मणिपुर हिंसा की आग में जल रहा है, केंद्र सरकार आंखें मूंद बैठी है
– 3 मई से हिंसा की आग में जल रहे मणिपुर में सौ से ज्यादा लोगों ने गंवाई जान, 50 हजार से ज्यादा ने छोड़ा घर बार
– केंद्र सरकार की ओर मणिपुर हिंसा को रोकने के प्रयास नाकाफी, गृह मंत्री ने किया था 15 दिन में हिंसा खत्म करने का दावा
PEN POINT, DEHRADUN : मणिपुर के मैतेई समुदाय को अनुसूचित जनजाति देने के मणिपुर हाईकोर्ट के फैसले के बाद 3 मई से मणिपुर में कुकी समुदाय और मैतेई समुदाय के बीच हिंसा शुरू हो गई। अब तक हिंसा में 100 से ज्यादा लोगांे की जान चली गई है तो करीब 50 हजार से अधिक लोगों को शरणार्थी शिविरों में शरण लेनी पड़ी है। वहीं, दोनों समुदाय की ओर से भीषण हिंसा के बीच हजारों लोगों के घरों को जलाया गया तो दोनों समुदायों के धार्मिक स्थलों को भारी नुकसान पहुंचाया गया है। इस बीच केंद्र सरकार मणिपुर को लेकर रवैये पर सवाल उठ रहे हैं, आरोप लग रहे हैं कि केंद्र सरकार मणिपुर के हालातों को नजरअंदाज कर रही है। हालांकि मणिपुर में भाजपा नेशनल पिपुल्स पार्टी, नागा पिपुल्स फ्रंट और लोक जनशक्ति पार्टी के साथ गठबंधन की सरकार में है। लेकिन, 3 मई से शुरू हुई इस हिंसा को लेकर केंद्र सरकार पर अनदेखी का आरोप लगता रहा है। हालांकि, बीते 29 मई को जब गृहमंत्री अमित शाह मणिपुर के दौरे पर गए थे तो उन्होंने दावा किया था कि 15 दिनों के भीतर मणिपुर में शांति स्थापित हो जाएगी। हालांकि, उनके दौरे को तीन सप्ताह हो चुके हैं लेकिन मणिपुर अभी भी हिंसा की आग में जल रहा है।
पूर्वोत्तर में स्थित मणिपुर राज्य बीते 3 मई से जातीय हिंसा की आग में सुलग रहा है। मैतेई समुदाय की लंबी मांग के बाद जब मणिपुर उच्च न्यायालय की ओर से मैतेई समुदाय को अनुसूचित जाति का दर्जा देने का आदेश दिया। मणिपुर की आबादी 35 लाख है और यहां मैतेई समुदाय बहुसंख्यक है जबकि कुकी समेत दर्जन भर समुदाय की आबादी अल्पसंख्यक है लेकिन एक समझौते के तहत मैतेई समुदाय राज्य के दस फीसदी हिस्से में बसा हुआ है बाकी 90 फीसदी हिस्से में कुकी व अन्य समुदाय बसे हैं। यह इलाका पूरी तरह से पहाड़ी है। मैतेई लंबे समय से जनजाति का दर्जा दिए जाने की मांग कर रहे हैं और मणिपुर हाई कोर्ट ने मार्च में राज्य सरकार से मैतेई को जनजाति का दर्जा दिए जाने पर विचार करने को कहा। हाई कोर्ट के ऑब्ज़र्वेशन के बाद मैतेई और कुकी समुदायों के बीच हिंसक झड़पें शुरू हुई। दोनों समुदायों के बीच की हिंसा जब शुरूआती चरण में थी तो कनार्टक चुनाव चल रहे थे, देश के प्रधानमंत्री समेत गृह मंत्री व केंद्र सरकार के मंत्री भी कर्नाटक चुनाव के प्रचार प्रसार में व्यस्त थे। इस बीच लगातार केंद्र सरकार पर सवाल उठाए जा रहे थे कि जब मणिपुर झुलस रहा है तो ऐसे में केंद्रीय गृह मंत्री को कनार्टक कनार्टक में होने की बजाए मणिपुर पर ध्यान देना चाहिए था। खैर, कनार्टक चुनाव निपटने के बाद आखिरकर गृहमंत्री अमित शाह 29 मई को मणिपुर अपने तीन दिवसीय दौरे के लिए पहुंचे। इस दौरान उन्होंने राज्य सरकार के साथ ही विभिन्न दलों से भी बात की और दावा किया कि अगले 15 दिनों में मणिपुर समस्या खत्म हो जाएगी और शांति स्थापित हो जाएगी। इसके बाद केंद्र सरकार ने शांति कमेटी का भी गठन किया और इसका नेतृत्व असम के