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सेब के बगीचों तक बर्फ ढोकर ला रहे मौसम की मार से बेबस बागवान

Pen Point. Dehradun : उच्च हिमालयी इलाकों में इस बार कम बर्फबारी चिंता का सबब बन गई है। खास तौर पर सेब बागवान सबसे ज्यादा आशंकित हैं। गौरतलब है कि सेब की अच्छी फसल के लिये बर्फबारी बेहद जरूरी है। उत्तराखंड के साथ ही पड़ोसी राज्य हिमाचल प्रदेश में भी ऐसे ही हालात बने हुए हैं। ऐसे में हिमाचल प्रदेश के किन्नौर जिले की रोपा घाटी के बागवानों ने एक अनुठी जुगत निकाली है। सेब के पेड़ों को जरूरी चिलिंग यानी शीतमान ताप देने के लिये वे उंचाई वाले इलाकों से गाड़ियों में बर्फ ढोकर ला रहे हैं। उसके बाद पीठ पर लादकर बर्फ को बगीचों तक पहुंचाने के बाद सेब के पौधों के आस पास बिछाया जा रहा है।

जानकारी के मुताबिक ये काश्तकार कम धूप वाली जगहों से बर्फ लेकर आ रहे हैं। जहां बर्फ ज्यादा दिनों तक टिकी रहती है। बर्फ को सेब के पौधों के इर्द गिर्द इस तरह बिछाया जाता है कि उनमें लंबे समय तक नमी बनी रहे। जबकि ऐसा न करने पर नए लगाए पौधों में सूखे की वजह से अच्छी फ्लावरिंग नहीं होती और फलों का उत्पादन भी बहुत कम होता है। गौरतलब है कि मेहनत वाली खेती में ये नुकसानदायक साबित होता है।

उत्तराखंड में भी सेब बागवान इसी स्थिति से जूझ रहे हैं। हालांकि उन्होंने अभी तक इस तरह का कोई तरीका नहीं अपनाया है। उत्तरकाशी जिले के झाला निवासी सेब काश्तकार धर्मेंद्र सिंह बताते हैं कि कि क्षेत्र में इस बार बहुत कम बारिश और बर्फबारी हुई है, जिसका असर फलों में देखने को मिलेगा। पौधों में बीमारियां पनपने का खतरा भी अधिक बढ़ गया है। इसका असर पैदावार पर पड़ेगा।

पत्रकार सुरेंद्र नौटियाल के मुताबिक जस तरह की सूखे की परिस्थितियां इस बार बनी हैं उनमें पौधों में नमी बनाए रखना किसान-बागवानों के लिए एक बड़ी चुनौती है। उन्होंने अनुमान जताया कि सूखे की वजह से इस बार 30 फीसदी तक पैदावार कम हो सकती है।

उत्तराखंड में भी इस बार इस बार फलों और बुरांस के पेड़ों पर समय से पहले फ्लावरिंग देखने को मिल रही है। जिससे विशेषज्ञों का मानना है कि यदि ऐसी ही परिस्थितियां बनी रहती हैं तो इसका असर फल व फसलों की पैदावार में विपरीत असर देखने को मिल सकता है।

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