भाजपा नेताओं की दिल्ली दौड़, सत्ता और संगठन में शक्ति संतुलन की उम्मीद
Pen Point, Dehradun : बीते दिनों प्रदेश के शिक्षा मंत्री डॉ. धन सिंह रावत की प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी व गृह मंत्री अमित शाह से मुलाकात की तस्वीरें खूब वायरल हुई। बदरीनाथ और लक्सर विधानसभा के उपचुनाव में हार के पखवाड़े भर से भी कम समय में प्रधानमंत्री समेत अन्य प्रमुख केंद्रीय मंत्रियों से मुलाकात करने वाले राज्य के प्रमुख नेता डॉ. धन सिंह रावत पहले नहीं थे। इससे पहले पखवाड़े भर में ही राज्य के कई प्रमुख नेता दिल्ली दौड़ लगाकर प्रमुख नेताओं से मेल मिलाप कर चुके हैं। हालांकि, राज्य गठन के बाद ऐसी मुलाकातांे ने हमेशा राज्य में नेतृत्व परिर्वतन की चर्चाओं को बल दिया है लेकिन पहली बार ऐसा हो रहा है कि इन मुलाकातों में नेतृत्व परिर्वतन की सुगबुगाहट नहीं हुई। माना जा रहा है कि राज्य में भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष के पद पर ऐसे नेता को बिठाने के लिए जुगत लगाई जा रही है जिससे प्रदेश में शक्ति संतुलन कर ‘सर्वेसर्वा’ हो चुके मुख्यमंत्री की ताकत में कुछ सेंध लगाई जा सके और पीएसडी-2 शुरू होने के बाद वनवास झेल रहे प्रमुख नेताओं की मुख्यधारा में वापसी हो सके। नेताओं की दिल्ली दौड़ और पुराने गिले शिकवे मिटाकर एक दूसरे के कंधे से कंधा मिलाकर चलने की चर्चाओं का प्रमुख केंद्र डॉ. रमेश पोखरियाल निशंक बने हुए हैं। माना जा रहा है कि नेताओं की दिल्ली दौड़ का मूल कारण निशंक के जरिए प्रदेश में फिर से सत्ता और संगठन के बीच शक्ति संतुलन को बनाना है।
साल 2021 में बेहद नाटकीय घटनाक्रम में खटीमा से युवा विधायक पुष्कर सिंह धामी को मुख्यमंत्री पद सौंपा गया था। इससे पहले पुष्कर सिंह धामी को भाजपा ने मंत्रीमंडल में तक शामिल नहीं किया था। ऐसे में माना जा रहा था कि युवा मुख्यमंत्री बनने के बाद सरकार और संगठन की कमान भाजपा के प्रमुख नेताओं के हाथ में ही होगी। शुरूआती दिनों में लगने भी यही लगा था। फिर 2022 के विधानसभा चुनाव में भाजपा की सत्ता में वापसी होती है, भारी बहुमत के बावजूद मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी अपनी सीट नहीं बचा पाते, ऐसे में कई वरिष्ठ विधायकों को उम्मीद थी कि मुख्यमंत्री की कुर्सी उन्हें नसीब हो सकेगी। लेकिन, हाईकमान ने हार के बावजूद पुष्कर सिंह धामी को ही कुर्सी सौंपी। लेकिन, इस बार कुर्सी मिलने के साथ ही पुष्कर सिंह धामी ने अपनी मंशा भी जाहिर कर दी थी। अब तक प्रदेश में भाजपा सरकार और संगठन के मामले में अलग अलग शक्तियों में बंटी थी। संगठन का सरकार में भरपूर हस्तक्षेप रहा लेकिन सरकार संगठन को नियंत्रित करने में ज्यादा सफल नहीं हो सकी। लेकिन, 2022 विधानसभा चुनाव के बाद बने मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने सत्ता को ही शक्ति का केंद्र बना दिया। लंबे समय तक भाजपा के संगठन और सरकार