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ऊर्जा प्रदेश नहीं बन सका उत्तराखंड, सीएम धामी ने केंद्र से मांगी बिजली

Pen Point, Dehradun : उत्तराखड राज्य निर्माण के शुरूआती दौर में इसे ऊर्जा प्रदेश कहा जाने लगा था। यहां बन रही जल विद्युत परियोजनाओं और भविष्य की संभावनाओं को देखते हुए ही राज्य को यह उपमा दी गई थी। खासतौर पर राजनीतिक जुमलों में ऊर्जा प्रदेश की अवधाराणा फिट बैठ रही थी। जबकि तब भी राज्य में अपनी जरूरतों के लिये बिजली पैदा नहीं हो रही थी। वही हालात आज भी बने हुए हैं और बिजली के लिये उत्तराखंड बाहरी राज्यों और बिजली संयंत्रों पर निर्भर हैं। इसी सिलसिले में मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने देश के नये नवेले उर्जा मंत्री मनोहर लाल खट्टर से मुलाकात की। मुख्यमंत्री ने उत्तराखंड के लिए केन्द्रीय तापीय संयंत्रों से 500 मेगावाट अतिरिक्त विद्युत आपूर्ति उत्तराखण्ड राज्य को स्थायी रूप से आवंटित किये जाने का अनुरोध किया।

मुख्यमंत्री ने कहा कि उत्तराखण्ड राज्य में विद्युत उत्पादन के लिये केवल जल विद्युत ऊर्जा उत्पादन केन्द्रों की उपलब्धता है जिसके फलस्वरूप राज्य के कुल उर्जा उत्पादन में 55ः से अधिक ऊर्जा जल विद्युत ऊर्जा स्रोतों से प्राप्त होती है। कोयला आधारित संयंत्रों का राज्य के उर्जा उत्पादन में केवल 15ः हिस्सा ही है। जिसके चलते राज्य में बेस लोड क्षमता का अभाव राज्य की ऊर्जा सुरक्षा के लिये कठिन चुनौती बनता जा रहा है।

सर्दियों में जल विद्युत उत्पादन कमी आ जाती है और इस दौरान औसतन 300-400 मेगावाट ऊर्जा ही मिल पाती है, जो ऊर्जा सुरक्षा की स्थिति को और गम्भीर बनाती है। राज्य में लगभग 4800 मेगावाट क्षमता की जलविद्युत परियोजनाओं का निर्माण पर्यावरणीय कारणों से विभिन्न न्यायालयों अथवा अन्य स्तरों पर लंबित है। जिस कारण राज्य में उपलब्ध जल शक्ति का विकास न हो पाने के कारण राज्य में विद्युत की माँग एवं उपलब्धता का अन्तर लगातार बढ़ता जा रहा है।

मुख्यमंत्री ने कहा कि केन्द्रीय विद्युत प्राधिकरण, नई दिल्ली की ओर से इस वर्ष संपादित की गई रिसोर्स ऐडिक्वेसी अध्ययन में भी उत्तराखंड राज्य के वर्ष 2027-28 तक 1200 मेगावाट अतिरिक्त विद्युत कोयला आधारित तापीय संयत्रों से प्राप्त किये जाने की संस्तुति की गई है।

आने वाले पांच सालों में राज्य की आर्थिकी को दोगुना करने का लक्ष्य है। इस लक्ष्य की प्राप्ति के लिये राज्य के आधारभूत ढांचे में व्यापक वृद्धि की जानी है, जिसमें राज्य में औद्योगिकीकरण, सेवा क्षेत्र जिसमें पर्यटन से जुड़ा आधारभूत ढाँचा मुख्य है, कृषि एवं वानिकी तथा शिक्षा आदि क्षेत्रों में मुख्य रूप से निवेश आकर्षित हो रहा है, जिसके फलस्वरूप निकट भविष्य में विद्युत की मांग में तेज वृद्धि अपेक्षित है।

जाहिर है कि बिजली की बढ़ती मांग और उत्पादन में कमी से राज्य सरकार भी जूझ रही है। जबकि वैकल्पिक उर्जा उत्पादन के लिये उत्तराखंड में सौर उर्जा को भी लगातार बढ़ावा दिया जा रहा है। इसके बावजूद मांग और उत्पादन में भारी अंतर है।

छोटी जल विद्युत परियोजनाओं की जरूरत
जानकार मानते हैं कि राज्य में छोटी जल विद्युत परियोजनाओं की बहुत संभावना है। यह मांग शुरू से ही होती रही है और इसी सोच के आधार पर अनुमान लगाया गया था कि उत्तराखंड उर्जा प्रदेश बन सकता है। बड़ी परियोजनाओं के निर्माण में जहां बड़े निवेश के साथ पर्यावरणीय संतुलन बिगड़ने और अन्य तरह के जोखिम शामिल हैं, वहीं छोटी परियोजनाओं को स्थानीय लोगों की भागीदारी के साथ तैयार किया जा सकता है।

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