गढ़वाली : कभी देश की 18वीं सबसे लोकप्रिय भाषा थी, आज संकट में
Pen Point, Dehradun : आज गढ़वाली और कुमांउनी भाषा भारतीय संविधान की आठवीं अनुसूची में जगह नहीं बना सकी हैं। इसके लिए लंबे समय से गढ़वाली के विभिन्न पैरोकार संगठन संघर्षरत हैं। हैरत की बात है कि कभी यही गढ़वाली भाषा देश की सबसे लोकप्रिय भाषाओं में 18वें स्थान पर थी। जो उस वक्त पश्तो, नेपाली और कश्मीरी भाषाओं से गढ़वाली भाषा कहीं ज्यांदा लोकप्रिय थी। दरअसल ब्रिटिश हुकूमत के 1891 की जनगणना इस बात की तस्दीक करती है। जिसमें उस दौर में भाषाओं की स्थिति को बताया गया है। इस सूची में भाषा और उसे बोलने वाले लोगों की तादाद और इलाके की जानकारी दी गई है। इस सूची में गढ़वाली भाषा को सेंट्रल पहाड़ी के रूप में जगह दी गई है। जिसे बोलने वालों की तादाद 1,1,53,384 दी गई है तथा इसका क्षेत्र संयुक्त प्रांत दर्शाया गया है। उल्लेखनीय है सूची में गढ़वाली एवं अन्य लिखा गया है। लेकिन किसी दूसरी भाषा का नाम नहीं लिखा गया है। ऐसा समझा जा सकता है कि गढ़वाली के साथ कुमाउंनी को भी इसमें शामिल कर लिया गया होगा। 1891 की इस जनगणना में देश में बोली जाने वाली कुल 81 भाषाएँ शामिल थीं।
भारतीय संविधान की आठवीं अनुसूची की 22 भाषाओं में शामिल नेपाली और कश्मीरी इस सूची में गढ़वाली भाषा से पीछे हैं। गढ़वाली की स्थिति पश्तो से भी बेहतर थी, जो 20वें स्थान पर थी। भारतीय संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल 22 भाषाओं में असमिया, बंगाली, बोडो, डोगरी, गुजराती, हिंदी, कन्नड़, कश्मीरी, कोंकणी, मलयालम, मणिपुरी, मराठी, मैथिली, नेपाली, उड़िया, पंजाबी, संस्कृत, संथाली , सिंधी, तमिल, तेलुगु और उर्दू शामिल हैं।
इसे विडंबना ही कहा जाएगा कि मजबूत ऐतिहासिक तथ्य होने के बावजूद गढ़वाली और कुमाउंनी को अभी तक भाषाओं का दर्जा नहीं दिया जा सका है। लिहाजा दोनों ही भाषाओं को बोलियां मानकर संविधान की आठवीं अनुसूची की भाषाओं की सूची में शामिल होने से वंचित रखा गया है।
ऐतिहासिक तथ्यों पर नजर डालें तो गढ़वाली भाषा पुरातात्विक अभिलेखों की भाषा भी रही है। गढ़वाल के इतिहास के जानकारों के मुताबिक बड़ी तादाद में पंवारकालीन अभिलेख गढ़वाली भाषा में मौजूद हैं। जो इतिहास के अकादमिक लेखन का स्रोत भी हैं। लेकिन भाषा का दर्जा ना मिलने से गढ़वाली के साथ ही कुमाउंनी भाषा भी आज अपने अस्तित्व के संकट से जूझ रही है।
वरिष्ठ पत्रकार और शोधकर्ता राजू गुसांई के मुताबिक 1891 की जनगणना में सेंट्रल पहाड़ी भाषाओं में स्पष्ट तौर पर गढ़वाली भाषा लिखा गया है। भले ही इसके साथ इस क्षेत्र में बोली जाने वाली अन्य बोलियों को और उपबोलियों को शामिल किया गया होगा, लेकिन यह उल्लेख खुद ही उस वक्त गढ़वाली भाषा की लोकप्रियता की ओर इशारा करता है।