जब हैदराबाद रियासत पर भारत संघ को करना पड़ा कब्जा !
PEN POINT: आज के ही दिन ऑपरेशन पोलो के तहत हैदराबाद रियासत को भारत संघ में मिलाने के लिए कब्जा किया गया था। सरदार पटेल को इसके लिए कई तरह के कठोर निर्णय लेने पड़े। इस सारी कवायद के बाद हैदराबाद के आखिरी निजाम को सत्ता से हटाकर हैदराबाद को भारत का हिस्सा बना लिया गया। जिसकी घोषणा खुद निजाम ने की और भारत के संविधान को ही हैदराबाद का संविधान करार दिया। यह सब इतना आसान नहीं था। मजबूत भारत संघ के लिए लिए पटेल को यह ताकतपूर्ण और कुटिल फैसला लेना पड़ा, क्योंकि हैदराबाद का निजाम भारत संघ के बजाय एक स्वतंत्र देश के तौर पर रहना चाहता था, जो एकीकृत भारत के लिए किसी खतरे से कम नहीं था। जबकि हैदराबाद रियासत भी देश की अन्य रियासतों में से ही एक थी, जिसे पूर्ण आजादी दी गई थी। सबके पास दो ही विकल्प थे भारतसंघ में रहना या पाकिस्तान में शामिल होना।
एक और तथ्य यह था कि हैदराबाद का शासक एक मुस्लिम था, जबकि वहां की बहुसंख्यक आबादी हिन्दू थी। बावजूद इसके वहां के निजाम ओस्मान अली खान ने आजाद रहने का फैसला किया और अपनी साधारण सेना के बल पर अपना शासन चलाने का निर्णय लिया। इसके उलट भारत की तत्कालीन अंतरिम सरकार को उम्मीद थी कि हैदराबाद का निजाम खुद भारत संघ में मिलने के लिए उत्सुक होगा। लेकिन उसे जब यह जानकारी मिली तो सरदार पटेल को यह बात भविष्य के लिए खटकने लगी। उन्होंने इसके लिए हर तरह का रास्ता अख्तियार करने का सख्त फैसला लिया और ताकत के बल पर हैदराबाद रियासत को भारत संघ में मिलाने के लिए पुलिस का इस्तेमाल किया, जिसमें उन्हें सिर्फ पॉंच दिन का वक्त ही लगा। इस अभियान में निजाम की सेना घुटनों पर आ गई।
इस विशेष अभियान में जातिगत हिंसा हुई। ऑपरेशन के बाद नेहरू ने इसकी जॉंच के लिए एक कमेटी गठित की। बताते हैं कि इस अभियान में लगभर 27 हजार लोगों की मौतें हुई। जबकि जानकार इसे और अधिक बताते हैं। दरअसल माना जाता है कि हैदराबाद का निजाम मोहम्मद अली जिन्ना के प्रभाव में था और इसीलिए उसने यह निर्णय लिया और वह लोकतंत्र को मानने के लिए तैयार नहीं हुआ। इस बीच जब यह सब चल रहा था, तो हैदराबाद में कई तरह के सांम्प्रदायिक और धार्मिक उत्पात मचाए जा रहे थे। इसके पीछे कई राजनीतिक कारण बताए जाते हैं। क्योंकि निजाम ने एक खास नवाब खास नवाब काजमी रज्मी को बड़ी रियायत दी थी जो उस वक्त मजलिसे एत्तुद मुस्लिमीन का प्रमुख था । उसने राजकारस सेना बनाई हुई थी, जिसकी संख्या करीब दो लाख के करीब थी। इस सेना ने हैदराबाद में कई तरह के जुल्म सितम वहां के लोगों पर ढाने शुरू कर दिए थे। इस बची निजाम को बाहरी देशों के जरिए हथियान और गोला बारूद मुहैया कराया जा रहा था। यह सारा खेल पाकिस्तान चला रहा था।
यह सब देखते हुए पटेल को हैराबाद भारत संघ के भविष्य के लिए नासूर की तरह नजर आने लगा। लिहाजा उन्होंने इसके लिए रणनीति बनाई और भारतीय सेना का एक गुप्त मिशन तैयार किया, जिसका नाम मिशन पोलो रखा गया, इसे पूरी तरह सेना ने अंजाम दिया। इस तरह हैदराबाद में भारतीय सेना ने कब्जा किया और पटेल की रणनीति और दूरदष्टि से हैदराबाद को 17 सितम्बर 1948 हैदराबाद रियासत के प्रधानमंत्री लायक अली और रजाकार मिलिशिया के प्रमुख कासीम जिजबी को गिरफ्तार कर लिया गया। इसके बाद 23 सितंबर को निजाम ने अपनी रियासत की भारत संघ में मिलाने की घोषण कर दी इसके साथ ही सुरक्षा परिषद से अपनी शिकायत वापस लेली। आगे की विधिवत प्रक्रिया के लिए मेजर जनरल जे एन चौधरी को हैदराबाद के गवर्नर की जिम्मेदारी सौंपी गई और 24 नवंबर को निजाम ने पूरी तरह से घोषणा की कि भारत का संविधान ही हैदराबाद का संविधान होगा और 26 जनवरी 1950 को हैदराबाद राज्य नियमित तौर पर भारत का हिस्सा बन गया।