उत्तराखंड के विकास की पोल खोलते राजधानी के रायपुर विकास खंड के ये गाँव
PEN POINT, DEHRADUN: प्रदेश के दूरदराज के इलाके विकास की बाट किस तरह जोह रहे होंगे इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि राजधानी देहरादून नगर निगम से सटे हुए ग्रामीण विकास खंड रायपुर के ग्रामीण इलाके सड़क जैसी मूल सुविधा से अब तक वंचित हैं। यहाँ कई इलाके ऐसे हैं जहाँ ग्रामीण बच्चों को स्कूल तक पहुँचने के लिए कई किलोमीटर पैदल जाना पड़ता है। धारकोट क्षेत्र के दो गाँव लडवा कोट और हल्द्वाडी आज भी विकास से कोसों दूर हैं। यहाँ से स्कूल पढ़ने वाले बच्चों को समय पर स्कूल पहुँचने के लिए सुबह सबेरे ही घर से निकलना पड़ता है। क्योंकि ये गाँव आज भी भी सड़क मार्ग से नही जुड़ पाए हैं।
ये हालत तो राजधानी से सटे ग्रामीण इलाकों के हैं। देहरादून के रायपुर ब्लॉक का दूरस्थ पहाड़ी पर बसा लडवा कोट और हल्द्वाडी गांव सड़क से ना जुड़ने के कारण ग्रामीण और छोटे छोटे बच्चे 10 किलोमीटर की लंबी दूरी पैदल नापने को मजबूर है। गांव के लोग अब तक सत्ता में काबिज रही सभी सरकारों से नाराज दिखाई देते हैं, इसके पीछे उनकी अपनी जायज वजहें है । लेकिन आज उनका गुस्सा और ज्यादा बढ़ गया है, वे मौजूदा भाजपा की धामी सरकार और उनके नुमाइंदों से कुछ ज्यादा नाराज हैं और कहते हैं कि जब वोट चाहिए और ये लोग मीलों पैदल चल कर गांव में आते हैं और विकास के कोरे सपने दिखाकर वोट मांगते हैं। हम से वोट लेकर सरकार बनाते हैं और सरकार बनने के बाद नेता हमारे गांव की तरफ झांकते तक की जहमत नहीं उठाते। ऐसा कहना है तलाईं गाँव के एक जागरूक ग्रामीण सुभाष कोठारी का।
स्कूल पहुँचने के लिए हर रोज रस्ते का एक बड़ा हिस्सा जंगल के बीच से गुजरता है। इस लम्बी दूरी को नापकर रोजाना स्कूल में पढ़ाई के लिए आने वाले बच्चों की आंखों में सपने तो हैं, लेकिन बेहद थका देने वाला ये पैदल सफर उनकी पढ़ाई और स्कूल के माहौल को नीरस बना देता है। इस वजह से बच्चे आज जिस सूचना और सोशल मीडिया के दौर में हैं उनके सामने सारी जानकारियां उपलब्ध है। ऐसे में सरकार के काम काज से वे बेहद मायूस हैं। बता दें कि इन दिनों लगातार दूसरी बार बीजेपी नेतृत्व वाली राज्य सरकार अपने कार्यकाल का एक साल का जश्न बेहद कामयाब बताकर जश्न मना रही है, पर चिराग तले अंधेरा वाली कहावत यहां पर सटीक बैठती है, क्योंकि सड़क से अछूते इस इलाके के यह दोनों गांव देहरादून से महज 25 किलोमीटर की दूरी पर हैं।
स्थानीय ग्रामीण रमेश सेमवाल बेलाग लपेट कहते है पहाड़ के विकास की बड़ी-बड़ी बातें करने वाली सरकार के लिए इन गांवों की स्थिति शर्मशार करने वाली तो है ही, वहीँ विकास के दावों की हकीकत भी बयां करती नजर आती है। अब देखने वाली बात होगी कि धामी सरकार और उनके नुमाइंदे कब तक सड़क से अछूते इन गांव के लिए अपने खजाने से धन की कोई व्यवस्था कर पाती है कि नहीं।