अंकिता भंडारी केस : हत्यारे की मुस्कुराहट से भड़की भावनाएं, फैसले के 24 घंटों में क्या हुआ?
कोटद्वार/देहरादून | 31 मई 2025 : उत्तराखंड की बहुचर्चित अंकिता भंडारी हत्याकांड पर कोटद्वार की निचली अदालत का फैसला आने के बाद प्रदेश में एक बार फिर राजनीतिक हलचल तेज हो गई है। अदालत ने पुलकित आर्य, सौरभ भारती और अंकित गुप्ता को हत्या और साक्ष्य छुपाने के आरोप में दोषी करार दिया है, लेकिन इस फैसले को लेकर जहां राज्य सरकार और सत्ताधारी भाजपा इसे न्याय की दिशा में एक मजबूत कदम बता रही है, वहीं विपक्ष और पीड़िता के माता-पिता इसे अधूरा और सियासी प्रभाव में आया हुआ न्याय बता रहे हैं।
फैसले के बाद दोषियों का व्यवहार बना विवाद का कारण
अदालत से दोषी करार दिए जाने के बाद जब तीनों आरोपियों को पुलिस की निगरानी में अदालत परिसर से बाहर निकाला गया, तो मुख्य आरोपी सौरभ भारती का हाथ हिलाकर मुस्कुराना सोशल मीडिया पर वायरल हो गया। यह दृश्य लोगों के बीच बेहद असंवेदनशील और चौंकाने वाला प्रतीत हुआ।
इस घटना ने जनता के गुस्से को और बढ़ा दिया। सोशल मीडिया पर लोगों ने सौरभ के इस व्यवहार को न्याय प्रणाली की कमजोरी करार देते हुए कहा कि “जिस अपराधी को कठोर सजा मिलनी चाहिए थी, वह मुस्कुराते हुए अदालत से बाहर निकला — क्या यही न्याय है?”
कोटद्वार में भड़का जनाक्रोश
फैसले के तुरंत बाद कोटद्वार की अदालत के बाहर सैकड़ों की संख्या में प्रदर्शनकारी जुटे, जिन्होंने ‘फांसी दो’, ‘VIP संरक्षण बंद करो’ और ‘हमारी बेटी के हत्यारों को मत बख्शो’ जैसे नारे लगाए।
विरोध कर रहे स्थानीय लोगों और सामाजिक संगठनों का मानना है कि यह फैसला मात्र एक औपचारिकता है और असली न्याय तभी मिलेगा जब इस हत्याकांड के पीछे के ‘सियासी चेहरे’ और VIP संरक्षक’ बेनकाब किए जाएंगे।
अंकिता के माता-पिता बोले – यह अधूरा न्याय है
पीड़िता अंकिता भंडारी के माता-पिता ने कोर्ट के फैसले पर नाराजगी जताते हुए कहा कि उन्हें इस निर्णय से संतोष नहीं मिला।
अंकिता की मां का कहना था, “हम चाहते थे कि जो लोग असल में हमारी बेटी की मौत के जिम्मेदार हैं, उन पर भी कार्रवाई हो। लेकिन अभी भी कई रसूखदार चेहरे कानून की गिरफ्त से बाहर हैं। यह न्याय नहीं, बस एक शुरुआत है।”
पिता ने आशंका जताई कि दोषी करार दिए गए ये लोग जल्द ही जमानत पर बाहर आ सकते हैं और फिर से वही सियासी और आर्थिक ताकतें उन्हें बचाने के लिए सक्रिय हो सकती हैं।
विधायक रेणु बिष्ट पर साक्ष्य नष्ट करने के आरोप फिर उभरे
इस मामले में एक बार फिर भाजपा की यमकेश्वर विधायक रेणु बिष्ट पर आरोप लगे हैं।
विपक्ष का दावा है कि घटना के तुरंत बाद वनंतरा रिज़ॉर्ट के उस हिस्से को, जहाँ कथित तौर पर अपराध से जुड़े साक्ष्य मौजूद थे, JCB मशीन से तुड़वा दिया गया, और उस समय विधायक स्वयं मौके पर मौजूद थीं।
इस घटना को लेकर विपक्ष ने यह आरोप लगाया कि यह काम साक्ष्य मिटाने और असली गुनहगारों को बचाने के उद्देश्य से किया गया था।
हालाँकि भाजपा की ओर से इस पर कोई सीधा जवाब नहीं दिया गया है, लेकिन सवाल उठने लगे हैं कि विधायक को प्रशासनिक कार्रवाई के दौरान मौके पर मौजूद रहने की आवश्यकता क्यों पड़ी?
सत्ताधारी भाजपा का रुख – कानून का राज मजबूत हुआ
मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने अदालत के फैसले का स्वागत करते हुए कहा कि यह निर्णय इस बात का स्पष्ट संदेश है कि “उत्तराखंड में अपराध कभी सफल नहीं हो सकता और कानून से कोई ऊपर नहीं है।”
उन्होंने दोहराया कि उनकी सरकार कानून व्यवस्था को सर्वोच्च प्राथमिकता देती है और इस बात को सुनिश्चित करेगी कि अपराधियों को कड़ी से कड़ी सजा मिले।
पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत और भाजपा के अन्य नेताओं ने भी इसे न्याय की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम बताते हुए न्यायालय के फैसले को सराहा।
विपक्ष का आरोप – रसूखदारों को बचाने की कोशिश जारी
कांग्रेस, यूकेडी और उत्तराखंड स्वाभिमान मोर्चा जैसे विपक्षी दलों ने इस फैसले को “सिर्फ एक दिखावटी कार्रवाई” बताते हुए एक बार फिर CBI जांच की मांग की है।
कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष करन माहरा ने कहा, “पुलकित आर्य किसका बेटा है, यह सब जानते हैं। यदि यह कोई आम नागरिक होता, तो बहुत पहले सजा सुनाई जा चुकी होती।“
यूकेडी प्रमुख पुष्पेश त्रिपाठी ने कहा कि, “इस हत्याकांड की परतें बहुत गहरी हैं और जब तक VIP मेहमानों की पहचान और उनका मकसद सामने नहीं आता, यह न्याय अधूरा ही रहेगा।”
अदालत द्वारा तीनों आरोपियों को दोषी करार दिए जाने के बावजूद अंकिता भंडारी हत्याकांड पर जन असंतोष खत्म नहीं हुआ है। जहां सरकार इसे कानून की जीत मान रही है, वहीं आम लोग और पीड़िता का परिवार अभी भी पूरे सच के सामने आने और असली गुनहगारों तक पहुंचने की उम्मीद लगाए बैठे हैं। विधायक रेणु बिष्ट पर लगे आरोप, दोषी की अदालत से बाहर मुस्कुराते हुए निकली तस्वीर, और VIP मेहमानों की अभी तक न पहचान – ये सब संकेत देते हैं कि यह मामला भविष्य में भी उत्तराखंड की राजनीति को असहज करता रहेगा।