राहुल सांकृत्यायन : देश का सबसे बड़ा यायावर, जिसने घुम्मकड़ी को दिया धर्म का दर्जा
PEN POINT, DEHRADUN : राहुल सांस्कृत्यायन, घूमने के शौकीनों के लिए एक रोल मॉडल, इतिहास, धर्म, दर्शन संस्कृति में रूचि रखने वालों के लिए एक महत्वपूर्ण लेखक जिनका पूरा जीवन यायावरी में गुजरा और घुम्मकड़ी को धर्म का दर्जा दिया। 130 साल पहले आज के ही दिन केदारनाथ पांडे के रूप में जन्मे राहुल सांस्कृत्यायन की आज जयंती है।
9 अप्रैल 1893 को पैदा हुए राहुल सांकृत्यायन का असल नाम केदारनाथ पाण्डे’ था। 1930 में लंका में उन्होंने बौद्ध धर्म स्वीकार कर लिया जिसके बाद उनका नाम ‘राहुल’ हो गया। राहुल नाम के आगे सांस्कृत्यायन इसलिए लगा कि पितृकुल सांकृत्य गोत्रीय था।
दरअसल सांकृत्यायन में घुमक्कड़ी का बीज डालने वाले उनके नाना थे। पिता की मौत के बाद उनका बचपन ननिहाल में बीता था। नाना फौज में नौकरी कर चुके थे और पूरे देश में घूमे थे। नाना बाल केदारनाथ पांडे को घूमने की रौचक कहानियां सुनाते और देश की अलग अलग जगहों की बातें बताते। यहीं से केदारनाथ पांडे को घुमने की धुन सवार हुई।
युवा होने पर वह लंबे समय तक हिमालय पर रहे. बनारस में रहे। लाहौर में मिशनरी काम किया।दुनिया के तमाम देशों का भ्रमण किया।
राहुल सांकृत्यायन ने इंग्लैंड और यूरोप की यात्रा की। वह चीन, जापान, कोरिया, मंचूरिया, सोवियत भूमि, ईरान में घूमे। उस दौरान देश अंग्रेजों से आजादी की लड़ाई लड़ रहा था। राहुल सांस्कृत्यायन भी आजादी की जंग में कूदे।
राहुल सांकृत्यायन कम्युनिस्ट पार्टी के सदस्य रहे। किसान आंदोलन के दौरान 29 महीने (1940-42) जेल में रहे और जेल से छूटने के बाद सोवियत रूस चले गए।
घुम्मकड़ी को अपना धर्म मानने वाले राहुल सांकृत्यायन घुम्मकड़ी के बारे में कहा करते थे कि मेरी समझ में दुनिया की सबसे बेहतर चीज है घुमक्कड़ी और घुमक्कड़ से बढ़कर व्यक्ति और समाज का कोई हितकारी नहीं हो सकता। उनके अनुसार प्राकृतिक आदिम मनुष्य परम घुमक्कड़ था।
कई भाषाओं के जानकार
वह संस्कृत के साथ तिब्बती, पाली, प्राकृत, अपभ्रंश, चीनी, जापानी, सिंहली भाषाओं के साथ अंग्रेजी के बहुत अच्छे जानकार थे। राहुल ने अपनी यात्रा के अनुभवों को पिरोते हुए ही ऐसा साहित्य रचा, जिसे ‘घुमक्कड़ शास्त्र’ रचा. वह ऐसे घुमक्कड़ थे जो सच्चे ज्ञान की तलाश में था. हालांकि उनका जीवन अंतरविरोधों से अलग नहीं रहा।
घूमते रहे और 129 किताबें लिख डालीं
जिस तरह उनके पांव कभी नहीं रुके, उसी तरह उनके हाथ की लेखनी भी कभी नहीं रुकी। उनकी लेखनी से विभिन्न विषयों पर प्रायः 150 से अधिक ग्रन्थ लिखे गए। प्रकाशित ग्रन्थों की संख्या करीब 129 है।