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खतरे की घंटी: यह अमेरिकी देश हुआ ग्लेशियर मुक्त

Pen Point, Dehradun : जलवायु परिर्वतन और बढ़ते तापमान को लेकर वैज्ञानिक लगातार चेता रहे हैं कि भारत समेत दुनिया के ग्लेशियर तेजी से पिघल रहे हैं। अब खबर आई है कि दक्षिण अमेरिका के वेनेजुएला देश ने अपने आखिरी ग्लेशियर को भी खो दिया है। तेजी से बढ़ते तापमान के चलते इस देश का आखिरी ग्लेश्यिर भी पिघलकर गायब हो चुका है। अमेरिकी एजेंसी नासा ने 2018 में ही इस ग्लेशियर के जल्दी खत्म होने की आशंका जताई थी। अब नई रिपोर्ट की मुताबिक यह ग्लेशियर पूरी तरह से खत्म हो गया है। वैज्ञानिकों का मानना है कि लगातार तापमान बढ़ोत्तरी के बाद अब अन्य देश भी ग्लेशियर गंवाने की कगार पर है।
बढ़ते तापमान और पर्यावरण बदलाव का असर दुनिया भर में ताजे पानी के स्रोत माने जाने वाले ग्लेशियरों पर पड़ने लगा है। तेजी से पिघलते ग्लेशियर जहां एक ओर समुद्र के जलस्तर में तेजी से बढ़ोत्तरी कर रहे हैं तो वहीं दुनिया को पेयजल संकट के मुहाने पर भी खड़ा कर रहे हैं। वैज्ञानिकों की उम्मीद से उलट ग्लेशियरों के पिघलने की गति बहुत तेज हो गई है। दक्षिणी अमेरिका के देश वेनेजुएला आधुनिक इतिहास में ऐसा पहला देश बन गया है, जिसके सभी ग्लेशियर खत्म हो गए हैं। वेनेजुएला ने अपना आखिरी बचा हुआ ग्लेशियर भी खो दिया है। इंटरनेशनल क्रायोस्फीयर क्लाइमेट इनिशिएटिव (आईसीसीआई) ने कहा है कि वेनेजुएला का एकमात्र शेष ग्लेशियर- हम्बोल्ट या ला कोरोना बहुत छोटा हो गया था। ऐसे में इसे अब ग्लेशियर के बजाय आइस फील्ड के तौर पर वर्गीकृत किया गया है। वेनेजुएला के बाद मौसम विज्ञानी इंडोनेशिया, मैक्सिको और स्लोवेनिया से ग्लेशियर मुक्त होने की संभावना जता रहे हैं। बीबीसी में प्रकाशित रिपोर्ट के मुताबिक, पिछले सौ सालों में वेनेजुएला ने कम से कम छह ग्लेशियर खो दिए हैं। जलवायु परिवर्तन के कारण वैश्विक औसत तापमान बढ़ने के साथ बर्फ पिघल रही है, इससे दुनिया भर में समुद्र का स्तर भी बढ़ रहा है। डरहम विश्वविद्यालय के ग्लेशियोलॉजिस्ट कैरोलिन क्लासन का कहना है कि 2000 के दशक के बाद से वेनेजुएला के आखिरी ग्लेशियर पर ज्यादा बर्फ नहीं जमी है। इस साल मार्च में कोलंबिया में लॉस एंडीज़ विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं ने पाया कि ये ग्लेशियर 450 हेक्टेयर से घटकर केवल दो हेक्टेयर रह गया है।

भारत के ग्लेशियर भी नहीं है सुरक्षित, तेजी से पिघल रहे हैं 

'Pen Point
भारत हिमालयी पर्वत श्रृखंला के चलते दुनिया में सर्वाधिक ग्लेशियरों वाले देशों में शामिल है। एक अनुमान के मुताबिक भारत में 10 हजार से लेकर 15 हजार तक ग्लेशियर हैं जो भारत के बड़े हिस्से को ताजा पानी की आपूर्ति के साथ ही नदी घाटियों में जैव विविधताओं को संरक्षित कर रहा है। लेकिन, हाल के सालों में तेजी से बढ़ते तापमान और पर्यावरण परिर्वतन के चलते देश के ग्लेशियरों पर भी खतरा मंडरा रहा है। माना जा रहा है कि हिमालय के ग्लेशियर असाधारण तौर पर पहले के मुकाबले 10 गुना ज्यादा तेजी से पिघल रहे हैं, जिसके चलते भारत सहित एशिया के कई देशों में जल संकट और गहरा सकता है। साल 2021 में लीड्स विश्वविद्यालय द्वारा किए अध्ययन के बाद जर्नल साइंटिफिक में जारी रिपोर्ट में दावा किया कि जिस तेजी से यह ग्लेशियर पिघल रहे हैं उसके चलते गंगा, ब्रह्मपुत्र और सिंधु नदी के लिए संकट पैदा हो सकता है। शोध के मुताबिक हाल के दशकों में हिमालय के ग्लेशियर जिस तेजी से पिघल रहे हैं उसकी रफ्तार 400-700 साल पहले हुई ग्लेशियर विस्तार की घटना जिसे हिमयुग या ‘लिटिल आइस एज’ कहा जाता है उसके मुकाबले दस गुना ज्यादा है। रिपोर्ट में दावा किया गया था कि शोध के बाद आए परिणाम स्पष्ट रूप से दिखाते हैं कि पिछली शताब्दियों की तुलना में हिमालय के ग्लेशियर औसतन 10 गुना ज्यादा तेजी से पिघल रहे हैं और नुकसान की यह दर पिछले कुछ दशकों में काफी बढ़ गई है। शोध में पता चला है कि आज ग्लेशियरों का क्षेत्रफल पहले के मुकाबले 40 फीसदी सिकुड़ गया है। कभी इन ग्लेशियरों का क्षेत्रफल 28,000 वर्ग किलोमीटर था जो घटकर 19,600 वर्ग किलोमीटर में सीमित रह गया है।

 

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