चिनी गांव में हुआ था देश का पहला मतदान, महीनों बाद आया था रिजल्ट
Pen Point, Dehradun : 25 अक्टूबर 1951 को भारत के पहले आम चुनाव के लिये वोटिंग हुई थी। खास बात ये है कि ये वोटिंग उच्च हिमालयी इलाके में हुई। जबकि शेष देश में फरवरी 1952 तक भी चुनाव नहीं हो पाया था। जाहिर है कि हिमाचल प्रदेश की चिनी तहसील के लोगों ने जब वोटिंग की, तब भारत में चुनाव की तैयारियां भी ठीक से शुरू नहीं हुई थी। ऐसे में चिनी के लोग पहले भारतीय थे जिन्होंने आम चुनाव में सबसे पहले हिस्सा लिया था। समुद्रतल से 2960 मीटर की उंचाई पर बसे चिनी का संपर्क सर्दियों में बर्फबारी के कारण देश से कट जाता था। इसीलिये यहां के लोगों से आम चुनाव की वोटिंग पहले ही करवा ली गई थी। चिनी को अब कल्पा के नाम से जाना जाता है। पहले आम चुनाव के वक्त वहां बौद्ध धर्म को मानने वाले कुछ लोग रहते थे। यहां के ग्रामीण तिब्बत में रहने वाले पंचेन लामा के अनुयायी थे। जिनकी शासन व्यवस्था स्थानीय धर्मगुरूओं के रीति रिवाजों के तहत ही चलती थी। हालांकि वोटिंग के बाद चिनी के लोगों को रिजल्ट जानने के लिये करीब छह महीने का इंतजार करना पड़ा था। जिसकी वजह है कि इस वोटिंग के बाद ही देश में चुनाव की तैयारियां शुरू हो सकी थी। पहला चुनाव होने के कारण देश के सामने यह बड़ी चुनौती के रूप में था।
भारत को तब नई नई आजादी मिली थी। इतिहासकार रामचंद्र गुहा इंडिया आफ्टर गांधी में लिखते हैं- हिंदुस्तान का पहला आम चुनाव कई चीजों के अलावा एक विश्वास का विषय था। नया नया आजाद हुआ मुल्क सार्वभौम मताधिकार के तहत सीधे तौर पर अपने हुक्मरानों को चुनने जा रहा था। इसने वो रास्ता अख्तियार नहीं किया जो पश्चिमी देशों ने किया। वहां पहले कुछ संपत्तिशाली तबकों को ही मतदान का हक मिला था। बहुत बाद तक वहां कामगारों और महिलाओं को मतदान का हक नहीं मिला था। लेकिन हिंदुस्तान में ऐसा नहीं हुआ।
चुनाव आयोग का गठन
आजादी के दो साल बाद ही मार्च 1950 में भारत में चुनाव आयोग अस्तित्व में आ गया था। सुकुमार सेन को आयोग के पहले अध्यक्ष की जिम्मेदारी मिली। अप्रैल 1950 में जनप्रतिनिधि कानून संसद में पारित कर दिया गया था। उसके बाद सेन भारत में पहले चुनाव की तैयारियों में जुट गए। पहला चुनाव करवाना आसान काम नहीं था। करीब 500 लोकसभा सीटों के साथ ही 4000 विधानसभा सीटों के लिये भी चुनाव होने थे। उस समय देश में मतदाताओं की संख्या 17 करोड़ 60 लाख थी। जिनमें 85 फीसदी निरक्षर थे।
चुनाव के लिये तैयारी
1952 के शुरूआती महीनों में चुनाव करवाये जाने का लक्ष्य रखा गया। इसके लिये व्यापक तैयारियां शुरू कर दी गई। रामचंद्र गुहा लिखते हैं पूरे भारत में कुल 2 लाख 24 हज़ार मतदान केंद्र बनाए गए थे। इसके अलावा लोहे की 20 लाख मतपेटियाँ बनाई गई थीं जिसके लिए 8200 टन इस्पात का इस्तेमाल किया गया था. कुल 16500 लोगों को मतदाता सूची बनाने के लिए छह महीने के अनुबंध पर रखा गया था।
टेढ़ी खीर था महिला मतदाताओं के नाम जोड़ना
चुनाव आयोग के सामने महिला मतदाताओं के नाम मतदाता सूची में जोड़ना आसान नहीं था। तब देश में अधिकांश महिलाएं अपने नाम बताने में संकोच करती थी। ये महिलाएं किसी की बेटी या पत्नी के रूप में ही अपनी पहचान बताती थी। जबकि चुनाव आयोग की कोशिश हर मतादाता का नाम सूची में जोड़ने की थी। नतीजाये हुआ कि मतादाता सूची में करीब 80 लाख महिलाओं के नाम छूट गए। हालांकि तत्कालीन चुनाव आयुक्त सेन ने इस मामले में पूरी कठोरता बरती थी। इसके बावजूद नाम छूटने पर उन्होंने अगली बार इस प्रवृत्ति में बदलाव आने की उम्मीद जताई।
चुनाव चिन्ह, स्याही और सिनेमा
भारत में व्याप्त निरक्षरता के कारण यहां चुनाव चिन्ह की जरूरत पड़ी जबकि नकली मतदान से बचने के लिये उंगली पर लगने वाली स्याही इजाद की गई। रामचंद्र गुहा के मुताबिक पश्चिमी देशों के अधिकतर मतदाता उम्मीदवार को उसके नाम से पहचान सकते थे लेकिन भारत में अधिकतर लोगों के अशिक्षित होने के कारण मतपत्र में मतदाताओं के नाम के आगे चुनाव चिन्ह छापा गया था। हर मतदान केंद्र पर मतपेटियाँ रखी रहती थीं जिस पर पार्टी का चुनाव चिन्ह बना होता था और मतदाताओं को उसमें अपना मत डालना पड़ता था। नकली मतदाताओं से बचने के लिए भारतीय वैज्ञानिकों ने ऐसी स्याही बनाई थी जो मतदाता की उंगली पर एक सप्ताह के लिए बनी रहती थी. भारत भर के 3000 सिनेमाघरों में चुनाव और मतदाताओं के अधिकार से संबंधित वृत्त चित्र दिखाया गया था।
केरल में हुआ सबसे ज्यादा मतदान
पहले आम चुनाव में सबसे ज्यादा मतदान केरल की कोट्टयम सीट पर हुआ। यहां 80 फीसदी मतदाताओं ने अपने मताधिकार का प्रयोग किया। जबकि सबसे कम मतदान मध्य प्रदेश के शहडोल में दर्ज किया गया। जहां महज 18 फीसदी मतदाताओं ने ही हिस्सा लिया। पूरे देश के मतदान को देखें तो कुल मिलाकर 60 फीसदी मतदान हुआ। उस समय देश में भारी अशिक्षा के बावजूद पहले चुनाव का मतदान प्रतिशत बेहतर ही कहा जाएगा।