सर्दियों का मौसम और कंडाली की भुज्जी और कापिली का स्वाद …
PEN POINT , DEHRADUN : यदि आप उत्तराखंड से और खास कर पहाड़ से तो आपने कंडाली का नाम तो सुना ही होगा और अगर आप पहाड़ में पले -बढ़ें हैं तो फिर आप इसके खाने और लगने के स्वाद को तो जरूर चखे होंगे। जी हाँ हमारे स्वास्थ्य और अनुशासन के पाठ में शामिल है ये कंडाली। इसे बिच्छू घास के नाम से भी जाना जाता है। यह वनस्तपति उत्तराखंड के अलावा देश और दुनिया में भी खूब छा गयी है। यह अपने आप में अब बहु उपयोगी पौधा है। इसकी कई प्रजातियां उत्तराखंड में पाई जाती हैं। लेकिन जाहिर तौर पर अब सर्दी का मौसम जाने वाला है, लेकिन अभी पहाड़ों में बेहद सर्द मौसम है और कई ऊंचाई वाले इलाकों में बर्फवारी का सिलसिला जारी है। ऐसे में आज हम यहाँ अपने पहाड़ की बेहद खास पहचान कंडाली के बारे में यहाँ बात करने वाले हैं। ख़ास कर उसकी भोजन के तौर पर उपयोगिता को लेकर। कंडाली का साग बनता है और कई तरह से बनाया जाता है, इतना ही नहीं इसे अब शहरों में भी उपलब्ध कराने की कोशिशें हो रही हैं।
हमें इतना भरोसा जरूर है कि अगर आपने इसका साग चख लिया तो ताउम्र इसका स्वाद नहीं भूल पाएंगे। इसकी कोंपलों का साग खासकर सर्दियों में ही खाया जाता है।
इसके साग बनाने की आसान रेसिपी कुछ इस तरह से है :-
कंडाली की नई मुलायम कोपलें (250 ग्राम)
थोड़े भिगोये हुए चावल (आलण के लिए)
तेल या घी (तड़का लगाने के लिए )
साबुत लाल मिर्च भूनने के लिए
जख्या तड़का के लिए
हींग
दो हरी मिर्च (कटी हुई)
धनिया पाउडर
सबसे पहले कंडाली को एक बर्तन पर उबाल लें जिस तरह आप पालक को उबालते हैं उसी तरह। इस उबली कंडाली को सिल-बट्टे से पीसें या मिक्सी पर बारीक़ पीस लें। इसके बाद भीगे हुए चावल को भी घोल के रूप में बारीक़ पीस लें। इस घोल को जिसे हम चावल का आलण कहते हैं को थोडा सा धनिया पाउडर के साथ कंडाली के घोल के साथ अच्छे से मिक्स कर लें।
कढ़ाही पर तेल/घी गर्म करें, तेल गर्म होने पर पहले उसमें जरुरत अनुसार लाल मिर्च भूनना न भूलें, मिर्च भुन कर अलग निकाल दें, और अब तडके के लिए उसमें जख्या, हिंग डालें और फटाफट कंडाली का घोल उसमें डाल दें कंडाली की खुशबू से वातावरण महक उठेगा। अब आवश्यकता के अनुसार सिर्फ नमक डालें और करछी से अच्छी तरह हिलाते या घुमाते रहें ताकि कढ़ाही के टेल पर न जमे। पानी अंदाज का रखें कापिली न ज्यादा पतली हो न ज्यादा गाढ़ी। अच्छी तरह पकाएं कापिली तैयार है। परोसते समय घी से ज्यादा जायका आता है और हाँ भूनी पहाड़ी करारी मिर्च भी न भूलें।
कंडाली खनिज, विटामिन व औषधि का भण्डार :-
कंडाली में लौह तत्व अत्यधिक होता है। खून की कमी पूरी करती है। इसके अलावा फोरमिक ऐसिड , एसटिल कोलाइट, विटामिन ए भी कंडाली में प्रचुर मात्रा में पाया जाता है। इसमें चंडी तत्व भी पाया जाता है। गैस नाशक है आसानी से हज्म होती है। कंडाली का खानपान पीलिया, पांडू, उदार रोग, खांसी, जुकाम, बलगम,गठिया रोग, चर्बी कम करने में सहायक है। कंडाली कैंसर रोधी है, इसके बीजों से कैंसर की दवाई भी बन रही है। कंडाली की पतियों को सुखाकर हर्बल चाय तैयार होती है।
कंडाली की चाय को यूरोप के देशों में विटामिन और खनिजों का पावर हाउस माना जाता है, जो रोग प्रतिरोधक शक्ति को भी बढ़ाता है। इस चाय की कीमत प्रति सौ ग्राम 150 रुपये से लेकर 290 रुपये तक है। कंडाली से बनी चाय को भारत सरकार के एनपीओपी (जैविक उत्पादन का राष्ट्रीय उत्पादन) ने प्रमाणित किया है।