हिंदू धर्म छोड़कर मुसलमान क्यों नहीं बने डॉ. आंबेडकर
-महार जाति में पैदा हुए डॉ. आंबेडकर ने जातिगत भेदभाव से क्षुब्ध होकर 1936 में कर दी थी हिंदू धर्म त्याग करने की घोषणा
– इस घोषणा के बाद हैदराबाद के निजाम ने इस्लाम अपनाने पर 25 करोड़ रूपये देने की पेशकश की थी
Pankaj Kushwal, Dehradun : आज देश को सबके साथ समान व्यवहार, सबको बराबरी का अधिकार देने वाले पवित्र ग्रंथ संविधान के निर्माता डॉ. भीमराव आंबेडकर की जयंती है। हिंदु धर्म की महार जाति में पैदा हुए डॉ. अंबेडकर ने हिंदु धर्म त्याग कर बौद्ध धर्म अपना लिया था। दलित महार जाति में पैदा हुए और बचपन से ही जातिगत भेदभाव का क्रूरतम अनुभव लिए बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर हिंदू धर्म में व्याप्त जाति प्रथा के सख्त खिलाफ थे। 1935 में नासिक जिले में आयोजित दलित सम्मेलन में डॉ. भीमराव अंबेडकर ने घोषणा की थी कि मेरा जन्म हिंदू के रूप में हुआ लेकिन मैं एक हिंदू के रूप में मरूंगा नहीं। डॉ. भीमराव अंबेडकर की ओर से हिंदू धर्म त्यागने की बात सुनने के बाद ही अलग अलग धर्मों के धर्म गुरूओं, प्रतिष्ठित लोगों ने उन्हें अपने धर्म को स्वीकार करने का प्रस्ताव देने शुरू कर दिए।
उस दौरान के अमीर शख्स रहे हैदराबाद के निजाम ने तो डॉ. भीमराव अंबेडकर को अपने समर्थकों के साथ इस्लाम कुबूलने पर 25 करोड़ रूपये की पेशकश की। लेकिन, धर्म त्यागने की घोषणा के ठीक 20 साल बाद 14 अक्टूबर 1956 को डॉ. भीमराव अंबेडकर ने अपने साढ़े तीन लाख दलित समर्थकों के साथ नागपुर में हिंदू धर्म त्यागकर बौद्ध धर्म अपना लिया। उसके बाद से ही सवाल उठने शुरू हुए कि आखिर डॉ. आंबेडकर ने हिंदु धर्म त्याग कर तमाम लालच दिए जाने के बावजूद बौद्ध धर्म क्यों स्वीकार किया।
डॉ. आंबेडकर ने हिंदू धर्म छोड़ने की घोषणा 1936 में ही अपने भाषण जातिभेद का नाश यानी एनिहिलेशन ऑफ कास्ट में कर दी थी लेकिन उन्होंने धर्म परिवर्तन 1956 में जाकर किया। इस बीच उन्होंने सभी धर्मों का अध्ययन किया और फिर अपने हिसाब से श्रेष्ठ धर्म का चयन किया। अच्छे और कल्याणकारी, सबको समान मानने वाले धर्म की उनकी खोज उन्हें बौद्ध धम्म तक ले गई। इसलिए उन्होंने अपने अनुयायियों के साथ बौद्ध धम्म ग्रहण किया।
धर्म परिवर्तन से पहले उन्होंने इस्लाम के बारे में भी गहरा अध्ययन किया था। वो जातिवाद और दलितों की स्थिति के मामले में इस्लाम को हिंदू धर्म से बहुत अलग नहीं मानते थे। डॉ. भीमराव अंबेडकर इस्लाम धर्म की कई कुरीतियों के खिलाफ थे। डॉ. आंबेडकर मानते थे कि इस्लाम में भी हिंदू धर्म की तरह ऊंची जातियों का बोलाबाला है और यहां भी दलित हाशिये पर हैं। भीमराव अंबेडकर मानते थे कि दलितों की जो दशा है उसके लिए दास प्रथा काफी हद तक जिम्मेदार है और इस्लाम में दास प्रथा को खत्म करने के कोई खास प्रतिबद्धता नहीं दिखती है।