200 साल पहले : यमुनोत्री की खोज में पहुंचे फ्रेजर को पसंद आया था डख्याट गांव, खरसाली में हुआ स्वागत
Pen Point, Dehradun : ईस्ट इंडिया कंपनी के साथ अंग्रेज जब भारत आए तो हिमालय के रहस्यों ने उनका ध्यान अपनी ओर खींचा। हिंदू आस्था के केंद्र गढ़वाल के चार धाम के साथ ही गंगा और यमुना के उद्गम उनके लिये किसी आश्चर्य से कम नहीं थे। इन जगहों को जानने समझने के लिये अनेक ब्रिटिश खोजी दलों ने गढ़वाल और कुमाउं के दुरूह पहाड़ों की यात्राएं की। उनका मकसद न सिर्फ इन जगहों का अध्ययन था बल्कि वे यहां से तिब्बत के रास्ते की खोज में भी थे। जहां उस वक्त विदेशियों के प्रवेश पर पाबंदी थी। इन यात्राओं में आज से 200 साल पहले जेम्स बेली फ्रेजर की यमुनोत्री और गंगोत्री धाम की यात्रा बेहद अहम मानी जाती हैं। फ्रेजर ने 1820 में ये यात्रा की थी और यमुनोत्री पहुंचने वाले पहले यूरोपियन शख्स बने। तब फोटोग्राफी संभव नहीं थी लेकिन एक चित्रकार के रूप में फ्रेजर ने अपने पूरे यात्रा रूट के कई चित्र बनाए। जिनके जरिये दुनिया ने सबसे पहले इस हिमालयी इलाके को समझना शुरू किया। ऐतिहासिक दस्तावेजों में यह वृतांत ‘अकाउंट ऑफ ए जर्नी टू द सोर्सेज़ ऑफ जमुना एंड भागीरथी रिवर्स’ शीर्षक से संरक्षित है।
हिमाचल प्रदेश के रामपुर बुशहर से शुरू हुई इस यात्रा में सन् 1820 जुलाई महीने के शुरूआती दिनों फ्रेजर अपने दल के साथ केदारकांठा की तलहटी से होते हुए गुंदियाटगांव पहुुंचे। अपने यात्रा वृतांत में उन्होंने रामा सेराईं का जिक्र भी किया और इस जगह को गढ़वाल की सबसे बेहतरीन जगह बताया। इसके बाद वे यमुना घाटी में मुंगरागढ़ के नजदीक उतरे। जहां से बनाल होते हुए डख्याट गांव में उन्होंने पड़ाव डाला। अपनी रिपोर्ट में उन्होंने इस गांव को काफी साफ सुथरा और सुनियोजित बताया है। फ्रेजर लिखते हैं कि इस पूरी घाटी में लोग खेती किसानी के काम में पूरी तरह व्यस्त रहते हैं। उन्हें वाद्य यंत्रों के साथ कुछ ऐसे लोग भी मिले जो संगीत के जरिये खेती करने वालों का उत्साह बढ़ा रहे थे। 12 जुलाई को डखियाट गांव में उनकी मुलाकात रवांई के फौजदार गोविंद सिंह बिष्ट से हुई। जिसने उनकी आगे की यात्रा में सुरक्षा के लिये कुछ सैनिकों का इंतजाम किया।
तब गोरखा शासन खत्म हो चुका था और यह इलाका टिहरी रियासत का हिस्सा बन गया था। लेकिन स्थानीय समाज के सामने आत्मसमर्पण कर चुके गोरखा सैनिकों की मौजूदगी अब भी थी। डख्याट में दो दिन रूकने के बाद उनका दल आगे बढ़ा और विकट रास्ते और नदी नालों का पार करता हुए खरसाली में पहुंचा। खरसाली गांव के बारे में फ्रेजर ने लिखा कि मुख्य तौर पर यह पंडितों का गांव है। उनके पहुंचने पर लोग उन्हें उत्सुकता से देख रहे थे, तभी कंबल में लिपटे हुए मुख्य पंडित ने आकर उनके माथे पर पीले रंग का टीका लगाकर स्वागत किया। उसके बाद यहां उत्सव का माहौल हो गया। पुरूष एक दूसरे की कमर में हाथ डालकर पंक्तिबद्ध होकर गीत गाते हुए नृत्य करने लगे। जरूरी काम काज करने के बाद महिलाएं भी उनके साथ शामिल हो गईं। नृत्य करते हुए उनकी खास कदमताल का भी फ्रेजर ने अपनी रिपोर्ट में जिक्र किया है।
फ्रेजर ने खरसाली गांव के लोगों की शारीरिक बनावट के बारे में लिखा है कि बहुत कुछ बुशहर के लोगों की तरह अधिकांश महिला पुरूष उंचे कद के हैं। जिनकी आंखें नीली और रंग उजला है लेकिन सन बर्न के कारण त्वचा झुलसी हुई है। मजबूत कद काठी के कारण ये पहाड़ी इलाकों के लिये बेहतर सिपाही साबित हो सकते हैं। उसके बाद यह दल यमुनोत्री धाम पहुंचा। हालांकि यहां छोटी आंखों और उभरे हुए गालों वाले तारतर नस्ल के लोगों की मौजूदगी का भी उन्होंने जिक्र किया है। फ्रेजर की रिपोर्ट बताती है कि यमुनोत्री बहुत ही दुर्गम जगह पर संकरे पहाड़ों और चट्टानों के बीच है। जिसकी उन्होंने पेंटिंग भी बनाई है। उनके बनाए ये चित्र बाद में काफी मशहूर हुए।