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मारखोर : पाकिस्तान के राष्ट्रीय पशु को बचाने की कवायद चल रही उत्तराखड में-विशेष रिपोर्ट

Pen Point, 24 May 2025 : हिमालय की गोद में बसे उत्तराखंड के नैनीताल चिड़ियाघर में एक दुर्लभ और आकर्षक प्रजाति कृ मारखोर कृ के संरक्षण की दिशा में अहम पहल की जा रही है। मारखोर, जिसे वैज्ञानिक भाषा में Capra falconer कहा जाता है,  दुनिया की सबसे बड़ी और आकर्षक जंगली बकरी प्रजातियों में से एक है। यह अपने घुमावदार सर्पिल सींगों और अत्यंत सतर्क व्यवहार के लिए जाना जाता है। बता दें कि मारखोर पाकिस्तान का राष्ट्रीय पशु भी है। हर साल 24 मई को विश्व मारखोर संरक्षण दिवस मनाया जाता है।

मारखोर नाम फारसी भाषा से आया है। जिसमें मार का अर्थ है साप और खोर का मतलब खाने वाला। कहा जाता है कि मारखोर अपने खुरों से साप को मार डालता है।

मारखोर दक्षिण एशिया और मध्य एशिया के पर्वतीय क्षेत्रों में पाया जाता है और यह पाकिस्तान का राष्ट्रीय पशु भी है। हालांकि इसकी मूल जनसंख्या पाकिस्तान, अफ़गानिस्तान और कश्मीर क्षेत्र में है, लेकिन अब उत्तराखंड में भी इसे संरक्षित करने की पहल शुरू हो गई है।

नैनीताल में संरक्षण की नई दिशा
नैनीताल चिड़ियाघर वर्तमान में मारखोर के संरक्षण का केंद्र बनता जा रहा है। यहां न सिर्फ इन दुर्लभ जानवरों को सुरक्षित रखा गया है, बल्कि उनकी संख्या बढ़ाने के लिए भी सुनियोजित प्रयास किए जा रहे हैं। चिड़ियाघर प्रशासन के अनुसार, मारखोर के प्रजनन कार्यक्रम को और अधिक प्रभावी बनाने के लिए दार्जिलिंग चिड़ियाघर से सहयोग की पहल की गई है। दोनों संस्थान मिलकर मारखोर की आबादी में वृद्धि और आनुवंशिक विविधता बनाए रखने के लिए काम कर रहे हैं।

विलक्षण प्रजाति, विशिष्ट व्यवहार
मारखोर की सबसे बड़ी पहचान उसके सर्पिल सींग होते हैं जो मादाओं की अपेक्षा नर में अधिक लंबे होते हैं। इसकी लंबाई एक मीटर से अधिक तक हो सकती है। यह जानवर अपने विशेष आहार और वातावरण के लिए जाना जाता है, साथ ही इसे सांप मारकर खाने की कथित क्षमता ने इसे और भी रहस्यमय बना दिया है कृ हालाँकि वैज्ञानिक रूप से इस पर अभी भी शोध जारी है।

मारखोर का व्यवहार बहुत सतर्क होता है। यह दुर्गम पर्वतीय इलाकों में रहना पसंद करता है और छोटे समूहों में देखा जाता है। पर्यावरणीय असंतुलन, अवैध शिकार और प्राकृतिक आवास की क्षति ने इस प्रजाति को संकट के कगार पर पहुंचा दिया है।

संरक्षण की चुनौती और उम्मीद
संयुक्त राष्ट्र की प्न्ब्छ रेड लिस्ट में मारखोर को श्निकट संकटग्रस्तश् (छमंत ज्ीतमंजमदमक) प्रजाति के रूप में सूचीबद्ध किया गया है। यही कारण है कि इसके संरक्षण को लेकर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी प्रयास किए जा रहे हैं।नैनीताल चिड़ियाघर के एक अधिकारी के अनुसार, ष्हम मारखोर की प्राकृतिक प्रवृत्तियों और खान-पान को ध्यान में रखते हुए उनका विशेष ख्याल रखते हैं। साथ ही हम इस प्रजाति की व्यवहारिक विशेषताओं को समझने और उसके अनुकूल वातावरण विकसित करने की दिशा में भी काम कर रहे हैं।ष्

भविष्य की योजना
राज्य सरकार और वन विभाग मारखोर के संरक्षण को लेकर गंभीर हैं। भविष्य में मारखोर को संरक्षित जंगल क्षेत्रों में पुनर्स्थापित करने की योजना भी बनाई जा रही है, ताकि यह प्रजाति न केवल चिड़ियाघरों तक सीमित न रहे बल्कि अपने प्राकृतिक वातावरण में भी पुनः स्थापित हो सके।उत्तराखंड में मारखोर का यह प्रयास न केवल जैव विविधता को सहेजने की दिशा में एक अहम कदम है, बल्कि यह राज्य के संरक्षण मॉडल को भी नई पहचान देता है

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