अंग्रेजों ने बद्रीनाथ मंदिर राजा को दिया और शेष इलाका कब्जा लिया
Pen Point, Dehradun : बद्रीनाथ धाम ना सिर्फ धार्मिक बल्कि व्यापारिक और सामरिक नजरिए से महत्वपूर्ण रहा है। यही वजह है अंग्रेजों की इस पर खास नजर रही। सन् 1812 में विलियम मूरक्राफ़ट ने बद्रीनाथ के रास्ते ही तिब्बत पहुंचा था। उसका मकसद तिब्बत से पश्मीना उन और तिब्बती घोड़ों की नस्ल हासिल करना था। उस दौरान गढ़वाल पर गोरखा शासन था। हरिद्वार से साधू वेश में मूरक्राफ्ट मायापुरी नाम से अपने एक साथी के साथ साधू वेश में बद्रीनाथ पहुंचा था। लेकिन वापसी में गोरखा सेना ने इन दोनों का पकड़ लिया और तीन साल कैद में रखा। तब गोरखा शासन पश्मीना का निर्यात केवल अफगानों को ही करता था। बाद में अंग्रेजों ने तिबब्ती नस्ल की भेड़ें इंग्लैंड पहुंचाई और खुद ही पश्मीना का उत्पादन करने की कोशिश की। हालांकि इस काम में उन्हें सफलता नहीं मिल सकी।
सन् 1815 में अंग्रेज फौज ने गढ़वाल के राजा से संधी करते हुए गोरखों को खदेड़ दिया। इस युद्ध को जीतने की ऐवज में अंग्रेजों ने गढ़वाल का एक हिस्सा अपने पास रख लिया। 1816 में हुए इस बंटवारे में राजा सुदर्शन शाह राजधानी श्रीनगर और बद्रीनाथ को अपने पास ही रखना चाहता था। लेकिन अंग्रेजों ने अड़ियल रूख दिखाते हुए श्रीनगर राजा को देने से साफ इनकार कर दिया। उसके हिस्से में अलकनंदा तट का पश्चिमी हिस्सा आया। कहा जाता है कि अंग्रेज यहां तक कहने लगे थे कि अगर राजा ने जिद नहीं छोड़ी तो उसे बिजनौर की ओर कोई जागीर देकर पूरा गढ़वाल राज्य अपने पास रख लिया जाए। हालांकि बाद में राजा श्रीनगर छोड़ने पर राजी हो गया, लेकिन बदरीनाथ का दावा नहीं छोड़ा। जिस पर अंग्रेजों ने तय किया कि यात्राकाल के दौरान बद्रीनाथ मंदिर परिसर का संचालन राज दरबार की ओर से किया जाएगा। यही वजह है कि मंदिर के कपाट खुलने की रस्मों की शुरूआत आज भी टिहरी राजपरिवार से होती है।
हालांकि कुछ इतिहासकारों का मानना है कि बद्रीनाथ राजा के लिये बड़ा अहम था। इसके बदले में राजा ने अपनी राजधानी और प्रमुख व्यावसायिक नगर श्रीनगर अंग्रेजों को दे दिया। लेकिन हकीकत ये है कि ऐसा करके अंग्रेजों ने राजा को बद्रीनाथ मंदिर तक ही सीमित कर दिया। शेष इलाके पर अंग्रेजों का अधिकार हो गया और उन्होंने इलाके का खूब व्यावसायिक दोहन भी किया। जबकि गंगोत्री, यमुनोत्री और केदारनाथ यानी तीन धाम राजा के अधिकार में ही रहे।
बद्रीनाथ के आस पास की बर्फीली चोटियों में उसके बाद अंग्रेजों ने कई पर्वतारेाही दल भेजे। जिनका मकसद हिमालय के इस हिस्से को भूगोल का समझने के साथ ही अपने साम्राज्य विस्तार की संभावनाएं तलाशना भी था।