सेब उत्पादक : एक तो कोढ़ तिस पर खाज
कम बर्फवारी के बाद अब लंगूरों के आतंक से सेब के पेड़ों पर भी खतरा
PEN POINT, DEHRDUN। इस साल पर्वतीय क्षेत्रों में कम बर्फवारी से किसानों के साथ ही बागवानों के चेहरे की रंगत भी उड़ी हुई है। उत्तरकाशी जनपद में सेब उत्पादन के लिए हर्षिल घाटी के सेब बागवानों के लिए जहां बेहद कम बर्फवारी ने अच्छे सेब उत्पादन की उम्मीदें तोड़ दी है तो अब रही सही कसर लंगूर पूरी कर रहे हैं। कम बर्फवारी होने से लंगूर निचले इलाकों में पहुंचकर सेब बगीचों में खूब उत्पात मचा रहे हैं। हालत यह है कि बागवानों को अब सोशल मीडिया के जरिए वन विभाग से लंगूरों के आतंक पर लगाम लगाने की मांग करनी पड़ रही है।
उत्तरकाशी जनपद का गंगोत्री से सटा उपला टकनौर की हर्षिल घाटी के सात गांव पर्यटन के साथ ही सेब उत्पादन के लिए प्रसिद्ध है। इन सात गांवों में सालाना तीन हजार मिट्रीक टन से अधिक सेब का उत्पादन किया जाता है। सेब की मिठास और गंगोत्री धाम यात्रा के प्रमुख पड़ाव होने के नाते यह क्षेत्र काफी संपन्न भी है। लेकिन, इस साल कम बर्फवारी ने इस इलाके के सेब उत्पादकों के चेहरे की रंगत उड़ा दी है। बर्फवारी कम होने से यहां सेब उत्पादन में भारी गिरावट दर्ज की जाती रही है। जमीन को पर्याप्त नमी न मिलने और तापमान में बढ़ोत्तरी के चलते सेब के फ्लावरिंग सीजन में भी बदलाव आ जाता है लिहाजा उत्पादन पर बुरा असर पड़ना तय है लेकिन इस साल यहां सेब उत्पादकों के लिए मौसम ने तो बड़ी मुसीबत खड़ी कर ही दी है लेकिन अब जंगली जानवर भी रही सही कसर पूरी कर रहे हैं। बर्फवारी कम होने से लंगूरों ने सेब बगीचों में पेड़ों को नुकसान पहुंचाना शुरू कर दिया है। जंगलों में खाने की कमी होने के चलते लंगूर बगीचों में पहुंचकर पेड़ों के तनों को छिलकर खा रहे हैं जिससे पेड़ों के सूखने की संभावनाएं पैदा हो रही है। मौसम के साथ ही लंगूरों के आतंक से परेशान किसान सोशल मीडिया पर वन विभाग से राहत की गुहार लगा रहे हैं। उत्तरकाशी के हर्षिल घाटी के जसपुर गांव निवासी नत्थी सिंह राणा ने फेसबुक पर अपने बगीचे में सेब के पेड़ों की फोटो शेयर करते हुए अपना दर्द बंया किया। उन्होंने बताया कि लंगूरों की टोली ने उनके बगीचे में लगे 200 पेड़ों को तहस नहस कर दिया।
इसके साथ ही हर्षिल, सुक्की, धराली, मुखबा के अन्य काश्तकारों ने भी यही दर्द बंया किया है। किसानों की माने तो इस साल बर्फ कम गिरने और समय से पहले गर्मियों की दस्तक से सेब उत्पादन बुरी तरह से प्रभावित होगा लेकिन लंगूर जिस तरह पेड़ों को नुकसान पहुंचा रहे हैं उसने समस्या को ज्यादा गंभीर बना दिया है। क्षेत्र के मौजू हालात ‘एक तो कोढ़ तिस पर खाज’ कहावत का ताजा उदाहरण बन गए हैं।