देहरादून के बनने की कहानी है झंडा मेला
PEN POINT, DEHRADUN : आज देहरादून में देश विदेश से हजारों श्रद्धालु सालाना होने वाले झंडेजी मेले के लिए जुटे हैं। सप्ताह भर से दरबार साहिब में आस्था रखने वाले श्रद्धालुओं का देहरादून पहुंचना जारी है। आज झंडे जी के आरोहण के साथ ही इस साल का झंडे जी मेला भी समाप्त हो जाएगा। उत्तराखंड की राजधानी और देश दुनिया के लोगां के बसने की सबसे पसंदीदा जगहों में शुमार देहरादून का वजूद ही दरबार साहिब से रहा है।
झंडा मेला 350 वर्ष से भी पुराना ऐतिहासिक मेला है। इस मेले में सुबह दरबार साहिब के बाहर स्थापित झंडे को उतारकर उसे दूध और गंगा जल से नहलाया जाता है। दोपहर 2 बजे से झंडे को दोबारा स्थापित करने की प्रक्रिया शुरू की जाती है।
देहरादून में वासंती बयार में आयोजित होने वाले झंडे मेला गुरु रामराय द्वारा प्रवर्तित उदासी सम्प्रदाय के अनुयायी सिखों द्वारा मनाया जाने वाला एक धार्मिक उत्सव है। इस उत्सव का आयोजन गुरू रामराय के देहरादून आगमन के साथ ही करीब 350 साल पहले शुरू हो गया था।
गुरु रामराय द्वारा स्थापित गुरुद्वारा
प्रथम महंत हरप्रसाद की नियुक्ति स्वयं गुरु राम राय की पत्नी पंजाब कौर के द्वारा की गयी थी। अपने पिता गुरु हरराय की गद्दी प्राप्त करने में असफल होने के बाद रामराय ने टौंस नदी के बांधे तट पर स्थित कन्दाली में अपना डेरा डाला था।
बाद में उन्होंने देहरादून के खुड़बबुड़ा नामक स्थान पर अपना डेरा डाला। उसी समय औरंगजेब से प्राप्त एक संस्तुतिपत्र के आधार पर गढ़वाल के राजा फतेहशाह के द्वारा उन्हें यहाँ पर तीन गावों, खुड़बबुड़ा, राजपुरा और अमासूरी, की जागीर दी गयी। गुरु रामराय ने 1694 में यहाँ पर गुरुद्वारे की स्थापना की और झंडा फहराया। तब से ही यहां हर वर्ष झंडा मेले का आयोजन किया जाता रहा है।
दून घाटी में मनाया जाने वाला यह सबसे बड़ा मेला है. इस दिन झंडा चौक पर इस उत्सव का आयोजन किया जाता है और झंडा फहराया जाता है। दरबार साहिब सामाजिक समरसता, परस्पर प्रेम और भाईचारे की अपनी सैकड़ों वर्ष पुरानी गौरवशाली परम्परा के साथ देश और दुनिया में एक विशेष पहचान रखता है।
डेरा दीन से पड़ा देहरादून नाम
देहरादून देश के सबसे तेजी से फैलते शहरों में शामिल है। लेकिन, देहरादून के नाम के पीछे भी रौचक किस्सा है। श्री गुरु राम राय महाराज का दून में आगमन 1676 में हुआ था। उन्होंने यहां के प्राकृतिक सौंदर्य से मुग्ध होकर ऊंची-नीची पहाड़ियों पर जो डेरा बनाया, उसी जगह का नाम डेरादीन कहा गया। आम बोलचाल में यह डेरादीन डेरादून कहाने लगा तो धीरे धीरे यह आम बोलचाल में देहरादून हो गया। श्री गुरु राम राय महाराज को देहरादून का संस्थापक कहा जाता है। गुरु राम राय महाराज सिखों के सातवें गुरु गुरु हर राय के ज्येष्ठ पुत्र थे। उनका जन्म होली के पांचवें दिन वर्ष 1646 को पंजाब के जिला होशियारपुर (अब रोपड़) के कीरतपुर में हुआ था।