Search for:
  • Home/
  • उत्तराखंड/
  • Climate Change: पहाड़ में बारिश की बेरूखी से बेबस हैं किसान, बंजर हुए खेत

Climate Change: पहाड़ में बारिश की बेरूखी से बेबस हैं किसान, बंजर हुए खेत

Pen Point Dehradun : नवंबर बीतने को है और उत्तराखंड सूखी ठंड से बेजार है। पहाड़ों में किसान आसमान की ओर टकटकी लगाए हुए हैं। दरअसल, राजय के पहाड़ी इलाकों में 80 फीसदी से ज्यादा खेती बारिश भरोसे होती है। अगर मौसम बरसा नहीं और गेहूं, जौ और मसूर जैसी फसलों पर संकट आ गया है। बारिश पर निर्भर किसानों ने इन फसलों को बोना था लेकिन खेत बंजर रह गए हैं। जाहिर है कि बारिश न होने और बेमौसम बारिश का सीधा असर किसानों की आजीविका पर पड़ता है।

टिहरी जिले के किसान शशि प्रकाश के मुताबिक बीते कुछ सालों से ही ऐसा हो रहा है। हालांकि पिछले साल नवंबर में बारिश और सीजन की पहली बर्फबारी थोड़ी बहुत हुई थी। लेकिन इस बार पूरा नवंबर सूखा ही बीत रहा है। उन्होंने बताया कि पहले गेहूं की बुवाई के लिए हमें हमेशा बारिश मिल जाती थी। लेकिन ऐसे हालात में बागवानी को भी भारी संकट का सामना करना पड़ेगा। हमारे पहाड़ों में ज़्यादातर किसान छोटे और सीमांत किसान हैं और कोई भी उनकी बेबसी पर ध्यान नहीं दे रहा है।

किसानों पर सीधा असर
उत्तराखंड का 86 प्रतिशत से ज़्यादा हिस्सा पहाड़ी है। ज्यादातर सिंचाई आधारित खेती मैदानी इलाकों तक ही सीमित है। जबकि पहाड़ी क्षेत्र में मात्र 14 प्रतिशत ज़मीन सिंचित है। सितंबर के बाद राज्य के किसानों को बहुत कम बारिश मिली है। भारतीय मौसम विभाग के अनुसार, 1 अक्टूबर से 24 नवंबर के बीच उत्तराखंड में सामान्य से लगभग 90 प्रतिशत कम बारिश हुई। पिथौरागढ़ और बागेश्वर को छोड़कर, शेष 11 जिले पूरी तरह सूखे रहे।

उत्तरकाशी के किसान देवेंद्र राणा बताते हैं कि पिछले साल दिसंबर तक बारिश बहुत कम हुई और पहाड़ों में जंगलों और वातावरण से नमी गायब हो गई। जिससे पहली बार बहुत त्यादा गर्मी महसूस की गई। देवेंद्र कहते हैं कि अगर इस साल भी बारिश नहीं होती है तो आने वाली गर्मी भी तेज होगी। जिसका सीधा असर सिंचित खेती पर भी पड़ेगा, क्योंकि नदियों का जलस्तर कम हो जाएगा। इसके अलावा पहाड़ों में पीने के पानी के लिये भी बारिश का ही सहारा रहता है।

अन्य हिमालयी राज्य भी झेल रहे सूखा
उत्तराखंड के पड़ोसी राज्य हिमांचल प्रदेश में इसी अवधि में सामान्य से 98 प्रतिशत कम बारिश हुई, जबकि जम्मू और कश्मीर में 68 प्रतिशत की कमी दर्ज की गई। मौसम विभाग से मिली जानकारी के अनुसारहिमाचल प्रदेश में अक्टूबर पिछले 123 वर्षों में तीसरा सबसे सूखा महीना रहा, जिसमें 97 प्रतिशत कम बारिश हुई। आमतौर पर, साल में सबसे कम बारिश मानसून के जाने के बाद अक्टूबर और दिसंबर के बीच होती है और आम तौर पर नवंबर को साल का सबसे सूखा महीना माना जाता है।

देहरादून मौसम विज्ञान केंद्र के निदेशक बिक्रम सिंह ने एक मीडिया रिपोर्ट में बताया कि, मानसून सितंबर तक रहता है और जब यह वापस चला जाता है, तो हवा में नमी के कारण अक्टूबर में बारिश जारी रहती है। दिसंबर के मध्य से पश्चिमी विक्षोभ राज्य को प्रभावित करना शुरू कर देता है, जिससे दिसंबर के अंत में बारिश और बर्फबारी होती है। सर्दियों की बारिश जनवरी, फरवरी और मार्च में होती है। प्री-मानसून बारिश अप्रैल में शुरू होती है और मई के अंत तक चलती है। जून से मानसूनी हवाएँ अपने साथ बादल लेकर आती हैं।

उत्तराखंड में बारिश के आंकड़े
मौसम विभाग के डाटा के अनुसार आमतौर पर, अक्टूबर और दिसंबर के बीच, उत्तराखंड में औसतन 55 मिलीमीटर बारिश होती है। अक्टूबर में 31 मिमी, नवंबर में 6.4 मिमी और दिसंबर में 17.6 मिमी। मानसून के दौरान, औसत वर्षा 1,162 मिमी, प्री-मानसून में 185 मिमी और सर्दियों में 101 मिमी होती है।

विक्रम सिंह बताते हैं कि मानसून के बाद कम बारिश से बारिश के पैटर्न में उतार-चढ़ाव अधिक होता है। उन्होंने कहा, नवंबर में 6.4 मिमी बारिश का दीर्घकालिक औसत दर्शाता है कि इस महीने के दौरान पश्चिमी विक्षोभ आमतौर पर बहुत सक्रिय नहीं होते हैं। हालांकि जम्मू-कश्मीर और हिमाचल में इसका कुछ प्रभाव हो सकता है, लेकिन उत्तराखंड पर इसका कोई प्रभाव नहीं है।

पश्चिमी विक्षोभ पर जलवायु परिवर्तन का प्रभाव
पश्चिमी विक्षोभ वे मौसम प्रणालियाँ हैं जो भूमध्य सागर और आसपास के क्षेत्रों से उत्पन्न होती हैं। जैसे-जैसे ये प्रणालियाँ पूर्व की ओर बढ़ती हैं, वे हिंदू कुश पर्वत श्रृंखलाओं से टकराती हैं और फिर उत्तरी भारत और हिमालयी क्षेत्रों की ओर बढ़ती हैं। ये विक्षोभ बारिश और बर्फबारी लाते हैं, जो किसानों के फसल चक्र, जल स्रोतों की भरपाई और ग्लेशियरों में बर्फ जोड़ने के लिए महत्वपूर्ण हैं। हाल ही में, पश्चिमी विक्षोभ में परिवर्तन देखे गए हैं और इन्हें वैश्विक तापमान में वृद्धि और जलवायु परिवर्तन से जोड़ा जा रहा है।

Leave A Comment

All fields marked with an asterisk (*) are required