असली पर नकली भारी : ब्रह्मकमल के नाम से बिक रहा कैक्टस प्रजाति यह फूल
Pen Point, Dehradun : उत्तराखंड के राज्य पुष्प ब्रह्मकमल पर अब पहचान का भी संकट मंडराने लगा है। इस दुर्लभ फूल के नाम से कैक्टस प्रजाति के एक फूल का पौधा बाजार में खूब बिक रहा है। लोग नर्सरी से खरीदकर इसे गमले में सजाकर इसकी पूजा भी कर रहे हैं। इस पौधे में रात के समय ही फूल खिलता है। इस वजह से इसे खास माना जा रहा है और ब्रह्मकल जैसे दैवीय फूल के नाम से पुकारा जा रहा है। गौरतल है कि ब्रह्मकमल उच्च हिमालयी इलाकों में बर्फ रेखा के आस पास ही खिलता है। वो भी जुलाई से सितंबर के महीने तक ही इसके दीदार हो पाते हैं।
देहरादून समेत उत्तर भारत के कई शहरों में नकली ब्रह्मकमल की धूम मची हुई है।
सोशल मीडिया में भी यह छाया हुआ है। ब्रह्मकमल समझ कर नाइट ब्लूमिंग नाम के फूल को लोग व्हाट्सएप, फेसबुक और इंस्टाग्राम आदि पर साझा कर रहे हैं। जो लोग कैक्टस से परहेज रखते हैं उन्होंने भी कैक्टस प्रजाति के इस पौधे को अपने गमले में लगाया है। इस पर रात में फूल खिलता है लिहाजा देर रात तक इसे देखने के लिये जागते हैं। कई लोग तो फूल खिलने पर उसके प्रति श्रद्धावान हो उठते हैं। यूं तो कुदरत की दी हुई हर नेमत खास होती है, लेकिन उनकी पहचान पर संकट नहीं आना चाहिए। नाइट ब्लूमिंग अपनी पहचान खोकर ब्रह्मकमल के नाम से जाना जा रहा है। ऐसे मे खुद ब्रह्मकमल का नाम भी संकट में पड़ जाएगा। नाइट ब्लूमिंग को वानस्पतिक नाम एपिफाइलम ऑक्सीपेटालम है। इसे लेडी ऑफ नाइट या क्वीन ऑफ नाइट भी कहा जाता है।
देहरादून के अजबपुर स्थित एक नर्सरी संचालक के मुताबिक इस पौधे के फूल को ब्रह्मकमल के नाम से ही बिक रहा है। यह सिलसिला कोई दो साल पहले शुरू हुआ था। हालांकि नर्सरी संचालक बताते हैं कि मुझे अच्छी तरह पता है कि असली ब्रह्मकमल यहां नहीं हो सकता और उसे हम बेच भी नहीं सकते, लेकिन अब लोग हमारे पास इसी पौधे को ब्रह्मकमल नाम से लेने आते हैं तो क्या कर सकते हैं।
कहां होता है ब्रह्मकमल
ब्रह्मकमल को वनस्पति विज्ञान की भाषा मंें सौसुरेआ ओबवलाटा कहते है। यह हिमालय में ही बुग्यालों से भी ज्यादा उंचाई यानी 12000 फीट से 15000 फीट की उंचाई के बीच खिलता है। हिमालयी क्षेत्र के लोग इसे धार्मिक अनुष्ठानों में इस्तेमाल करते हैं। उत्तराखंड में इसे ब्रह्मकमल, हिमांचल में दूधाफूला और कश्मीर में गलगल कहा जाता है। इसे अलावा यह फूल नेपाल और भूटान में होता है। उत्तराखंड की बात करें तो यह चमोली में फूलों की घाटी, पिंडर क्षेत्र, उत्तरकाशी में गिडारा, अवाना और केदारकांठा बुग्यालों में काफी अधिक होता है। जुलाई से सितंबर माह तक ही महज तीन माह तक इस फूल को खिला हुआ देखा जा सकता है। ब्रह्म कमल के पौधों की ऊंचाई सत्तर से अस्सीसेंटीमीटर होती है। बैगनी रंग का इसका फूल टहनियों में ही नहीं बल्कि पीले पत्तियों से निकले कमल पात के पुष्पगुच्छ के रूप मे खिलता है जिस समय यह फूल खिलता है उस समय वहां का वातावरण सुगंध से भर जाता है।
औषधीय महत्व
ब्रह्मकल का फूल औषधीय उपयोग बहुत ज्यादा है। इसके राइजोम में एंटीसेप्टिक पाया जाता है, इसीलिये त्वचा पर जलने और कटने पर इसका लेप बनाकर लगाया जाताह है। हिमालयी इलाकों में मवेशियों को मूत्र संबंधी समस्या होने पर ग्रामीण इसके फूल को जौ के आटे में मिलाकर उन्हें पिलाते हैं। गर्म कपड़ों में डालकर रखने से यह कपड़ों में कीड़े नही लगने देता है। इसके अलावा सर्दी-ज़ुकाम, हड्डी के दर्द आदि में भी इसका इस्तेमाल किया जाता है। ब्रह्मकल की खुशबू इतनी तेज होती है कि हल्का सा छू भर लेने से इसकी महक काफी दिनों तक हाथ में बनी रहती है। कई बार इस तेज महक से मदहोशी होेने लगती है। भोटिया जनजाति के लोग गांव में रोग-व्याधि न हो, इसके लिए इस पुष्प को घर के दरवाजों पर लटका देते हैं।