अयोध्या: जब भाजपा ने अपने कार्यकर्ताओं से झाड़ दिया था पल्ला
– राम जन्म भूमि पर बनी बाबरी मस्जिद को ध्वस्त करने वाले संघ परिवार के कार्यकर्ताओं से भाजपा ने पल्ला झाड़ते हुए उन्हें अन्य संगठन के कार्यकर्ता बताया था
PEN POINT, DEHRADUN : राम मंदिर के उद्घाटन का काउंटडाउन शुरू हो चुका है तो इन दिनों हिंदी अखबार राम मंदिर आंदोलन के दौरान कार सेवक के रूप में और बाबरी मस्जिद को ध्वस्त करने वाले समूह में शामिल भाजपा के नेताओं, कार्यकर्ताओं के अनुभवों को प्रमुखता से प्रकाशित कर रहा है। कारसेवा में शामिल नेता, कार्यकर्ता भी राम मंदिर निर्माण जैसे सपने के पूरे होने से गदगद हैं तो उस तीन दशक पहले हुए राम मंदिर आंदोलन और बाबरी मस्जिद के गुंबद को ध्वस्त करने के उस ‘कारनामे’ के अनुभव को गर्व के साथ मीडिया के साथ साझा करते हैं। लेकिन, वह भी दौर था कि राम आंदोलन के रथ पर राजनीतिक जमीन मजबूत करने वाली भाजपा ने कारसेवा में बाबरी मस्जिद को ध्वस्त करने वाले और आंदोलन का हिस्सा कार्यकर्ताओं से ही कन्नी काटते हुए उन्हें अन्य संगठन से जुड़े कार्यकर्ता बता दिया था।
भाजपा के आगे बढ़ने की यात्रा राम मंदिर आंदोलन के साथ शुरू होती है और बाबरी मस्जिद विध्वंस के साथ एक ऊंची उड़ान भरती है। 80 के दशक में भाजपा ने गौ रक्षा अभियान से ध्यान हटाकर अयोध्या राम मंदिर पर ध्यान देना शुरू कर दिया था। राम मंदिर ने भाजपा की स्वीकार्यर्ता को देश भर के हिंदुओं के बीच बढ़ाना शुरू कर दिया तो भाजपा ने भी इस मुद्दे को आगे लेकर जाने की सोची। 25 सिंतबर 1990 से पांच सप्ताह लंबी भाजपा नेता लालकृष्ण आडवाणी की सोमनाथ से अयोध्या तक रथ यात्रा ने राम मंदिर आंदोलन में शामिल लोगों में ऊर्जा भर दी। इस यात्रा की परिणती यह रही कि कुछ सालों बाद जिस स्थान पर राम जन्म भूमि का दावा किया जाता था वहां बनी बाबरी मस्जिद को जमींदोज कर दिया गया। 6 दिसंबर 1992 से पहले ही अयोध्या में कारसेवा के लिए देश भर से भाजपा, आरएसएस और उसके संगठनों से जुड़े डेढ़ लाख से ज्यादा स्वंयसेवक अयोध्या में दाखिल हो चुके थे। तत्कालीन केंद्र की कांग्रेस सरकार को लगातार चेतावनी दी जा रही थी कि 6 दिसंबर को अयोध्या में जो भी होगा वह ऐतिहासिक होगा। खुद आडवाणी ने भी नवंबर महीने के आखिर में दिल्ली से रवाना होने से पहले घोषणा की थी कि 6 दिसंबर को अयोध्या में क्या होगा वह इसकी गारंटी दे सकते हैं लेकिन हम सिर्फ इतना जानते हैं कि हम कार सेवा करने जा रहे हैं।
6 दिसंबर 1992 को कारसेवकों के बड़े हुजूम ने बाबरी मस्जिद के गुंबद पर चढ़कर जो अभियान सुबह साढ़े 11 बजे शुरू किया वह शाम के साढ़े चार बजे तक पूरा हो चुका था। अगले पांच घंटों में कारसेवकों के जत्थे ने हथौड़ों, कुल्हाड़ियों से करीब 400 साल पुरानी बाबरी मस्जिद को ध्वस्त कर जमींदोज कर दिया था। रामचंद्र गुहा अपनी किताब इंडिया आफ्टर गांधी में इस घटना के बारे में लिखते हैं कि बाबरी मस्जिद के ध्वस्तीकरण के दौरान भाजपा के नेता भी सकते में आ गए थे। राम मंदिर आंदोलन की अगुवाई करने वाले लाल कृष्ण आडवाणी ने भी जब कारसेवकों की भीड़ बाबरी मस्जिद की तरफ बढ़ते देखी तो उन्होंने भी भीड़ से वापिस लौटने की अपील की लेकिन उत्साही भीड़ नहीं मानी। मस्जिद के गुंबद पर चढ़ते कारसेवकों को रोकने को लेकर लालकृष्ण आडवाणी की मौके पर मौजूद आरएसएस के वरिष्ठ पदाधिकारी एसवी शेषाद्रि और केएस सुदर्शन से भी बहस हुई कि गुबंद गिराने का निर्णय सही नहीं होगा लेकिन संघ के इन वरिष्ठ पदाधिकारियों की राय थी कि जब मस्जिद गिराई ही जा रही है तो संघ और बीजेपी को इसका श्रेय लेना चाहिए। इस मौके पर संघ के वरिष्ठ पदाधिकारी केएस सुदर्शन ने लालकृष्ण आडवाणी से कहा भी कि इतिहास की रूपरेखा पहले से ही तय होती है और जो भी कुछ वहां हुआ है उसे स्वीकार कीजिए। लेकिन आडवाणी ने यह प्रस्ताव खारिज करते हुए मस्जिद के ध्वस्तीकरण के लिए सार्वजनिक रूप से खेद प्रकट करने का अपना फैसला सुना दिया।
