टिहरी में आजादी के दो साल बाद गरूड़ध्वज उतारकर, तिरंगा फहराया गया
Pen Point, Dehradun : 15 अगस्त 1947 को जब भारत में आजादी का जश्न मनाया जा रहा था। टिहरी रियासत में राजशाही के खिलाफ जनक्रांति जारी थी। लिहाजा स्वतंत्रता दिवस के दिन भी टिहरी में तिरंगे की बजाए गढ़वाल राज का झंडा फहरा रहा था। दरअसल गढ़वाल से गोरखों को खदेड़ने की ऐवज में अंग्रेजों ने गढ़वाल का आधा हिस्सा हथिया लिया था। राजा सुदर्शन शाह को गढ़वाल में अपनी राजधानी श्रीनगर भी साथ में अंग्रेजों को देनी पड़ी। नई राजधानी की तलाश में वह टिहरी पहुंआ और यहां से शासन चलाने लगा। इसके बाद सुदर्शन शाह के उत्तराधिकारी प्रताप शाह, कीर्ति शाह व नरेंद्र शाह का शासन चला। 25 अक्टूबर 1946 को महाराज मानवेंद्र शाह टिहरी के आखिरी महाराज बने। उनके राज्याभिषेक के कुछ समय बाद ही देश आजाद हो गया। लेकिन टिहरी रियासत अभी आजाद नहीं हुई थी और देश में रियासतों के भारतीय संघ में विलीनीकरण की जद्दोजहद जारी थी। इस बीच टिहरी प्रजामंडल का गठन हो गया था और उसने राजशाही को हटाने के लिए संघर्ष क्षेड़ दिया।
यही वजह है कि देश की आजादी के बाद भी टिहरी रियासत में गढ़वाल राज का झंडा फहराता रहा। जिसे गरूड़घ्वज, जिसे बद्रीनाथ की पताका भी कहा जाता था। कहा जाता था। इस झंडे में उपर सफेद और नीचे हरे रंग की दो क्षैतिज समांतर पट्टियां थी। जिनके बीच में पंख फैलाए गरूड़ का चित्र बना हुआ था। झंडे में सफेद रंग हिमालय और हरा रंग हरियाली का प्रतीक था। जबकि भगवान विष्णु के वाहन गरूड़ को भगवान और मजबूती के प्रतीक के रूप में दर्शाया गया था। रियासत की फौज की वर्दी का पैटर्न भी ऐसा ही था। गढ़वाल राज का यह ध्वज 1803 से पहले से चला आ रहा था। 1803 के बाद 1949 तक इस ध्वज के साथ राजपरिवार ने इसी ध्वज के साथ शासन किया।
देश की आजादी के बाद टिहरी में आखिर जनक्रांति अपने चरम पर पहुंची और 16 जनवरी 1948 को टिहरी पर क्रांतिकारियों का कब्जा हो गया। इसके बाद भारत सरकार ने रियासत में अमन चैन बनाए रखने के लिए जरूरी कदम उठाने शुरू कर दिये। राजा मानवेंद्र शाह टिहरी रियासत को भारतीय संघ में विलीन करने की प्रक्रिया भी पूरी कर ली। संयुक्त प्रांत के तत्कालीन प्रमुख गोविंद बल्लभ पंत की मौजूदगी में नरेंद्र नगर में एक समारोह आयोजित हुआ। जिसमें राजा मानवेंद्र शाह और अन्य अधिकारियों की मौजूदगी में विलय का समझौता हुआ।