ये शख्स था देश का सबसे अमीर व्यापारी और अंग्रेजों का फाइनेंसर!
Pen Point, Dehradun :17वीं सदी में भारत में ईस्ट इंडिया कंपनी जड़ें जमा चुकी थी और मुगल सल्तनत ढलान पर थी। उस दौर में वीरजी वोहरा नाम का भारतीय व्यापारी इतना अमीर था कि वह अंग्रेज और मुगल दोनों ही उसके कर्जदार थे। सूरत में 1590 में जन्मे वीरजी वोहरा के बारे में ऐतिहासिक पत्रिकाओं में जानकारी मिलती है। वहीं ईस्ट इंडिया कंपनी के दस्तावेजों में उसे दुनिया का सबसे अमीर शख्स बताया गया है। इन दस्तावेजों के मुताबिक वीरजी भाई की संपत्ति आठ मिलियन रूपए यानी अस्सी लाख रूपए की थी, जो उस वक्त के हिसाब से अकूत संपत्ति थी।
सूरत में जैन धर्म से संबंध रखने वाले इस भारतीय कारोबारी को एकाधिकारी व्यवसायी कहा जाता था। वह किसी भी उत्पाद का पूरा स्टॉक खरीदकर उंचे मुनाफे पर उसे बेचता था। उसने एक बार डच व्यापारियों से भारत में आयात होने वाली काली मिर्च का पूरा जखीरा खरीद लिया था। फिर उसे अंग्रेजों और छोटे व्यापारियों को महंगे दामों पर बेचकर मुनाफा कमाया। इसके अलावा वह इलायची समेत विभिन्न तरह के मसालों, सोना और अन्य वस्तुओं का थोक व्यापार करता था। कहा जाता है कि उसने हाथी दांत तक का व्यापार भी किया।
ईस्ट इंडिया कंपनी के लिए वीरजी वोहरा सबसे बड़ा फाइनेंसर था। उसने उन्हें दो लाख रूपए से ज्यादा का कर्ज काफी उंची ब्याज दरों पर दिया था। जिसकी अंग्रेज अक्सर शिकायत भी करते थे। लेकिन वीर जी वोहरा पर इसका कोई असर नहीं था। ऐसे अंग्रेज जो ईस्ट इंडिया कंपनी से अलग अपना कारोबार करना चाहते थे वे भी लोन किये लिए वीरजी वोहरा के दर पर पहुंच जाते थे। उससे कर्ज लेकर अपना व्यवसाय शुरू करते थे, ईस्ट इंडिया कंपनी के रिकॉर्ड्स भी इस बात की तस्दीक करते हैं।
ऐतिहासित पत्रिकाओं के उल्लेख बताते हैं कि एक बार वीरजी वोहरा ने एक मुगल सरदार ने लेन देन के मामले में हिरासत में ले लिया। जेल भेजने के लिए बादशाह शाहजहां के पास उसे ले जाया गया। लेकिन कुछ देर की बाचतीत के बाद शाहजहां ने उसे सम्मान सहित विदा करवाया। बताया जाता है कि उसने बादशाह को चार बेहतरीन अरबी घोड़े और कुछ कलदार भेंट किये थे।
कहते हैं कि वीरजी वोहरा को कारोबार में कभी नुकसान नहीं हुआ। इसीलिए वह बड़ी संपत्ति का मालिक बना, लेकिन 1664 में उसे नुकसान उठाना पड़ा। जब शिवाजी के मराठा छापामार लड़ाकों ने उसके यहां हमला कर सोना चांदी और नकदी की बड़ी खेप लूट ली। हालांकि इसके बावजूद उसकी कर्ज देने की क्षमता में कमी नहीं आई। शिवाजी ने 1670 में दूसरी बार उस पर हमला किया और मराठा सेना की मजबूती के लिए फिर से उसका खजाने पर सेंध लगाई। बताया जाता है कि उसके बाद वीरजी वोहरा के पोते ने कारोबार संभाल लिया और संभवतः 1675 में यह कारोबारी दिवंगत हो गया।