कथित रूप से राम मंदिर को तोड़कर चार सौ साल पहले बनाई गई बाबरी मस्जिद को भीड़ द्वारा तोड़े जाने की घटना को लेकर राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय मीडिया ने भाजपा नेताओं, संघ और उससे जुड़े संगठनों को खलनायक के तौर पर पेश किया लेकिन जनता खासकर हिंदुओं के बड़े समूह के बीच भाजपा की लोकप्रियता इस घटना के बाद तेजी से बढ़ी लेकिन भाजपा बाबरी मस्जिद विध्वंस के मामले से खुद को उस वक्त अगल करने के लिए प्रयास करती रही। बाबरी मस्जिद के ध्वस्त होने के बाद भाजपा ने सिलसिलेवार ढंग से प्रेस वार्ताएं आयोजित कर पूरे घटनाक्रम को दुर्भाग्यपूर्ण बताया। 6 दिसंबर 1992 को जब कारसेवकों का एक जत्था शाम साढ़े चार बजे तक बाबरी मस्जिद को मलबे के ढेर में तब्दील कर चुका था तो ठीक उससे कुछ घंटे बाद दिल्ली में भाजपा मुख्यालय में प्रेस को बुलाकर भाजपा के विचारक केआर मलकानी ने भाजपा की ओर से बयान जारी किया कि भाजपा चाहती थी कि पुराने ढांचे को हटाया जाए लेकिन इसके लिए कानूनी प्रक्रिया अपनाई जाए लेकिन यह अनियमित तरीके से हुआ यह दुख की बात है। उन्होंने मस्जिद को ध्वस्त करने वाले कारसेवकों का भाजपा से किसी तरह के संबंध होने की बात नकारते हुए कहा कि बाबरी मस्जिद को ध्वस्त करने वाले शायद शिवसेना के समर्थक थे क्योंकि वह मराठी में बात कर रहे थे।
हालांकि, उस दौरान किसी भी तरह की अंतरराष्ट्रीय आलोचनाओं से बचने के लिए भाजपा ने कारसेवा में शामिल अपने कार्यकर्ताओं, नेताओं से पल्ला झाड़ लिया हो लेकिन बाबरी मस्जिद ध्वंस का फायदा पार्टी को मिले इसके लिए संघ से जुड़े अन्य संगठनों विश्व हिंदू परिषद समेत अन्य संगठनों से जुड़े नेताओं ने इसका खूब श्रेय लिया।
हालांकि, बाबरी मस्जिद गिराए जाने के बाद देश के अलग अलग हिस्सों में भीषण दंगे हुए और सैकड़ों लोगों को इन दंगों की आग में अपनी जान गंवानी पड़ी लेकिन बाबरी मस्जिद को गिराए जाने के मामले से त्वरित रूप से भले ही भाजपा ने खुद को अलग किया हो लेकिन इसका राजनैतिक फायदा भाजपा को जरूर मिलता रहा और अगले कुछ सालों के भीतर ही वह केंद्र में सरकार बनाने में भी सफल रही।
गाय से शुरू सुस्त सफर को राम मंदिर से मिली रफ्तार
भाजपा के आगे बढ़ने की यात्रा भी राम मंदिर आंदोलन के साथ ही शुरू होती है। जनसंघ के दौरान राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने देशभर के हिंदुओं को एक करने के लिए गौ रक्षा का अभियान शुरू किया था। संघ प्रमुख एमएस गोलवकर के अनुसार जातियों, प्रांत, भाषा, वर्ण में बंटे हिंदुओं को एकजुट करने के लिए गौ रक्षा अभियान महत्वपूर्ण साबित हो सकता है साथ ही जनसंघ को भी लगने लगा था कि गौ रक्षा अभियान के बूते वह देश के बहुसंख्यक हिंदुओं के बीच अपनी स्थिति मजबूत कर लेगी लेकिन यह अभियान संसद कूच के अलावा ज्यादा प्रभाव नहीं दिखा पाया। इसके बाद भाजपा और संघ ने राम मंदिर की तरफ ध्यान देना शुरू किया तो इस अभियान ने उन्हें खूब समर्थन मिला।