में बेहद मजबूत रहे नेताओं का वानप्रस्थ शुरू कर दिया गया, वरिष्ठ नेताओं को इस कदर किनारे लगाया गया कि विधायक होने के बावजूद नेताओं की मीडिया से तक मौजूदगी गायब कर दी गई। पिछले ढाई सालों में प्रदेश में भाजपा सरकार और संगठन दोनों ही पुष्कर सिंह धामी के इर्द गिर्द सिमट कर रह गई है। भाजपा लहर के बावजूद बदरीनाथ विधानसभा सीट से चुनाव हारने वाले महेंद्र भट्ट भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष बने तो उनकी पुष्कर सिंह धामी से काफी नजदीकी रही और अब उन्हें राज्यसभा भी भेज दिया गया। सत्ता और संगठन की पूरी ताकत मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के पास हो जाने के बाद संगठन में अपनी धमक के पुराने दिन कई पुराने और दिग्गज याद कर मायूस हो रहे हैं। ऐसे में अब जब भाजपा को नया प्रदेश अध्यक्ष मिलना है ऐसे में प्रदेश सभी वरिष्ठ नेताओं को यह शक्ति संतुलन का सबसे बेहतर मौका लग रहा है।
लिहाजा, अपने पुराने गिले शिकवे मिटाकर इन दिनों भाजपा के वरिष्ठ नेता गलबहिंयां करते हुए दिख रहे हैं। त्रिवेंद्र सिंह रावत के मुख्यमंत्री रहते हुए दिल्ली से अनिल बलूनी प्रदेश की राजनीति में पूरा दखल देते थे, इसके चलते कई बार त्रिवेंद्र सिंह रावत ने अपने समर्थन के विधायकों की दिल्ली परेड भी करवाई थी। लिहाजा, दोनों में मतभेद होना लाजमी था। लेकिन, अब दोनों वरिष्ठ नेता ही सांसद चुने गए हैं जबकि पिछले ढाई सालों से दोनों नेता राज्य की राजनीति से अलग थलग पड़े हुए थे। गहरे मतभेद होने के बावजूद बीते दिनों दोनों नेताओं को एक दूसरे के साथ गलबहिंयां करते हुए नजर आए। हालांकि, इन दोनों नेताओं के साथ मौजूद रहे एक नेता ने सबका ध्यान खींचा। हरिद्वार संसदीय सीट से दो बार सांसद व पूर्व केंद्रीय मंत्री डॉ. रमेश पोखरियाल निशंक का इस बार टिकट कट गया था। माना जा रहा था कि राजनीति में उनके अलग थलग होने के दिन शुरू हो गए। लेकिन, बीते दिनों त्रिवेंद्र रावत और अनिल बलूनी के साथ निशंक की जुगलबंदी भी खूब दिखी। ऐसे में चर्चाओं का बाजार गर्म होने लगा कि निशंक के जरिए राज्य में सत्ता व संगठन के बीच शक्ति संतुलन की योजना बनाई जाने लगी है। प्रदेश की राजनीति में घाघ नेता माने जाने वाले निशंक यूं तो पिछले दशक भर से राज्य की राजनीति में बहुत सक्रिय नहीं रहे हैं लेकिन अब माना जा रहा है कि वह राज्य की राजनीति में वापसी को बेकरार है। तो वहीं निशंक के जरिए राजनीतिक अछूत बने पुराने दिग्गज नेताओं को भी मुख्यधारा में लौटने का मौका नजर आ रहा है। वहीं, फिलहाल गढ़वाल कुमाउं, ब्राह्मण ठाकुर की राजनीति के खांचें भी निशंक फिट बैठ रहे हैं।
माना जा रहा है कि प्रदेश में जल्द ही नए भाजपा अध्यक्ष का नाम तय होना है उससे पहले ही प्रदेश ज्यादातर नेता अपने गिले शिकवे भुलाकर एक नाम पर मोहर लगाने के लिए दिल्ली दौड़ लगा रहे हैं। वहीं, सूत्रों की माने तो धामी भी नेताओं की दिल्ली दौड़ पर नजर बनाए हुए हैं।