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नोटबंदी का वह फैसला जिसके नफा नुकसान आज तक तलाशे जा रहे हैं

– नोटबंदी की आज 7वीं सालगिरह, आज के ही दिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 500 और 1000 के नोटों को किया अमान्य घोषित, नोट बदलवाने और खातों में जमा करवाने के लिए दिए केवल 15 दिन
PEN POINT, DEHRADUN : 8 नवंबर 2016, देर शाम सात बजे न्यूज चैनलों पर एक खबर फ्लैश होने लगती है कि थोड़ी देर में देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी देश को संबोधित करेंगे। रात आठ बजे होने वाले इस संबोधन से पहले न्यूज चैनलों पर अटकलों का दौर शुरू हो गया। ज्यादातर चैनलों का मानना था कि हाल की आतंकी घटनाओं को देखते हुए प्रधानमंत्री पाकिस्तान को लेकर या फिर युद्ध को लेकर कोई घोषणा कर सकते हैं। अगला एक घंटा तमाम कयासों भरा था। आठ नवंबर 2016 की उस सर्द शाम में लोगों को भी प्रधानमंत्री का यूं एकाएक टीवी पर आकर देश को संबोधित करने को लेकर उत्सुकता जाग गई। आठ बजे प्रधानमंत्री टीवी पर आते हैं और बताते हैं कि पांच सौ और एक हजार के नोटों को प्रचलन से हटाने का फैसला लिया गया है और अब पांच और और हजार के नोट मान्य नहीं रहेंगे। साथ ही 25 नवंबर यानि एक पखवाड़े भर का समय देशवासियों को दिया गया कि वह अपने नजदीकी बैंक शाखाओं में यह नोट बदलवा सकते हैं।

एक ही झटके में देश के करोड़ों लोगों के लिए एक बड़ा झटका था। 11 नवंबर से बैंकों में लोगों की भीड़ उमड़ने लगी थी। घंटों लाइनों में लगकर नोट बदले या बैंक खातों में जमा किए जा सकते थे। वहीं, नकदी निकासी के लिए एटीएम की लाइनों पर भी लंबी लंबी कतारे लगने लगी। बैंकों में नोट बदलवाने और जमा करवाने के लिए अंतिम तिथि 25 नवंबर 2016 तय की गई थी तो साथ ही इसके बाद रिजर्व बैंक में 30 दिसंबर 2016 तक नोट बदलवाने की व्यवस्था रखी गई थी।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के इस एक फैसले से पूरे देश में खलबली मच गई। प्रधानमंत्री ने अपने नोटबंदी के संबोधन में इसे आतंकवाद, काले धन के खिलाफ कार्रवाई का महायज्ञ बताया था। लेकिन, इस एक फैसले के बाद देश की अर्थव्यवस्था व आम आदमी की जिंदगी अगले लंबे समय के लिए पटरी से उतर चुकी थी। आम लोगों की जिंदगी पूरी तरह से बैंक, एटीएम की लाइनों में सीमित हो गई थी। लंबी लंबी लाइनों में लगकर नोट बदलने के इंतजार में कुल 105 लोगों की मौत हो गई। वहीं, बैंकों में भारी दबाव के कारण बड़ी संख्या में बैंक कर्मियों को भी अपनी जान गंवानी पड़ी।

वहीं, सरकार का दावा था कि नोटबंदी का यह फैसला काला धन रखने वालों पर सर्जिकल स्ट्राइक साबित होगा और काला धन रखने वाले लोगों के नोट रद्दी में तब्दील हो जाएंगे। भाजपा नेता लगातार इस बयान को दोहराते रहे लेकिन रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया की रिपोर्ट की माने तो 30 जून 2017 यानि नोटबंदी के करीब सात महीने के दौरान देश में प्रचलन में रहे 500 और 1000 के 99 फीसदी नोट वापिस बैंकों में जमा हो गए थे। नोटबंदी की घोषणा के दौरान देश भर में 15.44 लाख करोड़ रूपए के 500 व 1000 के नोट प्रचलन में थे, नोटबंदी के बाद बैंकों में 15.28 लाख करोड़ मूल्य के नोट बैंकों में जमा किए गए, इस तरह से कुल 16000 करोड़ रूपए के नोट ही बैंकों में वापिस नहीं आए। बैंकों में 99 फीसदी नोटों के जमा हो जाने के बाद सरकार के उस दावे की हवा निकल गई जिसमें नोटबंदी को काले धन पर सर्जिकल स्ट्राइक का नाम दिया गया था। कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने नोटबंदी योजना को काले धन को सफेद करने की योजना बताते हुए इसे फेयर एंड लवली योजना का नमा दिया था।
हालांकि, नोटबंदी के बाद नकदी की कमी को देखते हुए 2000 के नोट जारी किए गए जिन्हें इसी साल प्रचलन से हटा दिया गया।

नोटबंदी का यह फैसला अब सियासत में भी हाशिये पर चला गया है। भाजपा और उसके समर्थक इसे बड़ा और बेहतर फैसला बताते हैं, लेकिन इससे होने वाले फायदों से अनजान नजर आते हैं। वहीं भाजपा के विरोधी दलों के लोग इससे हुए नुकसान की ओर इशारे करते रहे हैं, लेकिन वो भी लोगों के बीच पुख्ता तरीके से अपनी बात नहीं रख सके। यही वजह है कि पिछले कुछ सालों में हुए चुनावों में नोटबंदी के मुद्दे को राजनीतिक दल बहुत ज्यादा सक्रिय नहीं दिखे।

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