उत्तराखंड में संरक्षित पौधों की संख्या हुई दोगुनी, 120 प्रजातियाँ खतरे में- वन विभाग की रिपोर्ट
-जैव विविधता दिवस पर जारी हुई छठी वार्षिक रिपोर्ट, ‘प्लांट ब्लाइंडनेस’ से निपटने की पहल
Pen Point, 23 May 2025 : अंतर्राष्ट्रीय जैव विविधता दिवस के अवसर पर उत्तराखंड वन विभाग के अनुसंधान विंग ने अपनी छठी वार्षिक रिपोर्ट जारी की है। इस रिपोर्ट में एक महत्वपूर्ण उपलब्धि सामने आई है-राज्य में संरक्षित पौधों की प्रजातियों की संख्या दोगुनी होकर 2228 तक पहुंच गई है। 2020 में यह संख्या 1145 थी।
इस सूची में से 120 पौधों की प्रजातियाँ अब भी संकटग्रस्त या लुप्तप्राय श्रेणियों में शामिल हैं, जिनमें से 75 को अंतरराष्ट्रीय प्रकृति संरक्षण संघ (IUCN) की रेड लिस्ट में भी सूचीबद्ध किया गया है। इन संकटग्रस्त पौधों में व्हाइट हिमालयन लिली (Lilium polyphyllum), ट्रेमैन (Gentiana kurroo), अतीस (Aconitum heterophyllum), सीता अशोक (Saraca asoca), डोलू (Rheum webbianum) और ट्री फर्न (Cyathea spinulosa) जैसी महत्वपूर्ण प्रजातियाँ शामिल हैं।
रिपोर्ट में संरक्षण की विस्तृत श्रेणियाँ
रिपोर्ट में इनसीटू (प्राकृतिक आवास में) और एक्स-सीटू (प्राकृतिक आवास से बाहर) संरक्षण के ज़रिए की गई कोशिशों को सात श्रेणियों में बांटा गया है। संरक्षित 2228 प्रजातियों में शामिल हैं-
528 पेड़
187 जड़ी-बूटियाँ
175 झाड़ियाँ
46 बांस की प्रजातियाँ
88 जंगली बेलें
12 बेंत की प्रजातियाँ
107 घासें
192 फ़र्न
115 ऑर्किड
88 ताड़
31 साइकैड
290 कैक्टि और रसीले पौधे
50 जलीय पौधे
29 कीटभक्षी पौधे
86 लाइकेन
118 ब्रायोफाइट्स
14 शैवाल और
15 वायु पादप की प्रजातियाँ
इनमें से 60 प्रजातियाँ उत्तराखंड या भारतीय हिमालयी क्षेत्र की स्थानिक (मदकमउपब) प्रजातियाँ हैं, यानी वे केवल इसी भौगोलिक क्षेत्र में प्राकृतिक रूप से पाई जाती हैं।
प्लांट ब्लाइंडनेस से लड़ने की पहल
मुख्य वन संरक्षक (अनुसंधान) संजीव चतुर्वेदी के अनुसार यह पहल वर्ष 2020 में शुरू हुई थी। उद्देश्य था- जलवायु परिवर्तन, खनन और अनियोजित निर्माण जैसे मानवीय खतरों के बीच पौधों की घटती संख्या के प्रति लोगों में जागरूकता बढ़ाना।
चतुर्वेदी ने यह भी बताया कि ष्पौधों का संरक्षण अक्सर जानवरों दृ जैसे बाघ या हाथियों की तुलना में कम ध्यान आकर्षित करता है। इसकी एक वजह यह भी है कि वन्यजीवों के साथ ग्लैमर का एक तत्व जुड़ा होता है। परंतु पौधे पारिस्थितिकी में अहम भूमिका निभाते हैं- जैसे कार्बन पृथक्करण में योगदान देना, औषधीय कच्चा माल प्रदान करना आदि।
उन्होंने बताया कि इस रिपोर्ट को प्रकाशित करने का एक उद्देश्य ‘प्लांट ब्लाइंडनेस’ की धारणा को चुनौती देना भी है दृ यह अवधारणा दर्शाती है कि समाज में पौधों के महत्व को लेकर जागरूकता की कमी है। यह शब्द वर्ष 1998 में अमेरिकी वैज्ञानिक एलिज़ाबेथ शूसलर और जेम्स वांडरसी ने गढ़ा था।
राष्ट्र में अकेली पहल
उत्तराखंड देश का एकमात्र राज्य वन विभाग है जो इस तरह की संरक्षित पौधों की प्रजातियों की विस्तृत सूची तैयार कर नियमित रिपोर्ट प्रकाशित करता है।
यह रिपोर्ट न केवल प्रदेश की जैव विविधता को संरक्षित करने की दिशा में एक मील का पत्थर है, बल्कि यह भविष्य में जलवायु अनुकूल विकास और पारिस्थितिक संतुलन की दिशा में भी एक मजबूत कदम है।