शीतकालीन चार धाम यात्रा: 12 साल बाद अब शंकराचार्य की पहल लाएगी रंग
-राज्य सरकार के ‘विफल’ शीतकालीन चारधाम यात्रा अभियान के 12 साल बाद खुद शंकराचार्य ने शुरू की शीतकालीन पड़ावों में चारधाम यात्रा शुरू करवाने को ‘चारधाम यात्रा’
Pen Point Dehradun : ज्योतिष पीठ के शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद महाराज ने बुधवार को हरिद्वार से शीतकालीन यात्रा शुरू कर दी है। वह गुरूवार को पहले यमुनोत्री के शीतकालीन पड़ाव खरसाली में थे। उसके बाद उत्तरकाशी होते हुए शुक्रवार को गंगा के शीतकालीन प्रवास मुखबा गांव पहुंचे। चार धामों के शीतकालीन पड़ावों में शीतकाल यात्रा का संदेश लेकर स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद की यात्रा 3 जनवरी को हरिद्वार में संपन्न होगी। यह पहली बार है कि जब स्वंय शंकराचार्य चारों धामों के शीतकालीन पड़ावों में चार धाम की तर्ज पर यात्रा शुरू करवाने के संदेश के साथ स्वयं निकल पड़े हैं। हालांकि, करीब 12 साल पहले राज्य सरकार ने शीतकालीन चार धाम यात्रा शुरू करने की कवायद तो शुरू की थी लेकिन यह योजना धरातल पर नहीं उतर सकी और निजाम बदले तो चारधाम यात्रा को शीतकाल के दौरान जारी रखने की योजना भी दम तोड़ गई।
शुक्रवार को करीब बीस वाहनों का काफिला गंगोत्री धाम से बीस किमी पहले मुखबा गांव पहुंचा। मुखबा गांव मां गंगा का शीतकालीन प्रवास है जहां गंगोत्री के कपाट बंद होने से लेकर खुलने तक मां गंगा की भोग मूर्ति की पूजा की जाती है। गंगोत्री धाम की पूजा पाठ संभालने वाले सेमवाल पुजारी परिवार भी इसी गांव में निवास करते हैं। अक्षय तृतीया को गंगोत्री के कपाट खुलने के साथ शुरू होने वाला यात्रा सीजन दीपावली के अगले दिन अन्नकूट के पावन पर्व पर गंगोत्री धाम के कपाट बंद होने पर खत्म हो जाता है। यात्रा सीजन के दौरान चारधाम यात्रा रूट पर खूब रौनक रहती है, यात्रा पड़ावों पर छोटे बड़े आलीशान होटल यात्रियों से भरे रहते हैं तो सड़कों पर भी वाहनों की खूब आवाजाही होती है। लेकिन, कपाट बंद होने के बाद होटल स्वामी होटलों को बंद कर अपने शीतकालीन पड़ाव की ओर रूख कर लेते हैं तो सड़कों पर भी सन्नाटा पसर जाता है।
लेकिन, बीते कई सालों से मांग होती रही है कि चारधाम की तर्ज पर ही चारों धाम के शीतकालीन पड़ावों में शीतकाल चारधाम यात्रा शुरू की जाए। हालांकि, इसके खिलाफ कुछ आवाजें भी उठी और शीतकालीन पड़ावों में चारधाम यात्रा की तर्ज पर यात्रा करने को धर्म सम्मत नहीं बताया गया। लेकिन, शुक्रवार को स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद ने मुखबा और उससे पहले खरसाली में शीतकाल यात्रा के दल के साथ पहुंचकर शीतकालीन यात्रा के धार्मिक महत्ता पर मुहर लगा दी। स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद महाराज के साथ पहुंचे शीतकालीन यात्रा के दल पहुंचने से स्थानीय पर्यटन व्यवसायियों को भी काफी उम्मीदें है। लेकिन, करीब 12 साल पहले भी शुरू की कवायद के ठंडे पड़ जाने के बाद पर्यटन व्यवसायियों के लिए उम्मीद करना थोड़ा सा मुश्किल भी हो रहा है।
1 मार्च 2011, ऋषिकेश से यात्रियों से भरी चार बसों को तत्कालीन मुख्यमंत्री डॉ. रमेश पोखरियाल निशंक ने हरी झंडी दिखाकर शीतकालीन यात्रा के लिए रवाना किया था। दावा किया गया था कि अप्रैल-मई से लेकर नवंबर तक चलने वाली चारधाम यात्रा से इतर शीतकाल के दौरान भी तीर्थयात्रियों को चारधाम के शीतकालीन पड़ावों में चारधाम यात्रा की तर्ज पर यात्रा करवाई जाएगी जिससे पर्यटन व्यवसाय से जुड़े लोगों को चारधाम यात्रा की तर्ज पर ही रोजगार उपलब्ध हो सके। हालांकि, मार्च में शुरू यह अभियान रफ्तार नहीं पकड़ सका। उसके बाद तो शीतकाल के दौरान चारधाम यात्रा की कभी चर्चा भी नहीं हो सकी।
अब शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद ने चारधाम के शीतकालीन पड़ावों को चार धामों के ही तर्ज पर यात्रा की महत्ता को बताते हुए अभियान शुरू किया है तो उम्मीद की जा रही है कि लोगों के बीच यह संदेश जाएगा कि शीतकालीन पड़ावों में चारधाम यात्रा से भी उतना ही पुण्य मिलता है जितना ग्रीष्मकालीन धामों में पहुंचकर।
होटल एसोसिएशन उत्तरकाशी के अध्यक्ष शैलेंद्र मटूड़ा कहते हैं कि शंकराचार्य महाराज का यह अभियान उम्मीद भर रहा है कि शीतकाल के दौरान यात्रा मार्गों पर पसरा सन्नाटा टूट सकेगा। वह कहते हैं कि सरकार को अब खुद आगे आना होगा और यात्रियों से अपील करनी होगी कि चारधाम यात्रा का पुण्य शीतकाल में भी उठाएं। शैलेंद्र मटूड़ा के मुताबिक यात्रियों के लिए शीतकाल के दौरान चारधाम यात्रा करना सुखद और सस्ता भी रहेगा क्योंकि ग्रीष्मकाल यात्रा के दौरान भारी भीड़ से अव्यवस्थाएं चरम पर होती हैं तो वाहन, होटल भी बहुत महंगे होते हैं जबकि शीतकाल के दौरान होटल, वाहन भी सस्ते मिलते हैं तो साथ ही जो शीतकालीन पड़ाव है उसके इर्द गिर्द प्राकृतिक सुदंरता भी चरम पर होती है।
स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद महाराज की इस पहल से स्थानीय पर्यटन व्यवसायियों ने खुशी जताई है। स्थानीय व्यवसायियों की माने तो स्वामी अवमुक्तेश्वरानंद ने शीतकालीन पड़ावों पर यात्रा में आकर एक बड़ा संदेश तो दिया ही है साथ ही इस यात्रा की धार्मिक महत्ता पर मुहर लगाई है। वह कहते हैं कि अब सरकार को भी अपने स्तर से इसका प्रचार प्रसार करना होगा तो साथ ही वह टूर ऑपरेटर्स से भी अपील कर रहे हैं कि वह चारधाम की तर्ज पर इसके लिए लोगांे को यहां लाएं।