सीएम धामी ने “वन नेशन वन इलेक्शन” को लोकतंत्र की मजबूती के लिये जरूरी बताया
Pen Point. 22 May 2025 । संयुक्त संसदीय समिति के संवाद कार्यक्रम में बोलते हुए मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने वन नेशन वन इलेक्शन की जमकर वकालत की। बुधवार को मसूरी रोड स्थित एक होटल में आयोजित यह कार्यक्रम वन नेशन, वन इलेक्शन विषय पर केंद्रित था। इस मौके पर मुख्यमंत्री ने समिति के अध्यक्ष पी.पी. चौधरी और सभी समिति सदस्यों का स्वागत एवं अभिनंदन किया।
मुख्यमंत्री धामी ने कहा कि ‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ हमारे लोकतंत्र को और अधिक सशक्त, प्रभावी और समावेशी बनाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण पहल है। उन्होंने कहा कि भारत की चुनावी प्रणाली विविधताओं के बावजूद अब तक मजबूत और कार्यक्षम रही है, लेकिन अलग-अलग समय पर चुनाव कराए जाने के कारण बार-बार आदर्श आचार संहिता लागू होती है, जिससे राज्यों के प्रशासनिक कार्य ठप हो जाते हैं।
उन्होंने बताया कि जब भी चुनाव होते हैं, तो बड़ी संख्या में सरकारी कर्मचारियों को उनके मूल कार्यों से हटाकर चुनाव ड्यूटी में लगाया जाता है, जिससे शासन व्यवस्था प्रभावित होती है। बीते तीन वर्षों में विधानसभा, लोकसभा और नगर निकाय चुनावों के चलते राज्य की प्रशासनिक मशीनरी करीब 175 दिनों तक नीतिगत निर्णय लेने की प्रक्रिया से वंचित रही। मुख्यमंत्री ने कहा कि सीमित संसाधनों वाले छोटे राज्य के लिए यह अवधि शासन के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण होती है।
धामी ने बताया कि विधानसभा चुनावों का पूरा खर्च राज्य सरकार उठाती है, जबकि लोकसभा चुनाव का व्यय केंद्र सरकार वहन करती है। यदि दोनों चुनाव एक साथ कराए जाएं तो दोनों सरकारों पर खर्च का भार आधा हो जाएगा और कुल चुनाव खर्च में लगभग 30 से 35 प्रतिशत तक की बचत संभव है। यह बची राशि स्वास्थ्य, शिक्षा, सड़क, पेयजल, कृषि और महिला सशक्तिकरण जैसे महत्वपूर्ण क्षेत्रों में उपयोग की जा सकती है।
मुख्यमंत्री ने कहा कि उत्तराखंड में जून से सितंबर तक बारिश और चारधाम यात्रा का समय होता है, जिससे चुनाव कार्यक्रमों के दौरान कई व्यावहारिक समस्याएं उत्पन्न होती हैं। इसके अलावा, जनवरी से मार्च की अंतिम तिमाही वित्तीय वर्ष का महत्वपूर्ण समय होता है, जब बजट एवं खर्च की प्रक्रिया चलती है। वहीं फरवरी-मार्च में बोर्ड परीक्षाओं के कारण प्रशासनिक संसाधनों पर अतिरिक्त दबाव पड़ता है।
धामी ने कहा कि वन नेशन, वन इलेक्शनश् जैसी प्रणाली उत्तराखंड जैसे पहाड़ी और दुर्गम भौगोलिक परिस्थितियों वाले राज्यों के लिए अत्यंत उपयुक्त है। उन्होंने बताया कि राज्य के दूरस्थ क्षेत्रों में मतदान केंद्रों तक पहुंचना चुनौतीपूर्ण होता है, जिससे चुनाव प्रक्रिया में अधिक समय और संसाधनों की जरूरत होती है। बार-बार चुनावों के कारण लोगों की मतदान में रुचि भी कम होती जा रही है, जिससे मतदान प्रतिशत प्रभावित होता है।