गैरसैंण बजट सत्र : जनभावनाओं की राजधानी में एक और रस्म अदायगी
– गैरसैंण में छह दिन का प्रस्तावित विधानसभा सत्र तीन दिन में ही पूरा, नौ सालों में कुल 30 दिन ही चली विधानसभा सत्र की रस्म अदायगी
-हर दिन औसतन 36 लाख रूपए खर्च कर रही है सरकार गैरसैंण में सत्र आयोजित की रस्मअदाईगी में
पेन प्वाइंट, देहरादून। गैरसैंण में 13 मार्च से आयोजित बजट सत्र अपने तय समय से दो दिन पहले ही समाप्त कर देर शाम ही राज्य सरकार ग्रीष्मकालीन राजधानी गैरसैंण से अस्थाई राजधानी देहरादून लौट आई। इस तरह हर साल गैरसैंण में सत्र संचालन के औसत चार दिनों का रेकार्ड पुष्कर सिंह धामी के नेतृत्व वाली सरकार ने भी जारी रखा। अब तक नौ सालों में 30 दिन तक ही गैरसैंण में सत्र का आयोजन हो सका है। भावनाओं की राजधानी गैरसैंण में सत्र आयोजन की रस्म अदायगी राज्य के खजाने पर भी भारी पड़ती है।
गैरसैंण, पृथक राज्य आंदोलन के दौरान पृथक पर्वतीय राज्य की मांग के साथ ही राज्य की राजधानी गैरसैंण स्थापित करना भी आंदोलन का मुख्य एजेंडा रहा था। वीर चंद्र सिंह गढ़वाली के नेतृत्व में गैरसैंण क्षेत्र को पृथक पर्वतीय राज्य की राजधानी घोषित किया गया। खैर, 9 नवंबर 2000 को नया राज्य तो बना लेकिन राजधानी के नाम पर एक खेल हो गया। देहरादून को अस्थाई नाम से राजधानी बना दी गई। देहरादून में अरबों खर्च कर मुख्यमंत्री आवास, सचिवालय, विधानसभा समेत सैकड़ों सरकारी निदेशालय, विभागों के दफ्तर भी बना दिए गए लेकिन देहरादून के साथ अस्थाई राजधानी का टैग जोड़े रखा। राज्य बनने के करीब डेढ़ दशक बाद 2014 में पहली बार सरकार को गैरसैंण की याद आई तो वहां तंबू टैंट लगाकर पहली बार विधानसभा सत्र का आयोजन किया गया।
टैंट लगाकर पहला विधानसभा सत्र
9 जून 2014 से 11 जून 2014 तक गैरसैंण में पहला विधानसभा सत्र आयोजित किया गया। इसके साथ ही गैरसैंण में भी राजधानी के नाम सत्र आयोजन की रस्मअदायगी की भी शुरूआत हो गई। गैरसैंण बाजार से दो किमी की दूरी पर शामियानें सजाए गये, टैंट लगाकर हुए इस विधानसभा सत्र के जरिए तत्कालीन मुख्यमंत्री हरीश रावत गैरसैंण राजधानी को लेकर बड़ा संदेश देने की कोशिश कर रहे थे। तब तक गैरसैंण मुद्दा उत्तराखंड की राजनीति में राम मंदिर मुद्दे जैसे हो चुका था, हर चुनाव में भाजपा कांग्रेस के घोषणा पत्र में गैरसैंण को स्थाई राजधानी बनाने की बात तो होती लेकिन चुनाव जीतने के बाद दोनों पार्टियां गैरसैंण में राजधानी स्थापित करने को लेकर कोई खास पहल नहीं कर सकी। 2014 में जून के तपते महीने में जब राज्य की अस्थाई राजधानी देहरादून तपकर गर्म भट्टी बन चुकी थी तो तत्कालीन मुख्यमंत्री हरीश रावत ने राज्य गठन के 14वें साल गैरसैंण में विधानसभा सत्र के आयोजन की शुरूआत कर ही डाली। इसे गैरसैंण में राजधानी स्थापना का मील का पत्थर बताया जाने लगा। पहला सत्र सिर्फ तीन दिन ही चल पाया और 11 जून की देर शाम गैरसैंण पहुंचे विधायक, मंत्री, आला अफसर देहरादून लौट जाए। इसके बाद अगले डेढ़ साल तक गैरसैंण में आयोजित इस विधानसभा सत्र को लेकर तत्कालीन कांग्रेस सरकार अपनी पीठ थपथपाती रही। उम्मीद थी कि 2014 में उठाए गए इस कदम से 2017 में होने वाले विधानसभा चुनाव में जरूर फायदा मिलेगा।
