110 साल पहले मांगी थी प्रथम विश्व युद्ध के वीर ने कर्णप्रयाग के लिए रेल
– प्रथम विश्व युद्ध में अभूतपूर्व वीरता दिखाने वाले दरवान सिंह नेगी ने अंग्रेजों से मांगी थी कर्णप्रयाग तक रेल लाइन
– 110 साल बाद अब पूरी हो रही प्रथम विश्व के नायक की मांग, कर्णप्रयाग तक बिछ रही रेलवे लाइन
PEN POINT, DEHRADUN : अगर सब कुछ योजना के मुताबिक चला तो संभव है अगले साल दिसंबर महीने तक कर्णप्रयाग तक रेलगाड़ी दौड़ने लगे। यूं तो इस बहुप्रतिक्षित रेलवे योजना को दस साल पहले 2013 तक पूरा होना था लेकिन राजनीतिक कारणों से यह योजना धरातल पर नहीं उतर सकी। आखिरकार 2015 को ऋषिकेश कर्णप्रयाग रेलवे लाइन के निर्माण का कार्य धरातल पर उतर सका और इसे 2024 के आखिर में पूरा करने का लक्ष्य है। लेकिन, आपको जानकर हैरानी होगी ऋषिकेश को कर्णप्रयाग तक रेलवे से जोड़ने का सपना प्रथम विश्व युद्ध में अपना शौर्य दिखाने वाले नायक दरबार सिंह का था। प्रथम विश्व युद्ध में जर्मनी को रौंद फ्रांस को आजाद कर भारत लौटे गढ़वाल राइफल के वीर नायक दरवान सिंह से जब अंग्रेजों ने अपने लिए कुछ मांगने को कहा तो उन्होंने ऋषिकेश से कर्णप्रयाग तक रेलवे लाइन बिछाने की मांग की। उनकी मांग पर संजीदा अंग्रेजों ने सौ साल पहले इस रेलवे लाइन के लिए सर्वे भी किया था।
जुलाई महीने में प्रथम विश्व युद्ध छिड़ चुका था। जर्मनी ने फ्रांस पर कब्जा किया तो अंग्रेजी सेना के लिए फ्रांस को मुक्त करवाना मुश्किल हो गया था। असल में अंग्रेजी सेना की दो टुकड़ियों के बीच जर्मन सेना के कब्जे वाला क्षेत्र था जिस कारण दोनों सैन्य टुकड़ियां मिलकर जर्मन सैनिकों का सामना नहीं कर पा रही थी। तो अगस्त 1914 को भारत से 1/39 गढ़वाल और 2/49 गढ़वाल राइफल्स की दो बटालियन को प्रथम विश्व युद्ध में हिस्सा लेने भेजा गया। अक्टूबर 1914 में दोनो बटालियन फ्रांस पहुंची। वहां भीषण ठंड में दोनों बटालियन को जर्मनी के कब्जे वाले फ्रांस के हिस्से को खाली कराने का लक्ष्य दिया गया। नायक दरवान सिंह नेगी के नेतृत्व में 1/39 गढ़वाल राइफल्स ने 23 और 24 नवंबर 1914 की मध्यरात्रि हमला कर जर्मनी से सुबह होने तक पूरा इलाका मुक्त करा लिया। इस युद्ध में कर्णप्रयाग के दौरान दरवान सिंह नेगी के अदम्य साहस से प्रभावित होकर किंग जार्ज पंचम ने सात दिसंबर 1914 को जारी हुए गजट से दो दिन पहले पांच दिसंबर 1914 को ही युद्ध के मैदान में पहुंचकर नायक दरवान सिंह नेगी को विक्टोरिया क्रॉस प्रदान किया था। नायक दरवान सिंह नेगी की वीरता के चलते गढ़वाल राइफल्स को बैटल आफ फेस्टूवर्ट इन फ्रांस का खिताब दिया गया। उनकी वीरता से प्रभावित होकर जब अंग्रेज अफसरों ने नायक दरबार सिंह से अपने लिए कोई इनाम मांगने को कहा तो दरबान सिंह ने अपने लिए तो कुछ नहीं मांगा लेकिन कर्णप्रयाग क्षेत्र में एक अंग्रेजी माध्यम स्कूल खोलने और कर्णप्रयाग को रेलवे लाइन से जोड़ने की मांग अंग्रेजी सरकार से की थी। दरवान सिंह नेगी ने कहा कि गढ़वाल राइफल्स में सबसे ज्यादा सैनिक गढ़वाल के उसी हिस्से से आते थे जिन्हें मैदान तक पहुंचने के लिए मुसीबतों का सामना करना पड़ता है ऐसे में यदि कर्णप्रयाग तक रेल पहुंचती है तो गढ़वाल राइफल्स के जवानों को आवाजाही के लिए मुसीबत नहीं झेलनी पड़ेगी। अंग्रेजी हुकूमत ने दरबान सिंह को निराश नहीं किया, कर्णप्रयाग में अंग्रेजी माध्यम का स्कूल भी खोल दिया गया और प्रथम विश्व युद्ध खत्म होने से पहले ही 1918 से ऋषिकेश से कर्णप्रयाग तक रेलवे लाइन के निर्माण का सर्वे भी शुरू किया। करीब छह साल चले यह सर्वे 1923 में खत्म हुआ। अंग्रेजी सरकार ने पाया कि कर्णप्रयाग तक रेलवे लाइन बिछाने के लिए पर्याप्त भूमि का अभाव पाया तो यह प्रोजेक्ट भी आगे नहीं बढ़ सका। हालांकि, 1997 में तत्कालीन सांसद सतपाल महाराज ने केंद्र सरकार से ऋषिकेश से कर्णप्रयाग तक रेलवे लाइन बिछाने की मांग की। कंाग्रेस सरकार के दूसरे कार्यकाल में साल 2011 में इसके शिलान्यास की योजना भी बनाई गई, इसके शुरूआती काम के लिए बजट की घोषणा भी की गई। कार्यक्रम था कि तत्कालीन यूपीए प्रमुख सोनिया गांधी ऋषिकेश पहुंचकर इस योजना का शुभारंभ करेंगी जिसे 2013 तक पूरा करने का लक्ष्य रखा गया था। लेकिन, यह धरातल पर नहीं उतर सका। 2014 में केंद्र में भाजपा ने सरकार बनाई तो इस परियोजना को शुरू करने की मांग जोर पकड़ने लगी। तो आखिरकार नरेंद्र मोदी सरकार ने 2015 यानि जब नायक दरबान सिंह नेगी ने रेलवे लाइन बिछाने की मांग अंग्रेजी सरकार से की थी उसके ठीक 101 साल बाद इस रेलवे लाइन का काम शुरू हो सका। 16,216 करोड़ रूपए की लागत से तैयार हो रही 125 किमी लंबी इस रेल परियोजना में ऋषिकेश से कर्णप्रयाग तक 105 किमी रेल लाइन 17 सुरंगों के भीतर से होकर गुजरेगी। अभी फिलहाल रेलवे लाइन का 40 फीसद से अधिक काम पूरा हो चुका है।