2024 में उत्तराखंड विधानसभा ने बस 10 दिन किया काम– क्या इतना काफी है?
-2024 में विधानसभा सत्र के दिनों के मामले में उत्तराखंड निचले पायदान पर
Pen Point, 16 May 2025 : उत्तराखंड जैसे संवेदनशील पर्वतीय राज्य में जहां विकास, पर्यावरण और जनसंख्या से जुड़े मसले गंभीर हैं, वहां की विधानसभा 2024 में कुल सिर्फ 10 दिन ही बैठी। गैर-लाभकारी संगठन पीआरएस लेजिस्लेटिव रिसर्च की नई रिपोर्ट के अनुसार यह आंकड़ा राज्य को देश की सबसे कम सक्रिय विधानसभाओं में शामिल करता है।
रिपोर्ट बताती है कि 2024 में देश की विधानसभाओं की औसत बैठक अवधि 20 दिन रही, जबकि उत्तराखंड में यह संख्या आधी से भी कम रही। राज्य में वर्ष भर में चार सत्र (विशेष, बजट, मानसून और शीतकालीन) हुए लेकिन कुल बैठकें सिर्फ 11 दिन चलीं।
इस साल के दौरान, ओडिशा (42 दिन) और केरल (38 दिन) सबसे अधिक बैठक करने वाले राज्य रहे। उत्तराखंड बड़े राज्यों जैसे उत्तर प्रदेश (16 दिन) और मध्य प्रदेश (16 दिन) से भी पीछे रहा। उत्तराखड अरूणाचल प्रदेश, नागालैंड, पुडुचेरी और सिक्किम जैसे राज्यों के साथ निचले पायदान पर मौजूद है।
गंभीर विषय, सीमित चर्चा
उत्तराखंड विधानसभा ने इस वर्ष समान नागरिक संहिता (UCC) जैसे ऐतिहासिक विधेयक को पारित किया, जो विवाह, तलाक, उत्तराधिकार और लिव-इन संबंधों को नियंत्रित करता है। यह विधेयक व्यापक सामाजिक प्रभाव रखने वाला है, लेकिन सवाल यह उठता है कि क्या इतने कम दिनों में इतने गंभीर विधेयकों पर पर्याप्त चर्चा संभव है?
रिपोर्ट में कहा गया है कि 2024 में राज्यों द्वारा पारित किए गए 500 से अधिक विधेयकों में से 51% से अधिक एक ही दिन में पास किए गए। उत्तराखंड भी ऐसे राज्यों में शामिल है जहां विधेयकों पर चर्चा की बजाय उन्हें जल्दबाज़ी में पारित किया गया।
कानून बनाने की शक्ति, लेकिन इच्छाशक्ति की कमी?
भारतीय संविधान की सातवीं अनुसूची राज्यों को शिक्षा, स्वास्थ्य, स्थानीय प्रशासन, भूमि, कृषि जैसे विषयों पर कानून बनाने का अधिकार देती है। लेकिन जब विधानसभाएं गंभीर चर्चा के लिए पर्याप्त समय ही नहीं देतीं, तो जनहित की नीतियों का विस्तार अधूरा रह जाता है।
2024 में पारित विधेयकों में लगभग आधे शिक्षा, वित्त और स्थानीय प्रशासन से संबंधित थे। उत्तराखंड में भी UCC के अलावा कुछ अन्य प्रशासनिक विधेयक पारित किए गए, लेकिन उनकी विस्तार से समीक्षा नहीं हो सकी।
बैठक के घंटे और विधेयकों की गति
रिपोर्ट के अनुसार, 2024 में विधानसभा की प्रत्येक बैठक औसतन 5 घंटे की रही। इस अवधि में प्रश्नकाल, शून्यकाल, विधेयकों पर चर्चा और पारित करने की प्रक्रिया शामिल होती है। ऐसे में अगर बैठकें ही सीमित हों तो विधायकों को जनता से जुड़े सवाल उठाने और सरकार से जवाबदेही तय करने का भी पर्याप्त मौका नहीं मिल पाता।
क्या कहता है अनुभव?
2017 से 2024 के बीच केरल ने औसतन 44 दिन, ओडिशा ने 40 दिन और कर्नाटक ने 34 दिन सालाना बैठक की है। उत्तराखंड में यह आंकड़ा लगातार नीचे बना हुआ है, जिससे राज्य की लोकतांत्रिक प्रक्रिया की गंभीरता पर सवाल उठते हैं।
उत्तराखंड जैसे राज्य में जहां प्राकृतिक आपदाएं, पलायन, जनजातीय अधिकार, पर्यटन और पर्यावरण संतुलन जैसे कई मुद्दे हैं, वहां अगर विधानसभा पूरे साल में सिर्फ 10 दिन ही सक्रिय रहे तो यह जनप्रतिनिधित्व की भावना और लोकतांत्रिक पारदर्शिता – दोनों के लिए चिंता का विषय है।
पीआरएस की रिपोर्ट राज्य सरकारों और विधायकों को एक आईना दिखाती है कि सिर्फ विधेयक पारित करना ही नहीं, बल्कि उस पर गहन चर्चा करना लोकतंत्र की आत्मा है।