क्यों उदास है पहाड़ पर वसंत, इस सवाल से क्या नेता लोग सच में अनजान हैं?
-पीपुल्स फॉर हिमालय ने हिमालय को बचाने के लिये राजनीतिक दलों से विकास के मौजूदा मॉडल को बदलने की मांग उठाई, लद्दाख से सोनम वांगचुक की अगुआई में जुट रहे देश भर के पर्यावरण और नागरिक अधिकार संगठन
Pen Point, Dehradun : लोकसभा चुनाव के इस मौसम में पहाड़ पर वसंत उदास सा है। जंगलों से नमी गायब है, हरियाली का रंग फीका है और पानी के सोते सूखे हुए हैं। सुबह पौ फटते ही मुस्कुराते फूल और फलों की कोंपलें सूरज की तपिश बढ़ते ही मुरझा कर दम तोड़ रहे हैं। कुदरत से सीधे तौर पर जुड़े पहाड़ के वाशिंदे उलझन में हैं कि आखिर वसंत उनसे क्यों रूठ गया। क्या फिर इन पहाड़ों पर वो हरा भरा और रंग बिरंगा वसंत कब वापस लौटेगा। लेकिन ये सवाल लोकसभा चुनाव के शोर में कहीं दब कर रह गया है। सबसे खास बात ये है कि किसी भी राजनीतिक दल के ऐजेंडे में पर्यावरण का सवाल ही शामिल नहीं है। जबकि हिमालयी राज्यों में जन जीवन पर पर्यावरणीय घटनाओं का सीधा असर होता है।
लद्दाख में चल रहे आंदोलन की मुख्य धारा की मीडिया और राजनतिक बहसों में अनदेखी कई सवालों को जन्म दे रही है। यह आंदोलन लद्दाख ही नहीं पूरे हिमालयी क्षेत्र से जुड़ा है। जहां उत्तराखंड समेत पूरे देश से नागरिक अधिकार संगठनों और सामाजिक, पर्यावरण न्याय के लिए प्रतिबद्ध कार्यकर्ता जुट रहे हैं। 24वें लोकसभा चुनाव के मद्देनजर इन लोगों ने राजनीतिक दलों की ध्यान अपनी ओर खींचने की कोशिश की है। जिसके पीपुल्स फॉर हिमालय नामक अभियान की शुरूआत की है। अभियान के तहत ऑनलाइन प्रेस कॉन्फ्रेंस के जरिए राजनीतिक पार्टियों के लिए एक पांच सूत्रीय मांग पत्र जारी किया है।
इस सम्मेलन में लद्दाख को पूर्ण राज्य का दर्जा दिलवाने की मांग को लेकर आंदोलनरत सोनम वांगचुक भी जुड़े। उन्होंने कहा कि कहा कि अद्भुत टोपोग्राफी, संस्कृति और जीवनशैली वाले क्षेत्रों में विकास और शासन का ऊपर से थोपा जाने वाला मॉडल काम करने वाला नहीं है।
जोशीमठ बचाओ संघर्ष समिति की तरफ से अतुल सती और हिमालयन नीति अभियान की तरफ से गुमान सिंह ने जमीन के अंदर अतिक्रमण और भारी निर्माण और कचरे को देखते हुए बांध, रेलवे लाइन और फोरलेन जैची बड़ी ढांचागत परियोजनाओं पर पूरी तरह रोक लगाने की मांग जोर शोर से उठाई। उनका कहना था कि चाहे वह ब्यास में आई बाढ़ हो या फिर जोशीमठ में भूमि धंसाव ये प्राकृतिक नहीं, बल्कि मानव निर्मित आपदाएं हैं, इसके लिए नीतियां जिम्मेदार हैं। उन्होंने दोहराया कि अर्थव्यवस्था और शासन मुनाफा केंद्रित नहीं बल्कि जन केंद्रित होना चाहिए।
पर्वतीय महिला अधिकार मंच, हिमाचल की तरफ से विमला विश्वप्रेमी, वन गुज्जर ट्राइबल युवा संगठन, उतराखंड की तरफ से अमन गुज्जर ने कहा कि पर्यावरण संकट के लिये नीतियों बनाने वाले लोगों वो लोग शामिल नहीं हैं जो सीधे तौर पर इससे प्रभावित होते हैं। इसमें हिमालय के चरवाहे, भूमिहीन दलित और महिला जैसे हाशिये के लोग शामिल हैं। जब वे अपने पांव पर खड़े होने की कोशिश करते हैं तो उनके लिए समर्थन और एकजुटता नजर नहीं आती। अमन गुज्जर ने कहा कि एक तो हम आपदाओं से घिरे हुए हैं दूसरी तरफ लगातार हमारी भूमि पर जबरन वृक्षारोपण जैसी नीतियां अपनाई जाती हैं और हमारे जीवन, आजीविका के अधिकारों को प्रतिबंधित किया जाता है।
तीस्ता प्रभावित नागरिक (एसीटी) की तरफ से मयलमित लेपचा और नार्थ ईस्ट डायलॉग फॉरम की तरफ से मोहन सैकिया ने स्थानीय आदिवासी समुदायों से अनुमति लिए बिना ब्रह्मपुत्र और उसकी सहायक नदियों पर प्रस्तावित भारी पन विद्युत परियोजनाओं के प्रति अपनी गंभीर चिंता प्रकट की, जिनसे वहां के पर्यावरण पर बुरे प्रभाव पड़ेंगे। सैकिया ने कहा कि ये ढांचागत परियोजनाओं का दूरगामी प्रभाव बाढ़ के रूप में नीचे तक दिखाई देता है।
अभियान के तहत आने राजनीतिक दलों के लिये पांच सूत्रीय मांग पत्र जारी किया गया। जिसमें हिमालयी क्षेत्र में विकास के मौजूदा मॉडल से इतर सोचने की बात कही गई है। बताया गया कि आने वाले दिनों में मीडिया अभियान के साथ-साथ राजनीतिक दलों को पत्र लिखकर इस मांग पत्र से अवगत करवाया जाएगा और इसका अधिक से अधिक प्रचार प्रसार किया जाएगा।
Image source- Hill Post