विधानसभा चुनाव और नोटबंदी का रिश्ता क्या कहलाता है
– कर्नाटक चुनाव में हार के बाद अगले चार राज्यों के विधानसभा चुनाव से पहले दो हजार रूपए के नोट को प्रचलन से बाहर करने पर उठ रहे सवाल
– 2016 में भी उत्तर प्रदेश समेत पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव से पहले की थी नोटबंदी, टाइमिंग पर उठने लगे सवाल
PEN POINT, DEHRADUN : क्या नोटबंदी का संबंध विधानसभा चुनावों से है। 2016 में एक झटके में पांच सौ और हजार रूपए के नोटों के प्रचलन से बाहर करने और अब बाजार में प्रचलित करीब साढ़े तीन लाख करोड़ के मूल्य के दो हजार रूपए के नोटों को भी प्रचलन से बाहर करने का फैसला को आने वाले महीनों में देश के महत्वपूर्ण चार राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनावों को लेकर किया गया।
2017 में देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश के साथ ही उत्तराखंड पंजाब गोवा और मणिपुर में विधानसभा चुनाव होने थे। उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी की सरकार थी जो वापसी के लिए जोर लगाए बैठी थी तो उत्तराखंड में सत्तारूढ़ कांग्रेस पार्टी भी वापसी के लिए तैयारियां कर रही थी। लेकिन चुनाव की अधिसूचना जारी होने के एक महीने पहले 8 नवंबर 2016 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने टीवी पर आकर रात 8 बजे देश में नोटबंदी की घोषणा कर एक हजार और पांच सौ रूपए के नोट पर प्रतिबंध लगा दिया। यह चुनावी तैयारियों में जुटी राजनीतिक पार्टियों पर वज्रपात सरीखा था। भारतीय चुनाव में नकदी का चलन लंबे समय से लोकतंत्र के लिए चुनौती भले ही बनी हुई है लेकिन यह भारतीय चुनावों की सच्चाई भी है। नोटबंदी होने के बाद पूरे देश के साथ ही राजनीतिक दलों के भी फंड मैनेजमेंट की समस्या आन खड़ी हुई। अगले तीन महीनों बाद हुए विधानसभा चुनाव में नोटबंदी में हुई समस्याओं के बावजूद लोगां ने उत्तराखंड और उत्तर प्रदेश में भाजपा को प्रचंड बहुमत दिया तो वहीं पंजाब में मतदाताओं ने शिरोमणी अकाली दल व भाजपा के गठनबंधन की सरकार को हटाकर कांग्रेस को सत्ता सौंपी।
2017 में हुए विधानसभा चुनाव के बाद एक संगठन की ओर से किए गए सर्वे में पाया गया कि उत्तर प्रदेश में ही अकेले प्रमुख दलों ने साढ़े पांच हजार करोड़ रूपए खर्च किए। इनमें सबसे ज्यादा हिस्सेदारी भाजपा की थी।
एन वक्त पर की गई नोटबंदी ने कई राजनीतिक दलों का गणित बिगाड़ दिया। जबकि, भाजपा 2017 के विधानसभा चुनावों में नकदी संबंधी किसी भी समस्या से जूझती नहीं दिखी।
वहीं, बीते दिनों कनार्टक में बुरी तरह हार के बाद भाजपा के सामने आने वाले महीनों में राजस्थान, मध्य प्रदेश, तेलांगाना और छत्तीसगढ़ में विधानसभा चुनाव होने हैं। मध्य प्रदेश में जहां भाजपा को अपना किला बचाना है तो राजस्थान, छत्तीसगढ़ में सत्ता में वापसी के लिए जोर आजमाईश भी करनी है। चुनाव विश्लेषक बताते हैं कि भले ही बाजार में दो हजार के करीब साढ़े तीन लाख करोड़ रूपए के नोट प्रचलन में हो लेकिन दो हजार के नोटों का बाजार में दिखना मुश्किल हो गया है। ऐसे में अंदाजा लगाया जाता रहा है कि राजनीतिक दलों की ओर से बड़े पैमाने पर चुनावों में खर्च करने के लिए नकदी जमा की जा रही है। ऐसे में दो हजार रूपए के नोट यदि प्रचलन से बाहर हो गए हैं तो इसका सबसे बड़ा झटका उन राजनीतिक दलों को लगेगा जो चुनावी तैयारियों में जुटे हैं। कनार्टक में चुनावी मात खाने के बाद 2024 में होने वाले आम चुनावों से पहले नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भाजपा मध्य प्रदेश, राजस्थान, तेलांगाना और छत्तीसगढ़ में होने वाले विधानसभा चुनावों में हार का सामना नहीं करना चाहती है। यदि इन राज्यों में भाजपा हारी तो इसका असर 2024 के लोक सभा चुनाव में पड़ना तय है।
तो ऐसे में राजनीतिक विश्लेषक भी मान रहे हैं कि दो हजार के नोट को प्रचलन से बाहर करने का फैसला विपक्षी राजनीतिक दलों को चुनाव की तैयारियों में झटका देने से प्रेरित लग रहा है।
हालांकि, आरबीआई का अपना दावा है। आरबीआई की माने तो दो हजार रूपए का नोट प्रचलन से लगभग बाहर हो चुका था जिसके बाद इसे वापिस लेने का फैसला कुछ नियम शर्तों के साथ लिया गया है। ऐसे में 30 सितंबर तक लोग बैंकों में इन नोटों को बदलकर पांच सौ, सौ या दो रूपए के नोट के बदले वापिस पा सकते हैं।