जश्न ए आजादी : जब अंग्रेज गवर्नर के सिर पर गांधी टोपी रख दी गई !
Pen Point, Dehradun : 15 अगस्त 1947 को जब भारत को सत्ता हस्तांतरण हुआ तो देश खूशी से झूम उठा। लंबे संघर्ष के बाद मिली आजादी की यह स्वाभाविक खुशी थी। देश भर में एक साथ कई जगह भव्य समारोह आयोजित किये गए। प्रख्यात इंतिहासकार रामचंद्र गुहा अपनी किताब भारत गांधी के बाद में बताते हैं कि आजादी के इस जश्न पर एक विदेशी पर्यवेक्षक ने लिखा कि- शहर दर शद प्रत्येक जगह लोगों की भारी भीड़ जश्न मना रही है। ऐसा लगता है लंबे समय से दबी कुंठा बाहर निकल आई हो। झुंड के झुंड लोग मिल और कारखानों से निकलकर सुनहरे रेत वाले समंदर के किनारे तक गए। खुसे से नाचते गोते लोगों ने उत्साहपूर्वक समारोह मनाया। लोग दशकों से जमा हुए उस गुस्से को भूल गए, जो अंग्रेज साहबों की टोपी देखकर उनके मन में भड़क उठता था।
गुहा आगे लिखते हैं- देश के सबसे बड़े शहर कलकत्ता में स्वतंत्रता दिवस समारोह खास तरह से मानाया गया। पिछले कुछ सालों से शहर में कपड़ों की कमी महसूस की जा रही थी। लेकिन आजादी मिलते ही इसके तमाम चिन्ह आश्चर्यजनक रूप से गायक हो गए। मकानों, इमारतों, कारों, और साइकिलों पर हरेक जगह तिरंगा लहराने लगा। शहर की लड़कियों और बच्चों के हाथों में और यहां तकि जानवरों के पीठ पर भी राष्ट्रीय झंडा टांग दिया गया।
इस बीच गवर्नमेंट हाउस में एक नया गवर्नर शपथ ले रहा था। जाहिर तौर पर, इस नजारे से सेवानिवृत्त हो रहे गवर्नर का निजी सचिव बहुत खुश नहीं था। उसने शिकायत की कि शपथ ग्रहण समारोह में साधारण कपड़े पहले हुए आम लोगों की मौजूदगी समारेाह की गरिमा के विपरीत है। रात्रिभोज के दौरान कोई भी आदमी कोट और टाई पहने हुए नहीं था, लोगोंने सिर्फ धाती और गांधी टोपी पहन रखी थी। पूर्व गवर्नर के निजी सचिव ने आगे कहाः जिस कक्ष में शपथ ग्रहण समारेाह आयोजित किया गया है, उसमें तमाम अनाधिकृत लोग मौजूद है, जो इस बात का सूचक है कि अंग्रेजों के जाने के बाद आने वाला वक्त कैसा होने वाला है।
इन्तेहा तो तब हो गई जब बंगाल के सेवानिवृत्त हो रहे गवर्नर सर फ्रेडरिक बरोज कक्ष से बाहर निकलने लगे तो उन्हें भी किसी ने एक सफेद गांधी टोपी पहना दी।