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चीन को पीछे छोड़ आबादी में अव्वल हुए हम, धरती पर हर छठा इंसान भारतीय है !

Pen Point, Dehradun : आबादी के लिहाज से हम दुनिया में अव्वल हो गए हैं। संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या कोष (यूएनएफपीए) की ओर से जारी वर्ल्ड पॉपुलेशन रिपोर्ट 2024 में से इस बात की पुष्टि होती है। रिपोर्ट में भारत की कुल आबादी 144.17 करोड़ पहुंच गई है। इस मामले में हमने चीन को पीछे छोड़ा है जिसकी आबादी 142.5 दर्ज की गई है। दुनिया की कुल आबादी के साथ तुलना करने पर कहा जा सकता है आज धरती पर हर छठा व्यक्ति भारतीय है।

पर्यावरण पत्रिका डाउन टु अर्थ में इस बाबत विस्तार से सामग्री प्रकाशित की गई है। जिसमें यूनएफपीए की रिपोर्ट का हवाला देते हुए बताया गया है कि धरती इंसानी आबादी बढ़कर 811.9 करोड़ पर पहुंच चुकी है। जिसमें से 17.8 फीसदी आबादी भारतीयों की है। देखा जाए तो 1950 में भारत की आबादी महज 35.3 करोड़ थी। तब से अब तक देश की आबादी में 100 करोड़ से ज्यादा का इजाफा हो चुका है। बता दें कि भारत में आधिकारिक तौर पर 2011 में की गई जनगणना में भारत की कुल आबादी 121.08 करोड़ दर्ज की गई थी।

गौरतलब है कि 1950 से आज तक यानी पिछले 74 वर्षों में देश की आबादी बढ़कर चौगुनी हो चुकी है। रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि बढ़ोत्तरी की यही दर रही तो आने वाले 77 वर्षों में देश की आबादी बढ़कर दोगुनी हो जाएगी।
विभिन्न आयु वर्गों पर नजर डालें तो रिपोर्ट बताती है कि देश में सात प्रतिशत आबादी बुजुर्गों की है। जिनकी आयु 65 वर्ष या उससे अधिक है। वहीं दूसरी ओर 24 प्रतिशत आबादी 14 वर्ष या उससे कम उम्र के बच्चों की है। जबकि 26 प्रतिशत आबादी की उम्र 10 से 24 वर्ष की है। 15 से 64 साल के लोगों की तादाद 68 प्रतिशत है। सके अलावा रिपोर्ट में बताया गया है कि पुरूषों की जीवन प्रत्याशा 71 वर्ष तथा महिलाओं की 74 वर्ष दर्ज की गई है।

नाबालिग बच्चियों का विवाह
यूएनएफपीए की रिपोर्ट में भारत में किशोर जन्म दर का आंकड़ा 11 दर्ज किया गया है। उल्लेखनीय है कि किशोर जन्म दर 15 से 19 वर्ष की आयु की प्रति 1,000 लड़कियों पर जन्म की संख्या है। यह दर किसी आबादी में किशोर गर्भावस्था को मापने का एक सामान्य तरीका है। इसी तरह संयुक्त राष्ट्र रिपोर्ट के मुताबिक 2006 से 2023 के बीच देश में 20 से 24 वर्ष की 23 फीसदी महिलाओं का विवाह 18 वर्ष की होने से पहले ही हो गया था।

सके अलावा रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि 1990 के बाद से गर्भावस्था और प्रसव के दौरान माओं की होने वाली मृत्यु के मामले में भारत ने उल्लेखनीय प्रगति की है। जहां 1990 में दुनिया में गर्भावस्था या प्रसव के दौरान होने वाली कुल मौतों में से 26 फीसदी भारत में हो रही थी। वहीं 2020 में यह आंकड़ा घटकर आठ फीसदी रह गया है।

हालांकि रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि भारत में गर्भावस्था और प्रसव के दौरान जोखिम को लेकर असमानताएं बनी हुई हैं। रिपोर्ट में 640 जिलों पर किए एक अध्ययन का उल्लेख किया गया है। जिसके मुताबिक एक तिहाई जिलों ने मातृ मृत्यु अनुपात को कम करने के सतत विकास के लक्ष्य को हासिल कर लिया है।

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