ग्राउंड रिपोर्ट: किसानों की दीवाली फीकी कर देगी आलू की फसल
– इस साल बेमौसमी बारिश, अतिवृष्टि और तापमान में गिरावट के चलते आलू समेत अन्य नकदी फसलों का उत्पादन में भारी गिरावट, नकदी फसलों को अब नहीं मिल रहे खरीददार
PEN POINT, DEHRADUN : उत्तरकाशी जनपद के भागीरथी घाटी निवासी विजय सिंह राणा हर सुबह सड़क पर रखे अपने आलू के बोरे के ढेर के पास पहुंच जाते हैं, इस उम्मीद के साथ कि ट्रक के साथ आलू का व्यापारी पहुंचे और पखवाड़े भर से सड़क पर रखी उनकी फसल बिक जाए। कुछ दिनों पहले तक वह फसल की अच्छी कीमत की उम्मीद कर रहे थे लेकिन अब वह किसी तरह से सड़क पर सूख रही इस फसल को बेचना चाह रहे हैं, कीमत में समझौता करने को भी तैयार है लेकिन खरीददार अभी भी नहीं मिल रहा। यह कहानी सिर्फ विजय सिंह राणा की ही नहीं है बल्कि भागीरथी घाटी के टकनौर क्षेत्र के आलू उत्पादक गांवों के सभी किसानों की है। पखवाड़े भर से फसल तैयार है लेकिन न सहीं कीमत मिल पा रही है न फसल को खरीददार। ऐसे में अगले दो सप्ताह में आने वाले दीवाली त्यौहार के फीके रहने के साथ ही इस किसानों के सामने आर्थिक संकट भी दस्तक दे रहा है। यह साल किसानों के लिए दशक का सबसे बुरा साल साबित होने जा रहा है। बेमौसम बारिश, अतिवृष्टि से सिर्फ आलू ही नहीं बल्कि राजमा, सोयाबीन समेत अन्य नकदी फसलों के उत्पादन बुरी तरह से घटा है।
भागीरथी घाटी के टकनौर क्षेत्र में इन दिनों सड़कों के किनारे आलू से भरे बोरों के ढेर इन दिनों धूप में सूख रहे हैं लेकिन खरीददार किसानो ंकी इस महत्वपूर्ण नकदी फसल से नजरें फेरे हुए हैं। पखवाड़े भर से ज्यादा का समय हो चुका है लेकिन खेतों से निकाला गया आलू अभी भी खरीदारों का इंतजार कर रहा है। वहीं फसल खराब होने के डर से ज्यादातर किसान औने पौने दामों पर अपनी इस नकदी फसल को बेचने पर मजबूर हैं।
उत्तरकाशी जनपद 48 हजार मीट्रिक टन से अधिक आलू उत्पादन करता है जो संपूर्ण राज्य में पर्वतीय जिलों में सर्वाधिक है। राज्य में उगाए जाने वाले सवा चार लाख मीट्रिक टन आलू में उत्तरकाशी जनपद की भागेदारी दस फीसदी से ज्यादा है। उत्तरकाशी जनपद की गंगा घाटी के टकनौर क्षेत्र में रैथल, गोरसाली, जखोल, द्वारी, पाही, बार्सू, पाला, तिहार, कुंजन समेत बड़े क्षेत्र में आलू का सर्वाधिक उत्पादन किया जाता है। अक्टूबर महीने की शुरूआत के साथ ही इस इलाके में आलू की फसल निकालने का काम शुरू हो चुका था। बीते सालों तक जब आलू की भारी मांग रहती है तो ज्यादातर उपज खेतों से निकलते ही बाजार तक पहुंच जाती है। आलू के व्यापारी खुद ही खेतों तक पहुंचकर औसतन 2 हजार रूपए प्रति कुंतल की दर से आलू खरीदते हैं। लेकिन, इस साल मौसम की मार से जहां आलू के उत्पादन में भारी गिरावट दर्ज की गई तो आलू के व्यापारियों ने भी आलू के इस सीजन में आलू खरीद में रूचि नहीं दिखाई। अक्टूबर महीने बीतने को है लेकिन अभी तक भी इस इलाके में आलू की फसल का बड़ा हिस्सा बिकवाली का इंतजार कर रहा है। किसानों खेतों से निकाल कर आलू की फसल सड़कों पर इस उम्मीद के साथ डंप किए हुए हैं कि खरीददार पहुंचकर उन्हें आलू की उपज का दाम दें तो किसानों की दीवाली भी रौशन हो सके।
वहीं, आलू की कम मांग के चलते आलू के दाम में भी भारी गिरावट जारी है। इन दिनों ही किसानों को उनकी उपज आलू का 800 रूपए से 900 सौ रूपए प्रति कुंतल की दर से ही भाव मिल पा रहा है। इतनी कम कीमत के बावजूद भी खरीददारों के न पहुंचने से किसानों के लिए अपनी फसल को धूप में खराब होते देखने की मजबूरी है। वहीं, कुछ किसान फसल के खराब होने के डर से इसे औने पौने दामों पर बेचने को मजबूर हैं। आलू इस क्षेत्र में महत्वपूर्ण नकदी फसल है, आलू के सीजन में होने वाली कमाई से ही पूरे साल भर का बजट निर्धारित होता है साल भर के खर्चों की भी व्यवस्था होती है। लेकिन, यह साल किसानों के लिए बुरा साबित हो रहा है।
कुंजन के किसान रणजीत सिंह बताते हैं कि आलू की जब बुवाई चल रही थी मार्च अप्रैल में तो भारी बारिश शुरू हुई, पूरे सीजन में बारिश से आलू का उत्पादन आधे से भी कम रह गया और अब खरीदने वाले ही नहीं मिल रहे हैं, फसल सड़क पर सूख रही है और कम कीमत पर खरीदने तक के लिए कोई नहीं आ रहा है।
गोरसाली के काश्तकार जसपाल बताते हैं कि इस जितनी लागत से आलू के बीज, खाद खरीदी थी उत्पादन कम होने और अब आलू की कम कीमत और खरीदार न मिलने से हालत खराब हो चुकी है। वहीं, दूसरी ओर लंबे समय से आलू की क्रय विक्रय का काम करने वाले स्थानीय खरीददार संदीप बताते हैं कि इस साल मंडी में आलू की मांग बहुत कम है लिहाजा कीमत लगातार गिरावट दर्ज की जा रही है ऐसे में खरीदार के लिए भी मंडी तक फसल पहुंचाना जोखिम भरा साबित हो रहा है। बीते डेढ़ दशक से आलू के व्यापार में जुड़े संदीप ने इस साल मंडी और बाजार के बिगड़े मिजाज के चलते आलू की खरीद ब्रिकी बंद कर दी।