वनाग्नि : राज्य गठन के बाद हर साल औसतन 3 हजार हेक्टेयर जंगल हो रहे बर्बाद
– राज्य बनने के बाद बीते साल तक 55 हजार हेक्टेयर के करीब वन भूमि वनाग्नि से हुई बर्बाद, अरबों रूपए की वन संपदा भी जलकर हुई खाक
Pen Point, Dehradun : गर्मियों की दस्तक के साथ ही प्रदेश के जंगलों के धधकने की तस्वीरें भी आप तक पहुंच रही होगी। प्रदेश के बड़े हिस्से में जंगल जल रहे हैं और यह सिलसिला लंबे से अनवरत जारी है। आलम यह है कि राज्य बनने के बाद करीब 71 फीसदी वन क्षेत्र वाले इस प्रदेश में करीब 55 हजार हेक्टेयर जंगल वनाग्नि की भेंट चढ़ चुके हैं। तमाम दावों के बावजूद हर साल गर्मियों की दस्तक प्रदेश के जंगलों पर भारी पड़ रही है, मानसून के आगमन तक हर साल हजारों हेक्टेयर जंगल आग की भेंट चढ़ रहे हैं।
प्रदेश में शुक्रवार को लोकसभा चुनाव निपटने के बाद शनिवार को पहली बैठक में मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने प्रदेश में जंगलों में लगी आग को लेकर एक महत्वपूर्ण बैठक बुलाई। मुख्यमंत्री ने आदेश दिया कि वनों में लगी आग बुझाने को लेकर डीएफओ की जवाबदेही तय होगी। असल में प्रदेश में हर साल की तरह ही गर्मियों की दस्तक के साथ ही जंगल भड़क उठते हैं। जगह जगह जंगलों में लगी आग और इलाकें में वनाग्नि से छाई धुंध की तस्वीरें भी बीते कई दिनों से खूब देखी जा रही है। लोकसभा चुनाव के प्रचार में व्यस्त प्रदेश सरकार ने आखिरकार चुनाव निपटने के बाद इसकी सुध ली लेकिन इसके बावजूद भी जंगलों में फैली आग पर नियंत्रण नहीं पाया जा सका है। यह कोई नई कहानी नहीं है। देश के सबसे ज्यादा वनाच्छादित प्रदेशों में शुमार उत्तराखंड की साख पर वनाग्नि लंबे समय से बट्टा लगा रही है। 9 नवंबर 2000 में बने यह प्रदेश अपनी सिल्वर जुबली मनाने से पहले ही जंगलों की आग के चलते करीब 55 हजार हेक्टेयर जंगल वनाग्नि के चलते बर्बाद कर चुका है। 53,483 वर्ग किमी क्षेत्रफल के उत्तराखंड में 38 हजार वर्ग किमी वन क्षेत्र है। हाल के सालों में वनाग्नि की बढ़ती घटनाओं के चलते बीते सालों में ही हर साल औसतन 3 हजार हेक्टेयर वन भूमि जंगलों की आग की भेंट चढ़ रही है। साल 2019 में प्रदेश भर के जंगलों में लगी आग के चलते 2981 हेक्टेयर वन भूमि प्रभावित हुई। 2020 में कोविड काल के दौरान जंगल की आग भी ठंडी पड़ गई थी। 2020 में सिर्फ 172 हेक्टेयर वन भूमि ही वनाग्नि से प्रभावित रही। जो इस बात की तस्दीक करती है कि जंगलों में लगने वाली आग में 90 फीसदी मानवजनित है। हालांकि, 2020 के कोविड साल में जंगल में लगने वाली आग शांत रही हो लेकिन 2021 में वनाग्नि से प्रचंड रूप लेते हुए करीब 3,576 हेक्टेयर वन भूमि को प्रभावित किया जबकि 2022 में भी वनाग्नि ने खूब तांडव मचाया और 3,425 हेक्टेयर वन क्षेत्र को अपनी लपेट में लिया।
इस साल भी गर्मियों की दस्तक से पहले ही जंगलों के धधकने की तस्वीरें हर रोज आ रही है। हर साल जंगलों में लगने वाली आग की घटनों में बढ़ोत्तरी के बावजूद भी वन विभाग और राज्य सरकार पूरे साल भर चैन की नींद में सोई रहती है जबकि वनाग्नि के दौरान ही इस पर चिंता जताती दिखती है। वन विभाग की माने तो लोगों को पर्याप्त जागरूक करने, जंगलों में आग लगाने वाले नागरिकों के खिलाफ सख्त कानूनी कार्रवाई करने के बावजूद भी वनाग्नि की घटनाएं रूक नहीं रही है। वहीं, ग्रामीणों की माने तो जंगलों में चीड़ की पत्तियों को हटाए बगैर हरी घास का उगना संभव नहीं है ऐसे में ग्रामीण चीड़ की पत्तियों को हटाने के लिए आग लगा देते हैं जिससे वह जल जाए और बारिश होने पर हरी घास जल्दी उगनी शुरू हो जिससे चारे की समस्या खत्म हो सके । गौरतलब है कि उत्तराखंड में वन भूमि में 28 फीसदी हिस्से पर चीढ़ के पेड़ों का कब्जा है जिससे हर साल औसतन 20 लाख टन चीढ़ की पत्तियां सूखकर वनभूमि को ढक लेती है और उत्तराखंड में जंगलों में आग लगने में सबसे ज्यादा योगदान चीढ़ की सूखी पत्तियों और चीढ़ के पेड़ों में मौजूद ज्वलनशील लीसा को माना जाता है ।