भारत में 33 साल लंबे संघर्ष के बाद मिल सकी रविवार की छुट्टी
– भारत में 1890 से पहले नहीं मिलती थी रविवार की छुट्टी, कर्मचारियों, मजदूरों को सातों दिन करना पड़ता था काम
PEN POINT, DEHRADUN : आज रविवार है यानि छुट्टी का दिन, परिवार के साथ वक्त गुजारने का दिन, अधूरे घरेलू कार्यों को पूरा करने का दिन, घूमने फिरने का दिन। सप्ताह के सात दिनों में से कामकाजी लोगों को रविवार का बेसब्री से इंतजार रहता है। असल में पूरी दुनिया में रविवार के छुट्टी के पीछे धार्मिक कारण है लेकिन भारत में इसके पीछे एक लंबे संघर्ष की भी कहानी है। सप्ताह के सातों दिन काम करने वाले भारतीय मजदूरों, कर्मचारियों को करीब तीन दशक तक चले लंबे आंदोलन के बाद 10 जून 1890 को सप्ताह में एक दिन की छुट्टी यानि रविवार की छुट्टी का हक मिल सका।
अंतरराष्ट्रीय मानकीकरण संस्था यानि आईएसओ ने रविवार को सप्ताह का आखिरी दिन माना है और इसके चलते इस दिन आराम करने यानि काम से छुट्टी का दिन भी माना गया। वहीं, ईसाई धर्म का अनुसरण करने वाले लोगों का मानना था कि ईश्वर ने सिर्फ छह दिन बनाए और ऐसे में सप्ताह का आखिरी दिन ईश्वर द्वारा नहीं बनाया गया है तो इस दिन कोई काम काज करने की बजाए आराम करना चाहिए। ईसाईयत में रविवार के दिन को चर्च में जाने का दिन माना जाता है। इस दिन ईसाई धर्म का अनुसरण करने वाले लोग चर्च जाकर ईश्वर से प्रार्थना करते है लिहाजा ईसाई मानने वाले देशों ने रविवार को अवकाश की व्यवस्था बनाई जिससे सभी वर्ग के लोग इस दिन अपने काम काज की बजाए चर्च जाकर ईश्वर की प्रार्थना में शामिल हो सके। ऐसा नहीं है कि पूरी दुनिया में रविवार के दिन छुट्टी मनाई जाती हो। मुस्लिम बाहुल्य देशों में रविवार की बजाए शुक्रवार को छुट्टी का दिन होता है। यहां तक जब मुगल भारत आए तो उन्होंने हर किसी को मस्जिद में नमाज मंे शामिल होने के लिए शुक्रवार को काम काज से छुट्टी का एलान किया लेकिन जब मुगलों को हटाकर अंग्रेजों ने देश पर कब्जा किया तो उन्होंने अपने लिए यहां शुक्रवार की छुट्टी का प्रचलन बंद कर रविवार को साप्ताहिक अवकाश की व्यवस्था शुरू की। लेकिन, भारतीय मूल के मजदूरों और कामगारों को सप्ताह में एक दिन के अवकाश का भी अधिकार नहीं था। बाद में मजदूरों और कामगारों के लिए 10 जून 1890 में अंग्रेजों ने देश में रविवार की छुट्टी की घोषणा की थी। अंग्रेजों ने यूं ही भारत में रविवार को छुट्टी की घोषणा नहीं की थी, इसके पीछे था तीन दशक लंबा संघर्ष। अंग्रेजों ने जब भारत पर कब्जा किया तो उनके साथ यहां औद्योगिकीकरण भी आया। मजदूरों के फैक्ट्रियों में काम करने के दिन व समय तय नहीं थे। मजदूरों को 12 से 16 घंटे रोज सातों दिन फैक्ट्रियों में काम करना पड़ता था। अवकाश न मिलने यहां तक कि काम के दौरान भोजन करने के लिए भी छुट्टी न मिलने से मजदूरों की हालत खराब हो चुकी है। मजदूरों के लिए ऐसी हालत में लंबे समय तक जीवित रहना भी संभव नहीं था। साल 1857 में पहली बार मजदूरों के मजदूरी के तय घंटे और एक दिन के अवकाश की मांग उठी। लेकिन अंग्रेजों ने इसे अनसुना कर दिया। इसके बाद समय समय पर मजदूर सप्ताह में एक दिन छुट्टी की मांग उठाते रहे लेकिन अंग्रेजी सरकार मजदूरों पर दया दिखाने के पक्ष में नहीं थी। आखिरकार 1883 में मजदूरों के नेता नारायन मेघाजी लोखंडे ने मजदूरों को संगठित कर सप्ताह में एक दिन छुट्टी की मांग उठाई। उन्होंने ये तर्क दिया था कि सप्ताह में एक दिन ऐसा होना चाहिए जब मजदूर आराम करने के साथ-साथ खुद को वक्त दे सके। अंग्रेजों ने मजदूरों की इस मांग को मानने में तीन दशक से भी अधिक समय लगाया। देश भर में मजदूर इस मांग को लेकर संगठित होने लगे। मजदूर नेता मेघाजी लोखंडे और मजदूरों का प्रयास आखिरकार 10 जून 1890 को रंग लाया। सप्ताह में एक दिन छुट्टी का अधिकार देने की मांग को पूरा होने में 33 साल लग गए। आखिरकार अंग्रेजी हुकूमत ने 10 जून 1890 को रविवार का दिन सबके लिए अवकाश का दिन घोषित किया।