वन विभाग बना हुआ अखाड़ा, समझ से परे सरकार की खामोशी
– राज्य के वन महकमे में शीर्ष पद पर पिछले कई महीनों से नूराकुश्ती जारी, अब वीआरएस से बंद होगा चैप्टर
PEN POINT, DEHRADUN : करीब ढाई सालों से राज्य का सबसे महत्वपूर्ण वन महकमा अखाड़ा बना हुआ है और विभाग के शीर्ष पद पर नुराकुश्ती जारी है। 2021 में तत्कालीन वन प्रमुख डॉ. राजीव भरतरी को हटाकर जैव विविधता बोर्ड का मुखिया बनाकर हॉफ पर विनोद सिंघल को बिठाने से शुरू हुआ यह नूरा कुश्ती का खेल अब तक जारी है। कैट से लेकर हाईकोर्ट व सुप्रीम कोर्ट तक मामला चला गया लेकिन अब तक यह खेल खत्म नहीं हुआ है। अब बताया जा रहा है कि हॉफ की कुर्सी को लेकर वन विभाग का तमाशा बना चुके दोनों शीर्ष अधिकारी वीआरएस लेकर इस धींगामुश्ती का चैप्टर खत्म करने जा रहे हैं। लेकिन, बीते दो साल से चल रही इस लड़ाई में सरकार की खामोशी भी सवालों के घेरे में है। न तो मुख्यमंत्री न ही वन मंत्री ने पिछले दो सालों में इस विवाद को सुलझाने की कोशिश नहीं की है।
हुआ यूं था कि कालागढ़ टाइगर रिजर्व के पाखरो में वन विभाग ने टाइगर सफारी के निर्माण का निर्णय लिया था। इसकी अनुमति मिलने के बाद पाखरो में 106 हेक्टेयर वन क्षेत्र में टाइगर सफारी के लिए बाड़ों का निर्माण समेत कार्य किए गए। इस बीच वर्ष 2019 में टाइगर सफारी के लिए पेड़ कटान के साथ ही बड़े पैमाने पर अवैध निर्माण की शिकायत मिलने पर राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण (एनटीसीए) की टीम ने स्थलीय निरीक्षण किया। आरोपों की पुष्टि हुई तो कुछ अधिकारियों पर गाज भी गिरी। तो उत्तराखंड सरकार ने 25 नवंबर 2021 को वन सेवा के अधिकारी व वन विभाग के मुखिया डॉ. राजीव भरतरी को प्रमुख वन संरक्षक पद से जैव विविधता बोर्ड का अध्यक्ष पद पर तबादला कर दिया और उनके स्थान पर विनोद सिंघल को प्रमुख वन संरक्षक नियुक्त किया। अपनी वरिष्ठता का हवाला देकर राजीव भरतरी ने इस तबादले पर आपत्ति जताते हुए सरकार को चार प्रत्यावेदन दिए लेकिन उत्तराखंड सरकार ने इनकी एक न सुनी। तो राजीव भरतरी प्रमुख वन संरक्षक की कुर्सी से हुए तबादले के खिलाफ केंद्रीय प्रशासनिक न्यायाधिकरण यानि कैट में पहुंचे। लंबी सुनवाई के बाद कैट ने 24 फरवरी को पीसीसीएफ पद से राजीव भरतरी के तबादले के आदेश को निरस्त कर दिया। लेकिन, राज्य सरकार ने फिर भी राजीव भरतरी की बहाली पीसीसीएफ पद पर नहीं की और कैट में पुर्नर्विचार याचिका दाखिल की और साथ ही इस संबंध में विनोद सिंघल ने भी कैट में फैसले पर पुर्निविचार याचिका दाखिल की लेकिन दोनों ही याचिकाओं को कैट ने रद कर दिया लेकिन राज्य सरकार ने इस फैसले पर कोई विचार नहीं किया। इसके बाद राजीव भरतरी हाईकोर्ट की शरण में पहुंचे। हाईकोर्ट ने कैट के फैसले को सही पाते हुए 04 अप्रैल को राजीव भरतरी को हॉफ की कुर्सी सौंपने का आदेश राज्य सरकार को दिए। राज्य सरकार ने अनमने ढंग से हाईकोर्ट के आदेश का पालन करते हुए राजीव भरतरी को हाईकोर्ट द्वारा दिए समय के छह घंटे बाद चार्ज दिया साथ ही हाईकोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दे दी।
सुप्रीम कोर्ट ने भी तबादले को राज्य सरकार का विशेषाधिकार मानते हुए हाईकोर्ट के फैसले पर रोक लगा दी। अब बीते सोमवार को विनोद सिंघल को वापिस हॉफ की कुर्सी संभालनी थी लेकिन वह चार्ज लेने नहीं पहुंचे। सोमवार को पूरा दिन वन विभाग का मुख्यालय विनोद सिंघल का इंतजार करता रहा।
अब नजरें आज यानि मंगलवार पर टिकी हुई है। बताया जा रहा है कि सोमवार शाम को ही राजीव भरतरी ने वन मंत्री सुबोध उनियाल से भी मुलाकात की और अब इस चैप्टर के खत्म होने के कयास लगने शुरू हुए। सुबोध उनियाल ने भी दावा किया कि मंगलवार को करीब दो सालों से चल रहा यह चैप्टर बंद हो जाएगा।
यह निकाला है फार्मूला
हॉफ के पद को लेकर कोर्ट कचहरी खेल रहे वन विभाग के दोनों वरिष्ठ अधिकारी वीआरएस लेंगे उसके बाद किसी अन्य वरिष्ठ अधिकारी को हॉफ की कुर्सी सौंप दी जाएगी। हालांकि, वीआरएस लेने के लिए दोनों अधिकारियों के बीच सहमति होनी जरूरी है। माना जा रहा है कि वन मंत्री सुबोध उनियाल ने दोनों अधिकारियों से बातचीत कर दोनों को वीआरएस लेकर अहं की लड़ाई बने हॉफ की कुर्सी की दौड़ से अलग करने के लिए मनाया है।