बिगड़े बोल : क्या है विशेषाधिकार हनन, क्या सांसद रमेश बिधुड़ी आएंगे इसकी जद में ?
-भारत के संसदीय इतिहास में इंदिरा गांधी जैसी दिग्गज नेता और पूर्व प्रधानमंत्री विशेषाधिकार हनन में जेल जा चुकी हैं
Pen Point : बीते 22 सितंबर को लोकसभा में भाजपा सांसद रमेश बिधुड़ी अपने भाषण के बाद बहस के केंद्र बन चुके हैं। उन्होंने अपने संबोधन में बसपा सांसद दानिश अली के खिलाफ जमकर असंसदीय भाषा का इस्तेमाल किया। यह वजह साफ नहीं है कि देश की नई संसद में इस तरह का आचरण करके वह क्या साबित करने की कोशिश कर रहे थे। लोकसभा स्पीकर ओम बिड़ला ने भी इस पर नाराजगी जताई और रमेश बिधुड़ी को भविष्य में इस तरह का आचरण ना करने की चेतावनी भी दी। ऐसे में सवाल उठता है कि क्या रमेश बिधुड़ी पर सांसद दानिश अली के विशेषाधिकार हनन का मामला बनता है। भारत के संसदीय इतिहास में इंदिरा गांधी जैसी दिग्गज नेता और पूर्व प्रधानमंत्री विशेषाधिकार हनन में जेल जा चुकी हैं। जब आपातकाल के बाद तत्कालीन गृहमंत्री चौधरी चरण सिंह ने इंदिरा गांधी के खिलाफ विशेषाधिकार हनन का प्रस्ताव रखा था। इसके लिये उन्होंने आपातकाल के दौरान की ज्यादतियों को लेकर जारी जस्टिस शाह की रिपोर्ट को आाधर बनाया। जिसमें इंदिरा गांधी पर कार्य में बाधा डालने, अधिकारियों को धमकाने समेत तमाम आरोप लगाए गए थे। मुकदमा चला और कई आरोप सही साबित हुए लिहाजा इंदिरा गांधी को इस माले में जेल जाना पड़ा था।
बसपा सांसद दानिश अली का रूख
बहुजन समाज पार्टी के सांसद दानिश अली ने सदन के बाद मीडिया से बातचीत भी की। जिसमें उन्होंने अपनी स्थिति को स्पष्ट किया। उनकी ओर से लोकसभा स्पीकर को को लिखे पत्र में कहा गया है कि वे बिधुड़ी के विरूद्ध नियम 222, 226 और 227 के तहत नोटिस देना चाहते हैं। बसपा सांसद के मुताबिक भाजपा सांसद बिधुड़ी ने उनहें आतंकवादी और उग्रवादी कहककर संबोधित किया। जिसके लिये नियम 227 के तहत इस प्रकरण को विशेषाधिकार समिति के पास भेजा जाए। उन्होंने इस मामले में जांच और कार्यवाही को बेहद जरूरी बताया ताकि देश का माहौल दूषित ना हो।
कब होता है विशेषाधिकार हनन
सांसदों को संविधान में संसदीय विशेषाधिकार दिये गए हैं। भारतीय संविधान के अनुच्छेद 105 में संसद के किसी भी सदन के सदस्यों और उनकी समितियों के अधिकार और शक्तियां तय की गई हैं। हालांकि विशेषाधिकार हनन क्या होगा और इसके लिये सजा किस तरह की होगी, यह संसद के विवेक पर छोड़ा गया है। मोटे तौर पर संसद के किसी भी सदस्य के आचरण के संबंध में भाषण देना, या मानहानि छापना या प्रकाशित करना विशेषाधिकारी को उल्लंघन और अवमानना है।
अध्यक्ष और सभापति विशेषाधिकार हनन वाले मामलों को उचित प्रक्रिया के तहत नियम 227 के तहत विशेषाधिकार समिति को भेजते हैं। समिति उस मामले की जांच करती है। देखा जाता है कि क्या वास्तव में सदन के सदस्यों का अपमान हुआ या जनता के सामने उनकी छवि खराब हुई है। सभी तथ्यों की जांच कर समिति प्रकरण में कार्यवाही की सिफारिश करती है।