वहीं, 2014 में जुलाई महीने से ही करीब डेढ़ सौ करोड़ रूपये की लागत के साथ एनबीसीसी ने प्रस्तावित राजधानी गैरसैंण के भरारीसैंण में विधानसभा भवन, विधायक हास्टल समेत अन्य निर्माण कार्य शुरू कर दिए। इसके बाद हर साल औसतन दो से तीन दिन के लिए सरकार गैरसैंण पहुंचने लगी और सत्र आयोजन की रस्मअदायगी पूरी करने लगी। हालांकि, त्रिवेंद्र रावत ने एक कदम आगे बढ़कर 5 मार्च 2021 को गैरसैंण को ग्रीष्मकालीन राजधानी घोषित करते हुए गैरसैंण को कमिश्नरी बनाने की घोषणा की। लेकिन, इससे राजनीतिक फायदा होने की बजाए यह घोषणा ही त्रिवेंद्र सिंह रावत की कुर्सी लेने वाली साबित हुई।
2021 तक सत्रों के आयोजन पर 8 करोड़ से अधिक खर्च
हरीश रावत ने मुख्यमंत्री रहते हुए 2014 में गैरसैंण में सत्र आयोजन की जो रवायत शुरू की वह पुष्कर सिंह धामी के मुख्यमंत्री तक जारी है। 9 सालों में गैरसैंण में 30 दिन तक ही सत्र आयोजित हो सके। बेमन से मंत्री, विधायक, अधिकारी गैरसैंण पहुंचते हैं और वहां पहुंचते ही सत्र खत्म होने की उल्टी गिनती भी शुरू कर देते हैं। इसकी तस्दीक इस बात से होती है कि गैरसैंण में कभी भी सत्र तीन दिनों से अधिक संचालित नहीं हो सका। हां, सत्र आयोजन के नाम पर 2021 तक 9 सालों में करीब 8 करोड़ 70 लाख रूपये का खर्च आ चुका है। 2022 में गैरसैंण में सत्र का आयोजन नहीं हो सका। अब 2023 में पुष्कर सिंह धामी के नेतृत्व में बजट सत्र का आयोजन गैरसैंण में किया गया। सत्र को 18 मार्च तक आयोजित होना था लेकिन 16 मार्च को ही भव्य पारंपरिक पहाड़ी खाने के साथ ही सत्र खत्म कर दिया गया।
गैरसैंण में आयोजित हुए सत्र और उनपर खर्च
– 9 जून 2014 से 11 जून 2014 तक आयोजित पहले विधानसभा सत्र में 57 लाख रूपये का खर्च आया।
– 1 नवंबर 2015 से 2 नवंबर 2015 तक आयोजित सत्र में 2 लाख 32 हजार रूपये का खर्च आया जबकि पेयजल, बिजली, लोक निर्माण, राज्य संपति विभाग का खर्च इसमें सम्मलित नहीं है।
– नवंबर 2016 में हुए विधानसभा में 36 लाख रूपये से अधिक का खर्च आया।
– दिसंबर 2017 में आयोजित सत्र में 99 लाख रूपये का खर्च
– मार्च 2018 में आयोजित सत्र में खर्च डेढ़ करोड़ से अधिक का खर्च
– मार्च 2020 को आयोजित सत्र में डेढ़ करोड़ से अधिक का खर्च
– मार्च 2021 में आयोजित सत्र में डेढ़ करोड़ से अधिक का खर्च
– जबकि पांच सालों में फर्नीचर पर्दे जैसी व्यवस्थाओं पर सवा दो करोड़ रूपये का खर्च