब 15 लाख रुपये था। लेकिन वे सफल नहीं हुए।
अंग्रेजों से पहला मुकाबला
महारानी चेन्नम्मा के इस कदम से ब्रिटिश सेना बौखला गई और ईस्ट इंडिया कंपनी ने 20,000 सिहापियों और 400 बंदूकों के साथ कित्तुरु पर हमला कर दिया। अक्टूबर 1824 में उनके बीच पहली लड़ाई हुई। उस लड़ाई में ब्रिटिश सेना को भारी नुकसान उठाना पड़ा। कलेक्टर और अंग्रेजों का एजेंट सेंट जॉन ठाकरे कित्तुरु की सेना के हाथों मारा गया। चेन्नम्मा के सहयोगी अमातूर बेलप्पा ने उसे मार गिराया था और ब्रिटिश सेना को भारी नुकसान पहुंचाया था। दो ब्रिटिश अधिकारियों सर वॉल्टर एलियट और स्टीवेंसन को बंधक बना लिया गया। अंग्रेजों ने वादा किया कि अब युद्ध नहीं करेंगे तो रानी चेन्नम्मा ने ब्रिटिश अधिकारियों को रिहा कर दिया। लेकिन अंग्रेजों ने धोखा दिया और फिर से युद्ध छेड़ दिया। इस बार ब्रिटिश अफसर चैपलिन ने पहले से भी ज्यादा सिपाहियों के साथ हमला किया। सर थॉमस मुनरो का भतीजा और सोलापुर का सब कलेक्टर मुनरो मारा गया। रानी चेन्नम्मा अपने सहयोगियों संगोल्ली रयन्ना और गुरुसिदप्पा के साथ जोरदार तरीके से लड़ीं। लेकिन अंग्रेजों के मुकाबले कम सैनिक होने के कारण वह हार गईं। उनको बेलहोंगल के किले में कैद कर दिया गया। वहीं 21 फरवरी 1829 को उनकी मौत हो गई।
भले ही ब्रिटिश सेना से रानी चेन्नम्मा यह युद्ध हार गई लेकिन यह युद्ध उनकी बहादुरी के लिए हमेशा याद रहा। उनकी बहादुरी को आज भी लोग उनकी जीत की तरह याद करते हैं।