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विज्ञापन विवाद: निशाने पर सूचना महानिदेशक पर असल खिलाड़ी चर्चाओं से गायब

Pen Point, Dehradun : हाल के दिनों में सूचना निदेशालय की ओर से दो साल पहले जारी एक अनजान सी पत्रिका के लिए जारी 72 लाख रूपए के विज्ञापन को लेकर सूचना महानिदेशक पर लगातार तीखे हमले हो रहे हैं हालांकि यह विज्ञापन उनकी नियुक्ति से पहले जारी किए गए हैं लेकिन पूरे मामले में जिस पत्रकार की इस अनजान पत्रिका को यह विज्ञापन दिया गया वह पूरे मामले में चर्चाओं में से ही गायब है। हालांकि, जिस तरह के घटनाक्रम सामने आए है उस लिहाज से इस पूरे विवाद के केंद्र में मुख्यमंत्री कार्यालय और उक्त पत्रकार अर्चना राजहंस को होना चाहिए था।

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बीते दिनों कांग्रेस के नेता अभिनव थापर ने एक प्रेस कांफ्रेंस में सूचना निदेशालय की ओर से जनवरी 2022 में एक पत्रिका को 72 लाख रूपए के बिल के भुगतान को लेकर सूचना महानिदेशक पर सवाल उठाए थे, उसके बाद इस मामले में बाबी पंवार ने भी वर्तमान सूचना महानिदेशक पर सवाल उठाए थे। हालांकि, बाबी पंवार के इस आरोप के बाद प्रदेश के तमाम पत्रकारों ने सूचना महानिदेशक बंशीधर तिवारी के समर्थन में खूब पोस्ट लिखे जाने लगे। दावा किया जा रहा है कि जिस पत्रिका को विज्ञापन के एवज में हुए भारी भरकम भुगतान का आरोप बंशीधर तिवारी पर लगाया जा रहा है वह पूर्व सूचना महानिदेशक के कार्यकाल में जारी हुआ था और उसी दौरान भुगतान किया गया। हाहालांकि, विज्ञापन जिस वक्त जारी हुआ और जब इसका भुगतान पत्रिका को किया गया तब सूचना महानिदेशक रणबीर चौहान हुआ करते थे हालांकि यह भी बताया जा रहा है कि पत्रिका को विज्ञापन जब जारी हुआ था तो विभाग की जिम्मेदारी मेहरबान सिंह बिष्ट के पास थी ऐसे में बंशीधर तिवारी पर इस मामले में शामिल होने के आरोपों में कोई खास दम तो नहीं है लेकिन इस मामले में सूचना विभाग और विज्ञापनों के नाम पर हो रही बंदरबांट का खेल भी सामने आया है।

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सूचना महानिदेशक और विभाग से जुड़ा दो साल पुराना एक 72 लाख रूपए का बिल इन दिनों खूब चर्चाओं में है। इन चर्चाओं में जहां सूचना महानिदेशक बंशीधर तिवारी केंद्र में है तो जिस खबर मानक पत्रिका को यह विज्ञापन जारी हुआ उसकी प्रधान संपादक अर्चना राजहंस भी चर्चाओं में है। यूं तो अर्चना राजहंस के बारे में बहुत ज्यादा जिक्र नहीं मिल पा रहा है लेकिन उनके अलग अलग प्रोफाइल की माने तो वह पूर्व में बीबीसी, आज तक, जी मीडिया में काम कर चुकी हैं, बीबीसी में उनकी एकमात्र खबर का लिंक मिलता है जो करीब 12 साल पहले प्रकाशित हुई थी, उसके अलावा हाल ही में दक्षिणपंथी कुछ न्यूज पोर्टल पर मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी की तारीफों से भरा उनके एक लेख के अलावा इंटरनेट पर भी कुछ ज्यादा नहीं मिल पा रहा है। जिस दिन कांग्रेस की ओर से इस विज्ञापन विवाद पर यह प्रेस कांफ्रेंस की गई उससे पहले दिन तक अर्चना राजहंस अपने ट्वीटर अब एक्स बॉयो में खुद को मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी का राष्ट्रीय मीडिया समन्वयक लिखा करती थी लेकिन इस विवाद के शुरू होने से पहले ही अर्चना राजहंस ने अपने बॉयो में तब्दीली कर दी। हालांकि, मुख्यमंत्री कार्यालय की ओर से राष्ट्री मीडिया समन्वयक पर किसी की नियुक्ति को लेकर कोई आदेश जारी नहीं किया गया न ही 6 अगस्त को मुख्यमंत्री कार्यालय की ओर से जारी नव नियुक्त कर्मियों, दायित्वों की सूची में भी अर्चना राजहंस का नाम शामिल है। ऐसे में सवाल उठने लगे हैं कि आखिर अर्चना राजहंस किस आधार पर खुद को मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी की राष्ट्रीय मीडिया समन्वयक बता रही थी। यह भी तथ्य है कि जब अर्चना राजहंस की पत्रिका खबर मानक को 72 लाख रूपए का विज्ञापन जारी कर भुगतान किया गया तब भी राज्य के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ही थे। फिलहाल, अर्चना राजहंस पर चर्चा भले ही कम हो रही हो लेकिन इस पूरे विवाद में वह रहस्यमयी शख्स के तौर पर शामिल है।

…तो साजिश भी है यह विवाद
सूचना महानिदेशक बंशीधर तिवारी हाल में धामी सरकार के दौरान ताकतवर अधिकारियों में शामिल है। फिलहाल सूचना महानिदेशक के साथ ही तिवारी के पास शिक्षा, एमडीडीए का भी दायित्व है। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के बेहद करीबी माने जाने वाले बंशीधर तिवारी को लेकर चर्चाएं थी कि उन्हें जल्द ही देहरादून जनपद की कमान दी जा सकती है। माना जा रहा है कि अफसरों की एक लॉबी बंशीधर तिवारी को देहरादून की कमान मिलने से खुश नहीं है तो कांग्रेस के जरिए दो साल पुराने इस मामले को फिर से खोला गया। हालांकि, बेहतर मीडिया प्रबंधन के लिए प्रसिद्ध हो चुके बंशीधर तिवारी पर इस विवाद को कोई खास असर नहीं पड़ा।

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