देहरादून : जहां कभी घरों में पंखे नहीं थे, अब क्यों झुलसा रही है गर्मी ?
Pen Point, Dehradun : कभी देहरादून में पंखे और कूलर की जरूरत नहीं होती थी। लेकिन आज हालात बदल गए हैं, साल दर साल शहर भीषण गर्मी का सामना कर रहा है। इस बार तो पारा 44 डीग्री को छू रहा है, जो दिल्ली से थोड़ा ही कम है। हालांकि आस पास के ग्रामीण इलाकों में शहर के मुकाबले तापमान राहत भरा है।
सवाल उठता है कि जलवायु परिवर्तन के साथ क्या बढ़ता शहरीकरण इसके लिये जिम्मेदार है ? आईआईटी भुवनेश्वर के शोधकर्ताओं ने अपने अध्ययन से इस सवाल का जवाब दिया है। जिसके मुताबिक भारतीय शहरों में साठ फीसदी तक तापमान शहरीकरण ने ही बढ़ाया है। नेचर डॉट कॉम में प्रकाशित इस अध्ययन में देहरादून को भी शामिल किया गया है।
अध्ययन में बताया गया है कि देहरादून में झुलसाने वाली गर्मी का कारण शहरीकरण ही है। जिसका योगदान यहां के बढ़ते तापमान में 80.02 फीसदी है। इसके लिये शोधकर्ताओं ने 2003 से 2020 के बीच नासा के मोडिस एक्वा उपग्रह से प्राप्त आंकड़ों की मदद ली है।
गौरतलब है कि साल 2000 में उत्तराखंड राज्य बनने के साथ ही देहरादून को अस्थायी राजधानी बनाया गया। देखते ही देखते यहां जमीनों के गोरखधंधे के साथ ही बेतहाशा निर्माण कार्य शुरू हुए। अस्थायी राजधानी के बावजूद बड़े पैमाने पर यहां सरकारी और गैर सरकारी निर्माण विस्तार लेते गए। नदी नालों के साथ ही पुरानी नहरों और तालाबों को भी नहीं बख्शा गया। इस प्रक्रिया में पेड़ों और हरियाली की जमकर कुर्बानी दी गई और कंक्रीट का जंगल खड़ा कर दिया गया।
भले ही बढ़ते शहरीकरण सामाजिक आर्थिक बदलावों में तेजी आई है, लेकिन यह प्राकृतिक संसाधनों की कीमत पर हो रहा है। कुदरत की संरचना में इंसानी दखल की कीमत भी चुकानी पड़ रही है। कभी अपनी खास आबो हवा के लिये मशहूर रही दून घाटी पर्यावरणीय बदलावों को लेकर काफी संवेदनशील है। देहरादून में पुराने समय से रह रहे स्थानीय लोगों के मुताबिक पहले जिस दिन गर्मी ज्यादा होती थी उस दिन शाम को रिमझिम बारिश का होना तय था। लेकिन अब ऐसा नजर नहीं आता है।
इस अध्ययन में देहरादून का एक शहर हरिद्वार भी शामिल है, जहां के बढ़े हुए तापमान में शहरीकरण का योगदान नजर नहीं आता। वहीं पटना, चंडीगढ़ और भोपाल जैसे शहरों से ऊपर देहरादून को रखा गया है, यानी यह उन प्रमुख शहरों में शामिल है, जहां शहरीकरण ने बड़े पैमाने पर तापमान को बढ़ाया है।
हालिया आंकड़ों को देखें तो दुनिया में जमीन के केवल एक फीसदी हिस्से पर ही शहर हैं, लेकिन दुनिया की आधी आबादी इन्हीं शहरों में ठूंस कर भरी हुई है। अनुमान है कि 2050 तक दुनिया की 68 फीसदी आबादी शहरों में रह रही होगी। ऐसे हालात में शहरों की ऊर्जा के साथ खाद्य की मांग भी बढ़ना लाजिमी है। शहरों का उत्सर्जन तापमान में और बढ़ोत्तरी करेगा। हालांकि जिन शहरों में शहरीकरण विशेष प्लानिंग के तहत हुआ है, वहां तापमान में कोई खास बढ़ोत्तरी नहीं दिखी है।