गैरसैंण सत्र जल्दी निपटाने के चक्कर में राज्य आंदोलनकारियों से कर दिया खेल
– राज्य आंदोलनकारियों व उनके आश्रितों को 10 फीसदी क्षैतिज आरक्षण का विधेयक पटल पर नहीं रखा, जल्दी सत्र निपटाने के चक्कर में आंदोलनकारियों का आरक्षण लटका
PEN POINT, DEHRADUN : गैरसैंण में बीते दिनों बजट सत्र के बाद राज्य सरकार ने राज्य आंदोलनकारियों व उनके आश्रितों को सरकारी नौकरियों में 10 फीसदी क्षैतिज आरक्षण देने के विधेयक पर अपनी पीठ खूब थपथपाई थी, साथ ही आंदोलनकारियों के कई संगठनों ने भी इस लंबित मांग के पूरे होने पर मुख्यमंत्री व राज्य सरकार का आभार जताया। लेकिन, अब पता चला है कि राज्य आंदोलनकारियों व उनके आश्रितों को सरकारी नौकरियों में 10 फीसद क्षैतिज आरक्षण का विधेयक फिलहाल कानून की शक्ल नहीं ले सकता है क्योंकि गैरसैंण की ठंड में कंपकंपाती सरकार ने इस संशोधित विधेयक को सदन पटल पर नहीं रखा। लिहाजा, विधायी नियमों के मुताबिक इसे फिर से राज्यपाल को नहीं भेजा सकता है। ऐसे में अब राज्य आंदोलनकारियों को नए विधानसभा सत्र का इंतजार करना होगा।
राज्य आंदोलनकारी लंबे समय से सरकारी सेवाओं में 10 फीसदी क्षैतिज आरक्षण की मांग कर रहे थे। सरकार ने इस विधेयक को जब राजभवन में स्वीकृति के लिए भेजा तो राजभवन ने संविधान के अनुच्छेद 14 व 16 का उल्लघंन मानते हुए इसे लौटा दिया था। तो राज्य सरकार ने भी इस विधये को संशोधित कर फिर से राजभवन भेजने की कवायद शुरू कर दी। पहले कैबिनेट मंत्री सुबोध उनियाल की अध्यक्षता में मंत्रिमंडलीय उपसमिति बनाई। उपसमिति ने आंदोलनकारियों को आरक्षण देने की सिफारिश की। गैरसैंण विधानसभा सत्र के दौरान कैबिनेट ने उपसमिति की सिफारिश पर मुहर लगाई।
अब होना यह था कि इस संशोधित विधेयक को बजट सत्र के दौरान विधान पटल पर रखा जाना था। बजट सत्र के दौरान ठंड से कंपकंपा रही राज्य सरकार ने बजट सत्र को तीन दिनों में समेट कर वापिस देहरादून कूच कर दिया। लेकिन, इस बीच यह भूल गई कि इस संशोधित विधेयक को सदन पटल पर रखकर इस पर चर्चा के बाद इसे राजभवन भेजा जाना था। हालांकि, गैरसैंण से लौटते ही इस बात का प्रचार प्रसार खूब किया गया कि राज्य आंदोलनकारियों की वर्षों पुरानी मांग पूरी हो गई है। सदन पटल पर विधेयक रखे बगैर इसे राजभवन नहीं भेजा जा सकता है।
संविधान का अनुच्छेद 14 व 16 सभी नागरिकों को समान अवसर मुहैया करवाने की वकालत करता है। ऐसे में इस विधेयक के पास होने की संभावनाएं बेहद कम है। यह आंदोलनकारियों व उनके आश्रितों को 10 फीसदी आरक्षण अनुच्छेद 14 व 16 का प्रतिकूल माना जा रहा है। वहीं, संविधान के अनुच्छेद 14 व 16 का हवाला देकर उच्च न्यायालय भी आंदोलनकारियों के आरक्षण को रद कर दिया था।
PEN POINT, DEHRADUN : गैरसैंण में बीते दिनों बजट सत्र के बाद राज्य सरकार ने राज्य आंदोलनकारियों व उनके आश्रितों को सरकारी नौकरियों में 10 फीसदी क्षैतिज आरक्षण देने के विधेयक पर अपनी पीठ खूब थपथपाई थी, साथ ही आंदोलनकारियों के कई संगठनों ने भी इस लंबित मांग के पूरे होने पर मुख्यमंत्री व राज्य सरकार का आभार जताया। लेकिन, अब पता चला है कि राज्य आंदोलनकारियों व उनके आश्रितों को सरकारी नौकरियों में 10 फीसद क्षैतिज आरक्षण का विधेयक फिलहाल कानून की शक्ल नहीं ले सकता है क्योंकि गैरसैंण की ठंड में कंपकंपाती सरकार ने इस संशोधित विधेयक को सदन पटल पर नहीं रखा। लिहाजा, विधायी नियमों के मुताबिक इसे फिर से राज्यपाल को नहीं भेजा सकता है। ऐसे में अब राज्य आंदोलनकारियों को नए विधानसभा सत्र का इंतजार करना होगा।
राज्य आंदोलनकारी लंबे समय से सरकारी सेवाओं में 10 फीसदी क्षैतिज आरक्षण की मांग कर रहे थे। सरकार ने इस विधेयक को जब राजभवन में स्वीकृति के लिए भेजा तो राजभवन ने संविधान के अनुच्छेद 14 व 16 का उल्लघंन मानते हुए इसे लौटा दिया था। तो राज्य सरकार ने भी इस विधये को संशोधित कर फिर से राजभवन भेजने की कवायद शुरू कर दी। पहले कैबिनेट मंत्री सुबोध उनियाल की अध्यक्षता में मंत्रिमंडलीय उपसमिति बनाई। उपसमिति ने आंदोलनकारियों को आरक्षण देने की सिफारिश की। गैरसैंण विधानसभा सत्र के दौरान कैबिनेट ने उपसमिति की सिफारिश पर मुहर लगाई।
अब होना यह था कि इस संशोधित विधेयक को बजट सत्र के दौरान विधान पटल पर रखा जाना था। बजट सत्र के दौरान ठंड से कंपकंपा रही राज्य सरकार ने बजट सत्र को तीन दिनों में समेट कर वापिस देहरादून कूच कर दिया। लेकिन, इस बीच यह भूल गई कि इस संशोधित विधेयक को सदन पटल पर रखकर इस पर चर्चा के बाद इसे राजभवन भेजा जाना था। हालांकि, गैरसैंण से लौटते ही इस बात का प्रचार प्रसार खूब किया गया कि राज्य आंदोलनकारियों की वर्षों पुरानी मांग पूरी हो गई है। सदन पटल पर विधेयक रखे बगैर इसे राजभवन नहीं भेजा जा सकता है।
संविधान का अनुच्छेद 14 व 16 सभी नागरिकों को समान अवसर मुहैया करवाने की वकालत करता है। ऐसे में इस विधेयक के पास होने की संभावनाएं बेहद कम है। यह आंदोलनकारियों व उनके आश्रितों को 10 फीसदी आरक्षण अनुच्छेद 14 व 16 का प्रतिकूल माना जा रहा है। वहीं, संविधान के अनुच्छेद 14 व 16 का हवाला देकर उच्च न्यायालय भी आंदोलनकारियों के आरक्षण को रद कर दिया था।