मुख्यमंत्री हेमंत सरमा को दे दिया। लेकिन, बीते शनिवार को जब हेमंत सरमा मणिपुर पहुंचे तो मैतई और कुकी समुदाय से जुड़े संगठनों ने उनका विरोध किया। केंद्र सरकार का दावा था कि असम के मुख्यमंत्री हेमंत बिस्वा सरमा मणिपुर समेत पूर्वोत्तर भारत को बेहतर ढंग से समझते हैं और उनका विभिन्न समुदायों के बीच अच्छा समन्वय है लेकिन जब हेमंत बिस्वा सरमा ने मणिपुर का दौरा किया तो भी उनके प्रयासों के बावजूद वहां हिंसा में कोई कमी तो नहीं आई उनके दौरे के बाद हुई हिंसा में 9 लोगों की मौत हो गई।
वहीं, अब एक ओर जहां प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपने अमेरिका के दौरे को लेकर व्यस्त हैं और भाजपा अमेरिका के इस दौरे को लेकर व्यापक प्रचार प्रसार कर रही है तो वहीं दूसरी ओर गृह मंत्री अमित शाह ने भी पखवाड़े भर से मणिपुर का दौरा नहीं किया। लिहाजा, स्थानीय सामाजिक संगठनों के साथ ही विपक्ष भी मणिपुर हिंसा को लेकर केंद्र सरकार को कठघरे में खड़ा कर रहा हैं।
क्या है मणिपुर हिंसा का कारण
मणिपुर की जनसंख्या लगभग 30-35 लाख है. यहां तीन मुख्य समुदाय हैं..मैतई, नगा और कुकी। मैतई ज्यादातर हिंदू हैं और कुछ मुसलमान भी। नगा और कुकी ज्यादातर ईसाई धर्म को मानते हैं। नगा और कुकी को जनजाति में आते हैं। मणिपुर के कुल 60 विधायकों में 40 विधायक मैतई समुदाय से हैं बाकी 20 नगा और कुकी जनजाति से आते हैं। अब तक मणिपुर में 12 मुख्यमंत्री में से 10 मुख्यमंत्री मैतई समुदाय से हुए हैं। मणिपुर के 10 फीसदी मैदानी भूभाग में मैतई समुदाय रहता है बाकी 90 फीसदी पहाड़ी इलाके में जनजाति निवासरत है। मैतई समुदाय की मांग है कि उन्हें भी जनजाति का दर्जा दिया जाए। समुदाय ने इसके लिए मणिपुर हाई कोर्ट में याचिका भी डाली हुई है. मैतई समुदाय की दलील है कि 1949 में मणिपुर का भारत में विलय हुआ था और उससे पहले मैतेई को यहाँ जनजाति का दर्जा मिला हुआ था। इनकी दलील है कि इस समुदाय, उनके पूर्वजों की ज़मीन, परंपरा, संस्कृति और भाषा की रक्षा के लिए मैतेई को जनजाति का दर्जा ज़रूरी है। समुदाय ने 2012 में अपनी एक कमेटी भी बनाई थी जिसका नाम है शिड्यूल ट्राइब डिमांड कमिटी ऑफ़ मणिपुर यानी एसटीडीसीएम। इस कमिटी का कहना है कि मैतई समुदाय को पहाड़ से अलग किया गया है जबकि मणिपुर के बेहद सीमित मैदानी हिस्से में कुकी व अन्य जनजाति समुदाय जमीन खरी सकते हैं इससे तेजी से मैतई समाज की भूमि सिकुड़ रही है। लेकिन जो जनजातियां हैं, वे मैतई समुदाय को जनजाति का दर्जा देने का विरोध कर रही हैं। इन जनजातियों तर्क है कि मैतई जनसंख्या में भी ज्यादा है और राजनीतिक, सरकारी नौकरियों में उनका प्रतिनिधित्व ज्यादा है। और मैतेई समुदाय को पहले से ही एससी और ओबीसी आरक्षण के साथ-साथ आर्थिक रूप से पिछड़े वर्ग का आरक्षण मिला हुआ है और उसके फ़ायदे भी मिल रहे हैं साथ ही मैतई भाषा संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल है और संरक्षित है। जनजातिय समूहों का कहना है कि सब कुछ तो मैतई समाज के लिए नहीं होना चाहिए न, अगर उन्हें जनजाति का आरक्षण मिल जाता है तो वह जनजातीय समूहों के लिए अवसर बेहद तेजी से सिमट जाएंगे। फिर मैतई समुदाय तेजी से पहाड़ों पर जमीन का अधिग्रहण कर सकेंगे और जनजातीय समूहों का प्रवास सिकुड़ जाएगा।