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चर्चा में :  12वीं पास वह नेता जो राजनीति में असफल होकर धर्म की राह पर चला तो विवादों ने रास्ता रोक दिया

Pen Point, Dehradun : बीती 10 जुलाई को प्रदेश के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी एक भूमि पूजन कार्यक्रम में दिल्ली पहुंचे थे। बुराड़ी में आयोजित हुए इस कार्यक्रम में दिल्ली में प्रस्तावित केदारनाथ मंदिर का भूमि पूजन होना था। अगले दिन मीडिया में खबर छपते ही यह पूरा मामला विवादों में आ गया। आरोप लगाया गया कि दिल्ली में केदारनाथ धाम के नाम से मंदिर का निर्माण करवाया जा रहा है, इसे हिंदु आस्था और केदारनाथ धाम के साथ खिलवाड़ करार दिया गया। केदारनाथ धाम समेत चारों धामों के तीर्थ पुरोहितों समेत उत्तराखंड के स्थानीय लोगांे ने इसका खूब विरोध किया। इस पूरे विवाद में एक आदमी केंद्र बिंदु रहा और वह था इस भूमि आयोजन का कर्ता धर्ता सुरेंद्र रौतेला। मूल रूप से अल्मोड़ा निवासी सुरेंद्र रौतेला ने हाल ही में श्री केदारनाथ धाम ट्रस्ट बनाकर दिल्ली में केदारनाथ धाम मंदिर बनाने की योजना बनाई थी और इसी मंदिर का भूमि पूजन करने मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी समेत अल्मोड़ा सांसद और केंद्रीय राज्य मंत्री अजय टम्टा भी पहुंचे थे। करीब डेढ़ हफ्ते से सुरेंद्र रौतेला चर्चाओं में है। कभी राजनीति में संभावनाएं ढूंढने वाले सुरेंद्र रौतेला ने दिल्ली में केदारनाथ धाम निर्माण को लेकर नए विवादों को जन्म दिया है।

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अन्ना आंदोलन के दौरान अरविंद केजरीवाल के नेतृत्व में आम आदमी पार्टी साल 2013 में दिल्ली के पहले विधानसभा चुनाव में उतरी। बुराड़ी निवासी तब 43 वर्षीय सुरंेद्र रौतेला भी शुरूआती दिनों में आम आदमी पार्टी से जुड़े थे तो उन्होंने भी टिकट की दावेदारी की। उनका दावा था कि बुराड़ी विधानसभा में उत्तराखंड मूल के मतदाताओं की अच्छी खासी संख्या है लिहाजा उनके जीतने की संभावनाएं ज्यादा है लेकिन आम आदमी पार्टी ने उन्हें टिकट न देकर संजीव झा को प्रत्याशी बनाया। लेकिन, सुरेंद्र रौतेला ने भी निर्दलीय ही चुनावी मैदान में ताल ठोंक दी। लेकिन, वह कुल 27 सौ मत लाने में ही सफल हो सके। हालांकि, उसके बाद भाजपा से नजदीकी बढ़ाते हुए उसके बाद कई बार बुराड़ी से टिकट पाने की कोशिश की लेकिन सफल नहीं हो सके। उसके बाद 2017 में जब भाजपा उत्तराखंड में सत्ता में आई तो सुरेंद्र रौतेला ने राज्य के खासकर कुमाऊं के प्रमुख भाजपा नेताओं से नजदीकी बढ़ानी शुरू की। 2022 में कालाढूंगी से टिकट की भी दावेदारी की लेकिन भाजपा ने उन्हें फिर निराश किया। हालांकि, इसके बाद राजनीति में सीधे दाखिल होने का सपना छोड़ उन्होंने खुद को धर्म के प्रति समर्पित करने का फैसला लिया। साल 1986 में अल्मोड़ा के सल्ट विकास खंड स्थित राजकीय इंटर कॉलेज देयावाल से 12वीं पास सुरेंद्र रौतेला ने दिल्ली के बुराड़ी में अपने भूखंड पर ही कुमाऊं में न्याय के देवता के रूप में प्रसिद्ध गोलू देवता का मंदिर बनाने का फैसला लिया। लेकिन, नाते रिश्तेदारों को यह फैसला रास नहीं आया। यूं तो अल्मोड़ा स्थित गोलू देवता के मंदिर प्रदेश व देश के अलग अलग हिस्सों में उनमें आस्था रखने वाले लोगों ने बनाए हैं लेकिन दिल्ली में सुरेंद्र रौतेला के रिश्तेदारों व परिचितों ने उन्हें गोलज्यू मंदिर बनाने का विचार त्यागने को कहा। हालांकि, उनके शुभचिंतकों ने उन्हें साईं मंदिर के निर्माण का भी सुझाव दिया। जिस पर उन्होंने खूब विचार तो किया लेकिन उन्हें यह जंचा नही।

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इसके बाद सुरेंद्र रौतेला ने श्री केदारनाथ धाम ट्रस्ट बनाकर बुराड़ी में केदारनाथ धाम मंदिर बनाने का फैसला लिया। इसके लिए केदारनाथ धाम से बाबा केदार के स्वरूप में शिला दिल्ली पहुंचाई गई। शुरूआती दौर में दावा किया गया था कि दिल्ली में बनने वाले इस मंदिर में बाबा केदार के 12 महीनों दर्शन होंगे। साथ ही दावा किया गया कि जो श्रद्धालु उम्र, शारीरिक विषमता के चलते केदारनाथ धाम नहीं पहुंच सकते हैं उन्हें दिल्ली स्थित इस मंदिर में दर्शन से बाबा केदार के दर्शन जैसा पुण्य मिलेगा। 10 जुलाई को जब इस मंदिर के निर्माण के लिए भूमि पूजन हुआ तो इसके लिए जारी आमंत्रण पत्रों में भी यही दावा किया गया था। साथ ही मंदिर निर्माण के लिए चंदा जुटाने को भी एक पोस्टर जारी किया गया था। पोस्टर के अनुसार भव्य केदारनाथ मंदिर का निर्माण 14,100 गज की भूमि पर होना है। जिसके लिए ट्रस्टी बनने को 1 लाख 1 हजार रूपए और पत्नी समेत ट्रस्टी बनने के लिए डेढ़ लाख रूपए का चंदा देने की शर्त रखी गई थी। एक बार चंदा देने के बाद ट्रस्टीशिप पीढ़ी दर पीढ़ी जारी रहने का वायदा किया गया था। यहां तक कि 2 लाख, 3 लाख और पांच लाख रूपए में भी ट्रस्टी बनने के विकल्प दिए गए थे।
हालांकि, भूमि पूजन के बाद उत्तराखंड में रहे व्यापक विरोध के बाद सुरेंद्र रौतेला कई बार उत्तराखंड आकर इस बात को दोहरा रहे हैं कि दिल्ली में सिर्फ केदारनाथ मंदिर बन रहा है न कि केदारनाथ धाम। हालांकि, उनके ट्रस्ट के नाम पर भी सवाल उठने लगे तो उन्होंने अब दावा किया कि उन्होंने ट्रस्ट के नाम बदलने की प्रक्रिया शुरू कर दी है।
राजनीति में फेल होने के बाद 12वीं पास सुरेंद्र रौतेला ने केदारनाथ धाम मंदिर के जरिए एक नई राह चुनी थी, लेकिन इस राह की शुरूआती दौर में ही जितने विवाद पैदा हो चुके हैं उससे लगने लगा है कि राजनीति की तरह की धर्म की डगर भी उनके लिए आसान साबित नहीं होगी।

 

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