दुष्कर्म के कानून को हथियार बनाकर दुरुपयोग कर रही हैं कुछ महिलाएं : हाईकोर्ट
Pen Point, Dehradun : उत्तराखंड हाईकोर्ट ने शादी का झांसा देकर दुष्कर्म के मामले में एक अहम फैसला सुनाया है। इस मामले में दायर की गई चार्जशीट और समन ऑर्डर को चुनौती देने वाली याचिका पर कोर्ट की एकलपीठ शरद कुमार शर्मा ने यह सुनवाई की। जिसमें कहा गया कि कुछ महिलाएं कानून का दुरूपयोग कर रही हैं।
लॉ ट्रेंड की रिपोर्ट के मुताबिक न्यायमूर्ति शरद कुमार शर्मा की पीठ ने कहा कि यदि आईपीसी की धारा 376 के तहत अपराध महज आरोपों के आधार पर बनाया गया है, और इसमें सहमति का कोई तत्व उपलब्ध है तो इसे बलात्कार नहीं कहा जा सकता। क्योंकि यह सहमति से किया गया मामला है।
संबंधित मामले में पंद्रह साल से अधिक समय से शिकायतकर्ता और आवेदक में संबंध था। जो इस हद तक बढ़ गया था कि दोनों ने एक दूसरे को जल्द शादी करने का आश्वासन दिया था। इस बहाने से दोनों के बीच शारीरिक संबंध स्थापित हो गया, जो काफी समय तक स्थापित होता रहा। प्रार्थी की अन्य महिला से शादी होने के बाद भी उनके बीच शारीरिक संबंध बने। लंबे समय बाद शिकायतकर्ता द्वारा आवेदक के खिलाफ आईपीसी की धारा 376 के तहत एफआईआर दर्ज कराई गई।
फैसले की सुनवाई करते हुए कोर्ट ने कहा कि अब आईपीसी की धारा 376 का कुछ महिलाओं द्वारा एक हथियार के रूप में दुरूपयोग किया जा रहा है। लंबे समय तक संबंध में रहती हैं और साथी के साथ कुछ मतभेद पैदा होने पर दुष्कर्म का आरोप लगा दिया जाता है। सहमति के साथ पुरूष साथी के साथ रहने के बाद यह पूरी तरह से कानून का दुरूपयोग है।
रिपोर्ट के मुताबिक पीठ ने सोनू उर्फ सुभाष कुमार बनाम यूपी राज्य के मामले का हवाला दिया। जहां यह कहा गया था कि जब कोई शारीरिक संबंध सहमति से स्थापित किया जाता है, और यदि यह आईपीसी की धारा 375 के तहत निहित प्रावधानों को छोड़कर परीक्षण में उचित साबित होता है, तो यह बलात्कार नहीं होगा, और अधिक से अधिक, इसे बलात्कार के रूप में लिया जा सकता है। विश्वास का उल्लंघन अपराध होगा, लेकिन कम से कम धारा 376 के तहत अपराध नहीं होगा।
हाईकोर्ट ने कहा कि विवाह का एक तत्व या आश्वासन, और उस बहाने, सहमति से संबंध में प्रवेश करना, विवाह के आश्वासन की मिथ्याता का परीक्षण इसकी शुरुआत के प्रारंभिक चरण में किया जाना चाहिए, न कि बाद के चरण में। यहां, यह नहीं कहा जा सकता है कि प्रारंभिक चरण 15 साल तक बढ़ा दिया गया था और यहां तक कि आवेदक की शादी के बाद भी जारी रहा।